जयपुर: देव दीपावली कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। देव दीपावली, दीवाली के ठीक 15 दिन बाद मनाई जाती है। देश की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी में इस पर्व का असल आनंद मिलता है। यह पर्व काशी की विशेष संस्कृति और परंपरा से जुड़ा है। इस अवसर पर गंगा नदी के किनारे रविदास घाट से लेकर राजघाट तक लाखों दीए जलाकर माता गंगा की पूजा की जाती है। माता गंगा की इस पूजा का नजारा बेहद रमणीय होता है। कहा जाता है कि देव दीपावली की इस परंपरा की शुरुआत सबसे पहले साल 1915 में पंचगंगा घाट पर हजारों दीए जलाकर की गई थी। इस साल यह देव दीपावली 3-4 नवंबर (शनिवार) को मनाई जाएगी।
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शास्त्रों देव दीपावली के विषय में बहुत सारी कथाओं की चर्चा है। जिसमें एक कथा के अनुसार एक राक्षस था जिसका नाम त्रिपुरासुर था। वह देव लोक में अपने अत्यचार से सभी देवताओं को तबाह कर रखा था। देवताओं के कहने पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। त्रिपुरासुर के वध के बाद देवताओं ने खुश होकर दिवाली मनाई जिसे बाद में देव दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा।