कार्तिक में देव प्रबोधिनी एकादशी कथा कब सुनेंगे Dev Prabodhini Ekadashi Vrat Katha Date: जानिए पूजा-विधि व महत्व, जिससे मिलेगा मोक्ष

Dev Prabodhini Ekadashi Vrat Katha Date :देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चिरनिद्रा से जगेंगे। इस दिन उपवास रखने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मोक्ष का मार्ग खुलता है। मान्यता है कि इस दिन नदियों में स्नान करने और भगवान विष्णु की पूजा से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। साथ ही इस दिन से मांगलिक काम शुरू हो जाते हैं।

Update:2022-10-10 10:02 IST

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Dev Prabodhini Ekadashi Vrat Katha Date

देव प्रबोधिनी  एकादशी 2022

आज से कार्तिक माह  लग  गया है। अब इस माह में  चातुर्मास का समापन होगा और भगवान विष्णु निद्रा से जगेंगे। इस दिन शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इसे देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि के नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु 4 माह के शयन काल के बाद उठते है। इस बार देवउठनी एकादशी 4 नवंबर को है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। इस दिन से शुभ कार्य का आरंभ होता है।ऐसे में उदया तिथि के मुताबिक देवउठनी एकादशी 4 नवंबर को मनाई जाएगी

श्रीविष्णु की पूजा विधि-विधान की जाती है। देव प्रबोधिनी एकादशी 4 नवंबर को है। इस दिन उपवास रखने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मोक्ष का मार्ग खुलता है। मान्यता है कि इस दिन नदियों में स्नान करने और भगवान विष्णु की पूजा से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। एकादशी के पवित्र दिन अगर ये सारे काम किए जाए तो बैकुंठ की प्राप्ति होती है। 

देव प्रबोधिनी एकादशी पर सुबह स्नान करने के बाद विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की भी विधिवत पूजा जरूर करें। तभी पूजा पूर्ण होगी और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिलेगा। मान्यता है कि पीपल के वृक्ष में देवताओं का वास होता है, इसलिए एकादशी के दिन पीपल के वृक्ष में सुबह गाय के घी का दीपक जरूर जलाएं।

हिन्दू धर्म के मान्यतानुसार इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। वहीं इस दिन शालीग्राम और तुलसी का विवाह भी किया जाता है। और इसी दिन भगवान विष्णु चार महीने की गहरी नींद के बाद जागते हैं। उनके उठने के साथ ही हिन्दू धर्म में शुभ-मांगलिक कार्य आरंभ होते हैं।

इस दिन भगवान विष्णु और माता तुलसी का विवाह होता है और इस दिन ये विवाह हर सुहागन को जरूर करना चाहिए। इसे अंखड सौभाग्य व सुख-समृद्धि मिलती है। मां तुलसी को लाल चुनरी जरूर चढ़ाएं। शाम को घर के हर कोने को प्रकाशमान करें, क्योंकि इस दिन भगवान जागते हैं। शाम को पूजा करें और घर के हर कोने में दीप जलाएं। ऐसा करने से घर में कभी धन की कमी नहीं रहती है।

देव प्रबोधिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त

भगवान चार महीने बाद देव प्रबोधिनी  एकादशी को अपनी निंद्रा तोड़ते हैं। जिसमें भगवान विष्णु के बिना ही मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लेकिन देवउठनी एकादशी को जागने के बाद देवी-देवता भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की एक साथ पूजा करके देव दिवाली मनाते हैं। देव दीपावली के दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्रीसूक्त का पाठ किया जाता है। उससे पहले देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत किया जाता है। जानते हैं शुभ मुहूर्त और बनने वाले शुभ योग...

  • देव प्रबोधिनी एकादशी पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का विधान है। इस दिन दो अद्भुत संयोग बन रहे हैं।
  • एकादशी तिथि का आरंभ- 03 नवंबर को शाम 7 बजकर 30 मिनट से
  • एकादशी तिथि का समापन- 4 नवंबर 2022 को शाम 6 बजकर 8 मिनट पर होगा
  • हरिवासर समाप्ति का समय: दोपहर 01 बजकर 02 मिनट पर (5 नवंबर)
  • देव प्रबोधिनी एकादशी पारण मुहूर्त: दोपहर 01 बजकर 09 मिनट से 03 बजकर 18 मिनट तक (5 नवंबर)

अभिजीत मुहूर्त योग-11:19 AM से 12:04 PM

देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी-शालीग्राम विवाह

पुरातनकथाओं के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और भगवान शालीग्राम का विवाह भी करवाया जाता है। भगवान विष्णु को तुलसी काफी प्रिय है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्त के साथ छल किया था। जिसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता और देवी-देवताओं के विनती के बाद उन्हें वापस सही करके सती हो गई थी। उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उनके साथ शालीग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ।

देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन न करें ये काम

कादशी के दौरान ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से फल ज्यादा मिलता है इसलिए एकादशी के दिन शारीरिक संबंध से परहेज रखना चाहिए। शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल या चावल से बनी चीजों के खाने की मनाही है। मान्यता है कि इस दिन चावल खाने से प्राणी रेंगनेवाले जीव की योनि में जन्म पाता है। लेकिन द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है। भगवान विष्णु और उनके किसी भी एकादशीतिथि में चावल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। भगवान विष्णु को एकादशी का व्रत सबसे प्रिय है। पुराणों में बताया गया है कि इस दिन जो व्रत न रहे हों, उन्हें भी प्याज, लहसुन, मांस, अंडा जैसे तामसिक पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से नरक में स्थान मिलता है।


देव प्रबोधिनी एकादशी  की पूजा विधि

  • देवउठनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लें और श्री विष्णु का ध्यान करें।
  • घर की साफ़-सफाई करने के बाद स्नानादि कार्यों से निवृत्त होकर चौक में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं। देवउठनी एकादशी की रात में घरों के बाहर तथा पूजा स्थान पर दीप प्रज्जवलित करने चाहिए। पूजा करने के बाद शंख, घंटियां आदि बजाकर भगवान को निद्रा से जगाना चाहिए।
  • देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर आपको मनवांछित फल प्रदान करते है।
  • इस दिन स्नान करने के बाद गायत्री मंत्र का जप अवश्य करें। मान्यता है कि इससे बेहतर स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। धन-धान्य की प्राप्ति के लिए एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु को सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाएं। भोग में तुलसी का पत्ता जरूर डालें। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती हैं।
  • एकादशी पर विष्णु मंदिर में एक नारियल और बादाम अर्पित करें। ऐसा करने से आपके सभी रुकें हुए काम सिद्ध होने लगते है और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

देव प्रबोधिनी एकादशी की कथा 

 एक समय की बात है कि एक राजा था जिसके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। उसके राज्य में एकादशी के दिन कोई भी अन्न नहीं बेचता था और न ही कोई अन्न खाता था। केवल सभी लोग केवल फलाहार किया करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाहिए और सुंदरी का रूप धारण किया और सड़क किनारे पर बैठ गए। तभी राजा उधर से गुजरे और सुंदरी को देख चकित रह गए। उन्होंने सुंदरी से पूछा कि तुम कौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो?

तब सुंदरी के रूप में मौजूद भगवान ने कहा कि मैं निराश्रिता हूं। इस नगर में मेरा कोई जानने-पहचानने वाला नहीं है, मैं किससे सहायता मांगू? राजा उसके रूप पर मोहित हुआ और बोला कि तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रह सकती हो। इस पर सुंदरी ने कहा कि मैं तुम्हारी बात मानूंगी लेकिन तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंप देना होगा। इस राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा और मैं जो भी बनाऊंगी, तुम्हें वो खाना ही होगा। सुंदरी के रूप पर मोहित राजा ने कहा कि मुझे सारी शर्तें मंजूर हैं।

अगले दिन एकादशी का व्रत था लेकिन रानी ने आदेश दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए। इतना ही नहीं घर में उसने मांस-मछली आदि भी पकवाए और परोस कर राजा से खाने को कहा। यह देख राजा बोला, रानी आज एकादशी है इसलिए मैं तो केवल फलाहार ही करूंगा। तब रानी ने राजा को उनकी शर्त की याद दिलाई और बोली या तो खाना खाओ, नहीं तो मैं तुम्हारे बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी। 

राजा ने अपनी स्थिति राजकुमार की मां और बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली, महाराज आप धर्म ना छोड़िए और बड़े राजकुमार का सिर दे दीजिए। पुत्र तो फिर मिल जाएगा लेकिन धर्म की हानि ठीक नहीं। इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आया और अपनी मां की आंखों में आंसू देख उनसे रोने का कारण पूछा। मां ने उसे सारी बात बता दी तो इस राजकुमार ने कहा कि मैं सिर देने के लिए तैयार हूं। मेरे पिताजी के धर्म की रक्षा जरूर होनी चाहिए।

राजा दुखी मन से सुंदरी के पास गए और राजकुमार का सिर देने को तैयार हुए। तभी सुंदरी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उनसे कहा, राजन ये तुम्हारी परीक्षा थी और तुम इस कठिन परीक्षा में सफल रहे हो। भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वरदान मांगने को कहा तो राजा ने कहा, आपका दिया सब कुछ है, बस हमारा उद्धार कीजिए। उसी समय वहां एक विमान उतरा और राजा अपना राज्य अपने राजकुमार पुत्र को सौंप कर विमान पर बैठ परम धाम को चले गए।

दूसरी कथा के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी

एक बार भगवान विष्णु से उनकी प्रिया लक्ष्मीजी ने आग्रह के भाव में कहा- हे भगवान! अब आप दिन-रात जागते हैं, लेकिन एक बार सोते हैं तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं इसलिए आप नियम से विश्राम किया कीजिए। आपके ऐसा करने से मुझे भी कुछ समय आराम का मिलेगा।

लक्ष्मीजी की बात भगवान को उचित लगी। उन्होंने कहा कि तुम ठीक कहती हो। मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से वक्त नहीं मिलता इसलिए आज से मैं हर वर्ष 4 मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी। इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे समेत निवास करूंगा।

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