Dev Uthani Ekadashi Katha :देव उठनी एकादशी व्रत कथा से हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ बराबर मिलता है फल, जानिए कैसे
Dev Uthani Ekadash in hindi :देव उठनी एकादशी के दिन उपवास रखने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मोक्ष का मार्ग खुलता है। जानते हैं इसकी महिमा
Dev Uthini Ekadashi Vrat Katha देवउठनी एकादशी कथा
कार्तिक माह में चातुर्मास का समापन होता है और भगवान विष्णु निद्रा से जगते है। इस दिन शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इसे देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि के नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु 4 माह के शयन काल के बाद उठते है। इस बार देवउठनी एकादशी 12 नवंबर को है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। इस दिन से शुभ कार्य का आरंभ होता है।ऐसे में उदया तिथि के मुताबिक देवउठनी एकादशी 12 नवंबर को मनाई जाएगी
देव प्रबोधिनी एकादशी की कथा
एक समय की बात है कि एक राजा था जिसके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। उसके राज्य में एकादशी के दिन कोई भी अन्न नहीं बेचता था और न ही कोई अन्न खाता था। केवल सभी लोग केवल फलाहार किया करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाहिए और सुंदरी का रूप धारण किया और सड़क किनारे पर बैठ गए। तभी राजा उधर से गुजरे और सुंदरी को देख चकित रह गए। उन्होंने सुंदरी से पूछा कि तुम कौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो?
तब सुंदरी के रूप में मौजूद भगवान ने कहा कि मैं निराश्रिता हूं। इस नगर में मेरा कोई जानने-पहचानने वाला नहीं है, मैं किससे सहायता मांगू? राजा उसके रूप पर मोहित हुआ और बोला कि तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रह सकती हो। इस पर सुंदरी ने कहा कि मैं तुम्हारी बात मानूंगी लेकिन तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंप देना होगा। इस राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा और मैं जो भी बनाऊंगी, तुम्हें वो खाना ही होगा। सुंदरी के रूप पर मोहित राजा ने कहा कि मुझे सारी शर्तें मंजूर हैं।
अगले दिन एकादशी का व्रत था लेकिन रानी ने आदेश दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए। इतना ही नहीं घर में उसने मांस-मछली आदि भी पकवाए और परोस कर राजा से खाने को कहा। यह देख राजा बोला, रानी आज एकादशी है इसलिए मैं तो केवल फलाहार ही करूंगा। तब रानी ने राजा को उनकी शर्त की याद दिलाई और बोली या तो खाना खाओ, नहीं तो मैं तुम्हारे बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी।
राजा ने अपनी स्थिति राजकुमार की मां और बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली, महाराज आप धर्म ना छोड़िए और बड़े राजकुमार का सिर दे दीजिए। पुत्र तो फिर मिल जाएगा लेकिन धर्म की हानि ठीक नहीं। इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आया और अपनी मां की आंखों में आंसू देख उनसे रोने का कारण पूछा। मां ने उसे सारी बात बता दी तो इस राजकुमार ने कहा कि मैं सिर देने के लिए तैयार हूं। मेरे पिताजी के धर्म की रक्षा जरूर होनी चाहिए।
राजा दुखी मन से सुंदरी के पास गए और राजकुमार का सिर देने को तैयार हुए। तभी सुंदरी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उनसे कहा, राजन ये तुम्हारी परीक्षा थी और तुम इस कठिन परीक्षा में सफल रहे हो। भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वरदान मांगने को कहा तो राजा ने कहा, आपका दिया सब कुछ है, बस हमारा उद्धार कीजिए। उसी समय वहां एक विमान उतरा और राजा अपना राज्य अपने राजकुमार पुत्र को सौंप कर विमान पर बैठ परम धाम को चले गए।
दूसरी कथा के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी
एक बार भगवान विष्णु से उनकी प्रिया लक्ष्मीजी ने आग्रह के भाव में कहा- हे भगवान! अब आप दिन-रात जागते हैं, लेकिन एक बार सोते हैं तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं इसलिए आप नियम से विश्राम किया कीजिए। आपके ऐसा करने से मुझे भी कुछ समय आराम का मिलेगा।
लक्ष्मीजी की बात भगवान को उचित लगी। उन्होंने कहा कि तुम ठीक कहती हो। मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से वक्त नहीं मिलता इसलिए आज से मैं हर वर्ष 4 मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी। इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे समेत निवास करूंगा।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
देवउठनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लें और श्री विष्णु का ध्यान करें।
घर की साफ़-सफाई करने के बाद स्नानादि कार्यों से निवृत्त होकर चौक में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं। देवउठनी एकादशी की रात में घरों के बाहर तथा पूजा स्थान पर दीप प्रज्जवलित करने चाहिए। पूजा करने के बाद शंख, घंटियां आदि बजाकर भगवान को निद्रा से जगाना चाहिए।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर आपको मनवांछित फल प्रदान करते है।
इस दिन स्नान करने के बाद गायत्री मंत्र का जप अवश्य करें। मान्यता है कि इससे बेहतर स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। धन-धान्य की प्राप्ति के लिए एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु को सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाएं। भोग में तुलसी का पत्ता जरूर डालें। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती हैं।
एकादशी पर विष्णु मंदिर में एक नारियल और बादाम अर्पित करें। ऐसा करने से आपके सभी रुकें हुए काम सिद्ध होने लगते है और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
देवउठनी एकादशी मुहूर्त
एकादशी तिथि 11 नवंबर को शाम में 6 .47 मिनट पर शुरू होगी और 12 नवंबर को संध्याकाल 4 . 04 मिनट तक रहेगी। पदम पुराण में वर्णित एकादशी महात्यम के अनुसार, देवोत्थान एकादशी व्रत का फल एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के बराबर होता है।
लाभ - उन्नति 10:44 एएम से 12:05 पीएम
अमृत - सर्वोत्तम 12:05 पीएम से 01:26 पीएम
शुभ - उत्तम 02:47 पीएम से 04:08 पीएम
लाभ - उन्नति 07:08 पीएम से 20:47 पीएम काल रात्रि
शुभ - उत्तम 10:26 पीएम से 12:06 एएम, नवम्बर 13
देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त स्नान- सुबह 5 . 8 मिनट से 5.56 मिनट तक
स्नान, पूजन, दान व अन्य कार्य- सुबह 6 . 58 से दोपहर 1 .23 मिनट तक
अन्य सभी शुभ मंगल कार्य भद्रा परिहार या सायं 4 . 5 मिनट के बाद करें
एकादशी व्रत का पारण- 13 नवंबर, सुबह 6 . 42 बजे से लेकर 8 . 51 बजे के बीच करना चाहिए। पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय दोपहर 01:01 पीएम पर।