गोरखपुर: शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन मां के भक्तों की भीड़ मां के दरबार में देखने को मिल रही है। गोरखपुर से 15 किलोमीटर दूर कुसम्ही जंगल में स्थित प्राचीन मंदिर मां बुढ़िया का मंदिर है, जहां पर दूर-दराज से भक्त मां के दर्शन करने आते हैं। जंगल के बीचों-बीच में बसा मां बुढ़िया के इस मंदिर की महत्ता बहुत पुरानी है।
सुबह 4:00 बजे से ही मंदिर में दर्शन करने वालों की जयकारे की गूंज, धूप, अगरबत्ती की सुगंध इस मंदिर के चारों तरफ फैली हुई है। देवी मां की महिमा से प्रभावित होकर दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। आज नवरात्रि का पहला दिन है। पहले दिन हर्षोल्लास के साथ पूजा-अर्चना करते देवी मंदिरों में लोग नजर आ रहे हैं।
यह भी पढ़ें: नवरात्रि में रहता है गरबा का क्रेज, नहीं देखता धर्म, नहीं रहता कोई भेद
मान्यता यह है कि भक्तों की सच्चे मन से मांगी मुराद पूरी हो जाती है। नवरात्रि के समय बुढ़िया माई मंदिर पर दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी हुई है। भक्त माता के जयकारे लगते हुए बुढ़िया माई के दर्शन कर रहे हैं।
लोगो का कहना है कि नवरात्रि में यहां 25 हजार के करीब श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं और माता सबकी मुराद पूरी करती हैं।
यह भी पढ़ें: कलश स्थापना के साथ करें नवरात्रि की शुरुआत, मां शैलपुत्री भरेगी आपका घर बार
मंदिर के पुजारी रामानंद इतिहास के बारे में बताते हैं कि प्राचीन समय में जंगल के बीचो-बीच बातें नाले पर एक पाठ का पुल था। उस से होकर लोग आते-जाते थे। काफी पहले एक दिन किसी हरिजन की बारात को स्कूल से होकर जाना था। स्कूल के समीप जब बारात आकर रुकी तो सामने एक बुजुर्ग महिला सफेद वस्त्र में बैठी थी। उस ने बारातियों के साथ जा रहे नाच मंडली के लोगों को नाच दिखाने का निवेदन किया तो सब ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया।
यह भी पढ़ें: इस शक्तिपीठ में मां के इस रूप का है निवास , दर्शनमात्र से होता है सबका कल्याण
जबकि उन्हीं में से एक जोकर ने बांसुरी बजाते हुए पांच बार नाच दिया तो प्रसन्न बुढ़िया ने जोकर को आगाह करते हुए कहा कि बारात वापसी के दौरान तुम इन लोगों के साथ पुल पार ना करना। तीसरे दिन जब बारात वापस पुल के पास पहुंची तो बुढ़िया दूसरे छोर पर मौजूद थी। जिसे देखकर जोकर को उसकी कही बात याद आ गई और वह पुल पर चढ़ने से पहले रुक गया।
शेष लोग जैसे ही पुल के बीच पहुंचे, वह टूट गया और सभी लोग पानी में डूब गए। डूबने से बचे इकलौते एक इंसान ने इस बात का खुलासा किया, तब से इसे बुढ़िया माई पीठ के नाम से जाना जाता है।