Devshayani Ekadashi 2022 Today: देवशयनी एकादशी आज, 4 माह तक भगवान विष्णु करेंगे विश्राम, वर्जित होंगे शुभ काम
Devshayani Ekadashi 2022 Today : आषाढ़ माह में मौसम के परिवर्तन के साथ त्योहार का हर्षोल्लास भी शुरू होता है। वैसे तो पूरे साल व्रत त्योहार आते है। खासकर साल की 24 एकादशियां। इनमें आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी का खास महत्व है। इस दिन से चार माह तक भगवान विष्णु विश्राम करते हैँ। इस साल भी 9 -10 जुलाई से भगवान श्रीहरि का विश्रामकाल चातुर्मास शुरू होगा।
Devshayani Ekadashi 2022 Today
हरिशयनी (देवशयनी) एकादशी 2022
हिंदू धर्म में आषाढ़ माह का बहुत महत्व है। इस माह में मौसम के परिवर्तन के साथ त्योहार का हर्षोल्लास भी शुरू होता है। वैसे तो पूरे साल व्रत त्योहार आते है। खासकर साल की 24 एकादशियां। इनमें आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी का खास महत्व है। इस दिन से चार माह तक भगवान विष्णु विश्राम करते हैँ। इस साल भी 9 -10 जुलाई से भगवान श्रीहरि का विश्रामकाल चातुर्मास शुरू होगा।
आषाढ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी या हरिशयनी एकादशी कहते हैं। इस दिन से सृष्टि के पालनहार का निद्रा काल शुरू हो जाता है। वैसे तो सारी एकादशियों का अपना महत्व है, लेकिन देवशयनी एकादशी के दिन व्रत और पूजा से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है। इस साल 2022 में देवशयनी या हरिशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) 10 जुलाई को पड़ेगी।
देवशयनी एकादशी के दिन से ही भगवान विष्णु के निद्राकाल के साथ चतुर्मास शुरू हो जाता है। इस दिन से सारे शुभ काम वर्जित रहते हैं। शादी, मुंडन गृह प्रवेश और सोलह संस्कारों में से कुछ शुभ काम बंद हो जाते है। चतुर्मास अवधि आषाढ़ के एकादशी से कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी तक रहता है।
देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
देव शयनी एकादशी आषाढ़ शुक्ल पक्ष तिथि समाप्त- 10 जुलाई दोपहर 02:13 तक
देवशयनी एकादशी व्रत- उदयातिथि के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत व पूजन 10 जुलाई को किया जाएगा।
शुभ योग- 10 जुलाई सुबह 04:02 से 11 जुलाई दोपहर 12:45 तक।
एकादशी तिथि शुरू - जुलाई 09 , 2022 को 04:39 PM बजे
एकादशी तिथि समाप्त - जुलाई 10 , 2022 को 02:13 PM बजे
पारण का समय- 11 जुलाई सुबह 05:52 से 08:32 तक
शुभ काल
अभिजीत मुहूर्त - 12:05 PM से 12:58 PM
अमृत काल - 10:20 PM से 11:48 PM
ब्रह्म मुहूर्त - 04:15 AM से 05:03 AM
शुभ - 04:02 AM से 12:45 AM
देवशयनी एकादशी व्रत पूजा करते समय भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें।विष्णु भगवान के श्री चरणों में धूप दीप तथा पुष्पा चावल अर्पित कर ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें।
इस व्रत धारण करने वाले जातक को दशमी के दिन से ही रात्रि को भोजन के साथ नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। तथा देवशयनी एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शारीरिक स्वच्छ होकर पूजा स्थान की साफ सफाई करनी चाहिए।मान्यता रखता है कि इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए शयन अर्थात भगवान विष्णु के सोने का समय होता है। इस दिन से लेकर अगले आने वाले 4 मास तक कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह आदि करना शुभ नहीं रहता। इसके दौरान जितने भी पर्व, व्रत, उपवास, साधना, आराधना, जप-तप किए जाते हैं, उनका विशाल स्वरूप एक शब्द में 'चातुर्मास्य' कहलाता है। इस समय पर किए गए सभी जप तप व्रत आदि मनोवांछित फलों की प्राप्ति होता हैं। इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के चलते इस व्रत को धारण किया जाता है।
हरिशयनी एकादशी के दिन श्रीविष्णु को नये वस्त्र और नये बिस्तर पर सुलाया जाता है। ऐसा करने से भगवान विष्णु भक्तों से प्रसन्न होते हैं और उन्हें मनचाहा आर्शीवाद देते हैं।भगवान को सुलाने के लिए आप संध्या के समय पूजन के बाद 'सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जनत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचम्' मंत्र का जाप करें।
मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा काल से पहले सारा कार्यभार भगवान शिव को सौंप कर 4 माह के लिए राजा बलि के यहां निद्रा शयन में जाते हैं। इसी चतुर्मास के दौरान सावन का पवित्र माह शुरू होता है। इस दौरान शिव पूजन और उनकी महिमा का बखान करना अतिउत्तम होता है।
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