चातुर्मास तक शुभ काम निषेध, इस दिन से शुरु हो रहा भगवान विष्णु का शयन काल

देवशयनी एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगले दिन प्रात: काल उठकर स्नान कर  व्रत का संकल्प करें भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करना चाहिए। 

Update:2019-07-09 08:46 IST

जयपुर: आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस बार देवशनी एकादशी 12 जुलाई 2019 को है।इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ होता है। देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी और पद्मनाभा कहते हैं। सभी उपवासों में देवशयनी एकादशी व्रत श्रेष्ठ है। इस व्रत को करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, तथा सभी पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना करने का महत्व होता है क्योंकि इसी रात्रि से भगवान का शयन काल शुरु होता है ।

पुरानी दिल्ली के हौज काजी में दुर्गा प्रतिमा की पुनर्स्थापना आज, VHP करेगी धर्म सभा

विधि

देवशयनी एकादशी के विषय में पुराणों में विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है जिनके अनुसार इस दिन से भगवान श्री विष्णु चार मास की अवधि तक पाताल लोक में निवास करते है।कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्री विष्णु उस लोक के लिये गमन करते है और इसके पश्चात चार माह के अतंराल बाद सूर्य के तुला राशि में प्रवेश करने पर विष्णु भगवान का शयन समाप्त होता है तथा इस दिन को देवोत्थानी एकादशी का दिन होता है। इन चार माहों में भगवान श्री विष्णु क्षीर सागर की अनंत शय्या पर शयन करते है। इसलिये इन अवधियों में कोई भी धार्मिक कार्य नहीं किया जाता है।

9जुलाई :इन राशियों को मिलेगा माता-पिता का साथ,जानिए पंचांग व राशिफल

देवशयनी एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगले दिन प्रात: काल उठकर स्नान कर व्रत का संकल्प करें भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करना चाहिए। पंचामृत से स्नान करवाकर, तत्पश्चात भगवान की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए। भगवान को ताम्बूल, पुंगीफल अर्पित करने के बाद मन्त्र द्वारा स्तुति की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त शास्त्रों में व्रत के जो सामान्य नियम बताये गए है, उनका सख्ती से पालन करना चाहिए।

इन मंत्रों का सावन मास में 30 दिन करें जाप,सुख-समृद्धि का भगवान शिव से मिलेगा वरदान

व्रत कथा

प्रबोधनी एकादशी से संबन्धित एक पौराणिक कथा प्रचलित है। सूर्यवंशी मान्धाता नम का एक राजा था। वह सत्यवादी, महान, प्रतापी और चक्रवती था। वह अपनी प्रजा का पुत्र समान ध्यान रखता है। उसके राज्य में कभी भी अकाल नहीं पडता था। परंतु एक समय राजा के राज्य में अकाल पड गया अत्यन्त दु:खी प्रजा राजा के पास जाकर प्रार्थना करने लगी यह देख दु;खी होते हुए राजा इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन ढूंढने के उद्देश्य से सैनिकों के साथ जंगल की ओर चल दिए घूमते-घूमते वे ब्रह्मा के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंच गयें। राजा ने उनके सम्मुख प्रणाम उन्हें अपनी समस्या बताते हैं। इस पर ऋषि उन्हें एकादशी व्रत करने को कहते हैं. ऋषि के कथन अनुसार राज एकादशी व्रत का पालन करते हैं ओर उन्हें अपने संकट से मुक्ति प्राप्त होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपने चित, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता है।एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

Tags:    

Similar News