2022 में दिवाली का शुभ मुहूर्त कब हैं (Diwali Kab Hai 2022 ki Date) : जानिए पूजा विधि और इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएं
Diwali Kab Hai 2022 ki Date : अच्छाई पर बुराई का प्रतीक दिवाली का त्योहार इस साल कार्तिक मास की अमावस्या को अक्टूबर में पड़ रहा है। इस दिन हम दियों की रौशनी से घर-बाहर रौशनी करती है। एक तरह से दिवाली अंधकार पर विजय का पर्व है, जिससे जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं हैं तो जानते है दिवाली की तिथि और मुहूर्त...
Diwali Kab Hai 2022 ki
दिवाली कब है 2022 की
रौशनी का त्योहार दिवाली अंदर बाहर दोनों तरफ अंधकार मिटाता है। इस दिन हम अध्यात्मिक और समाजिक होकर दीपात्सव मनाते हैं और घर बाहर साफ कर मां लक्ष्मी के आगमन का इंतजार करते हैं। अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला दीपों का उत्सव दीपावली इस साल 2022 में 24 अक्टूबर को है। दिवाली या दीपावली जो भी कहे मतलब को वातावरण को रौशन करना है। दिवाली को हिंदू, सिक्ख, बौध व जैन धर्म में मनाया जाता है। सनातन धर्म में इस दिन लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन किया जाता है।
हर साल कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दीपावली मनाई जाती है। अमावस्या तिथि पर प्रदोष काल में दिवाली पर लक्ष्मी पूजन करने का विधान है। कहते हैं लंका पर विजय पाकर रावण के बाद 14 वर्ष का वनवास पूरा करके श्रीरामजी दिवाली के दिन ही अयोध्या आएं थे। तो पूरी नगरी को रौशन किया गया था।
2022 में दीपावली कब है शुभ -मुहूर्त
इस बार दिवाली पर अमावस्या तिथि 24 अक्टूबर और 25 अक्टूबर को है। लेकिन, 25 तारीख को अमावस्या तिथि प्रदोष काल से पहले ही समाप्त हो जा रही है और 24 अक्टूबर को प्रदोष काल में अमावस्या तिथि मौजूद रहेगी। उसी दिन निशित काल में भी अमावस्या तिथि रहेगी। इसलिए 24 अक्टूबर को ही पूरे देश में दीपावली का पर्व मनाया जाएगा।
दिवाली का शुभ मुहूर्त पूरे दिन होता है। इस दिन से पहले घर के हर कोने को अच्छे से साफ कर लिया जाता है। फिर दिवाली के दिन शाम के बाद शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी का पूजन करते हैं। जानते हैं...
- अमावस्या तिथि प्रारंभ -24 अक्टूबर 2022 को शाम 05:29 से शुरू होकर
- अमावस्या तिथि समाप्ति- 25 अक्टूबर 2022 को शाम 04:20 तक रहेगी.
- लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त -18:54:52 से 20:16:07 तक
- पूजा की अवधि- 1 घंटे 21 मिनट
- प्रदोष काल मुहूर्त -17:43:11 से 20:16:07 तक
- वृषभ लग्न- 18:54:52 से 20:50:43 तक
- दिवाली विशेष काल मुहूर्त पूजा
- लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त :23:40 pm से 24:31 तक
- पूजा अवधि :0 घंटे 50 मिनट
- महानिशीथ काल :23:40 से 24:31
- सिंह काल :25:26 से 27:44
दिवाली की पूजा विधि
दिवाली दीपों का त्योहार है जो अंधकार को दूर करता है। यह संस्कृत शब्द दीपावली से बना है जिसका अर्थ होता है प्रकाशोत्सव। आपको बता दें कि दिवाली एक दिन का नहीं 5 दिवसीय त्योहार है जो धनतेरस से शुरू होता है और भाईदूज को खत्म होता है। इस बार –
22 अक्टूबर को धनतेरस
23 अक्टूबर को नरक चतुर्दशी
24 अक्टूबर को दिवाली
25 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा
26 अक्टूबर को भाई दूज है।
दिवाली की पूजा हमेशा स्थिर लग्न में करनी चाहिए। इससे लक्ष्मी स्थायी रुप से रहती है। समृद्धि हमेशा बनी रहती है। इसके लिए इस दिन लक्ष्मी पूजन के लिए चौकी लें, उस पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें और जल से भरा एक कलश रखें। जल, मौली, चावल, फल, गुड़, अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें। इसके साथ देवी सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु और कुबेर देव की भी विधि विधान से पूजा करें। महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार को एक साथ करना चाहिए।
इस दिन संध्या और रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में महालक्ष्मी स्वर्ग से धरती पर आती हैं और हर घर में विचरण करती हैं। इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ और प्रकाशमान होता है वहां मां लक्ष्मी ठहर जाती है। मां लक्ष्मी के साथ कुबेर पूजा भी की जाती है। पूजन के दौरान पहले घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में वातावरण की शुद्धि और पवित्रता पर ध्यान दिया जाता है। पूरे घर में इसके लिए गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए। रंगोली और दीपों से घर को सजाना चाहिए। यह त्योहार देश के हर कोने में धूमधाम से मनाया जाता है। खासकर राजस्थान, बिहार , उत्तर प्रदेश में दीपावाली की रौनक देखते ही बनती है।
दिवाली का पूजन कब करें
मान्यता है कि देवी लक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन करना सही रहता है। क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। और अगर कोई स्थिर लग्न के समय पूजा करें तो माता लक्ष्मी वहां घर में ठहर जाती है। उनकी कृपा बरसती है। इसके अलावा लक्ष्मी पूजन के लिए महानिशीथ काल भी महत्व रखता है। इस काल में मां काली की पूजा का विधान है।
दिवाली की शुरुआत और धार्मिक मान्यताएँ
दीपोत्सव के दिन मां लक्ष्मी अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाती है। इस दिन घर का हर कोना रौशन किया जाता है। क्योंकि मान्यता है कि श्रीराम जी इसी दिन अयोध्या लौटे थे और उनके आगमन से अयोध्या जगमागा उठी थी। मतलब कि कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्री राम चंद्र जी चौदह वर्ष का वनवास काटकर और लंकापति रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। इस दिन भगवान श्री राम चंद्र जी के अयोध्या आनें की खुशी पर लोगों ने दीप जलाकर उत्सव मनाया था। तभी से दिवाली की शुरुआत हुई।
इसके अलावा एक बार नरकासुर नामक राक्षस ने अपनी असुर शक्तियों से देवता और साधु-संतों को परेशान कर दिया था। इस राक्षस ने साधु-संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था। नरकासुर के बढ़ते अत्याचारों से परेशान देवता और साधु-संतों ने भगवान श्री कृष्ण से मदद की गुहार लगाई। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवता व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई, साथ ही 16 हजार स्त्रियों को कैद से मुक्त कराया। इसी खुशी में दूसरे दिन यानि कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित पाकर खुशी से दीपावली मनाई थी। इसी दिन समुंद्र मंथन के दौरान क्षीरसागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं और उन्होंने भगवान विष्णु को पति के रूप में स्वीकार किया था।