Durga Puja 2022: क्या होता है देवी पखवाड़ा? कलश स्थापना से विजयदशमी तक जानें प्रमुख तिथियां
Durga Puja 2022: पूरे भारतवर्ष में यह त्यौहार अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल में इसका कुछ ज्यादा ही विशेष आयोजन होता है। वहां पर दुर्गा पूजा का अलग ही स्तर देखने को मिलता है।
Navratri 2022: भारत में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं जिनमें से एक है दुर्गा पूजा भी है जिसे उत्तर भारत में नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में देवी शक्ति के विभिन्न रूपों की उपासना और आराधना का उत्सव ही दुर्गा पूजा कहलाता है । पूरे भारतवर्ष में यह त्यौहार अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल में इसका कुछ ज्यादा ही विशेष आयोजन होता है। वहां पर दुर्गा पूजा का अलग ही स्तर देखने को मिलता है।
बता दें कि देवी दुर्गा की पूजा के लिए खूबसूरत पंडालों का निर्माण किया जाता है। जिसमें सबसे सुंदर और आकर्षक पंडाल को प्रशासन के तरफ से पुरस्कार भी दिया जाता है। इस अवसर पर अलग-अलग स्थान पर कई तरह सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। उल्लेखनीय है कि दुर्गा पूजा के उत्सव की तिथियां हिंदू पंचांग के अनुसार ही निर्धारित की जाती हैं। आपको बता दें कि जिन 15 दिन की अवधि में यह त्यौहार पड़ता है उसे देवी पक्ष या देवी पखवाड़ा के नाम से भी जाना जाता है।
कब है दुर्गा पूजा
इस साल दुर्गा पूजा वैसे तो 26 सितम्बर को कलश स्थापना के साथ ही शुरू हो जायेगी लेकिन षष्ठी तिथि से शुरू होने वाली पूजा 01 अक्टूबर से ही शुरू होकर दशमी के दिन 05 अक्टूबर के दिन विसर्जन के बाद समाप्त हो जायेगी।
दुर्गा पूजा प्रारम्भ तिथि 01-10-2022
दुर्गा पूजा विसर्जन तिथि 05-10-2022
आइये जानते हैं दुर्गा पूजा में किस दिन किस देवी की होगी पूजा
षष्ठी 01-10-2022 शनिवार कात्यायनी माता
सप्तमी 02-10-2022 रविवार कालरात्रि माता
अष्टमी 03-10-2022 सोमवार महागौरी माता
नवमी 04-10-2022 मंगलवार सिद्धिदात्री माता
दशमी 05-10-2022 बुधवार विजयादशमी
जानें क्यों मनाते हैं दुर्गा पूजा
उत्तर भारत में यह पर्व नवरात्रि के नाम से जाना जाता है जिसमें 9 दिन तक मां शक्ति की आराधना कर दसवें दिन विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है जो रावण पर भगवान श्री राम बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। बता दें कि उत्तर भारत में जहां इस दौरान रामलीला का मंचन हो रहा होता है, वहीं पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में दृश्य परिवर्तन हो जाता है। हालाँकि यहां भी इस उत्सव को बुराई पर अच्छाई के रूप में ही मनाते हैं लेकिन यहां पर यह त्यौहार मुख्य रूप से मां दुर्गा से जुड़ा हुआ माना जाता है।
पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी की आराधना से जुडी जो दो कथाएं प्रचलित हैं,
उत्तर भारत में प्रचलित है ये कथा :
जब राजा दशरथ ने भगवान श्री राम और माता सीता को वनवास का आदेश दिया, तब एक दिन वन में रहते हुए रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था । रावण को उसके अपराध का दंड देने के लिए और माता सीता को वापस लाने के लिए भगवान श्री राम ने रावण पर आक्रमण कर कई दिनों तक युद्ध लड़ा । अंत में भगवान् श्री राम की विजय हुई। मान्यताओं के अनुसार श्री राम ने अपनी विजय प्राप्ति के लिए माता दुर्गा की आराधना कर दसवीं तिथि को रावण का वध किया था । धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इसी उपलक्ष्य में विजयदशमी का उत्सव बुराई पर अच्छाई के जीत के रूप में मनाया जाता है।
पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में प्रचलित कथा :
वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में मां दुर्गा से जुड़ी हुई कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार एक बार महिषासुर ने तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन किया। ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर महिषासुर को वरदान मांगने के लिए कहा, तब महिषासुर ने अपने अमर होने का वरदान मांगा। इस पर ब्रह्माजी ने जवाब दिया कि जो इस संसार में आया है उसकी मृत्यु भी अवश्य होगी, इसलिए चाहो तो कोई दूसरा वरदान मांग सकते हो। तब महिषासुर ने बहुत सोचा और कहा मुझे यह वरदान दीजिए कि मेरी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों ही हो। तब ब्रह्माजी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए। महिषासुर अपने घमंड में चूर होकर ये सोचने लगा कि एक स्त्री भला मेरा क्या बिगाड़ सकती है, अब तो मैं अमर हो गया। अहंकार में आकर उसने सारे देवताओं को अधिकारहीन और पराजित करके स्वर्ग से निकाल दिया। सभी देवता एकत्रित होकर भगवान विष्णु और भगवान शिव के पास गए। महिषासुर की ऐसी करतूत सुनकर उन दोनों ने बड़ा क्रोध प्रकट किया। ऐसे में तभी उनके शरीर से एक तेज निकला। इसके अलावा सभी देवताओं के भीतर से जो शक्तियां निकली, उसने एक स्त्री का रूप धारण कर लिया जिसे दुर्गा कहा गया। पौराणिक प्रचलित कथा के मुताबिक़ महिषासुर और माता दुर्गा में घोर संग्राम छिड़ गया। और यह संग्राम पुरे 10 दिनों तक चला और दशमी तिथि को माता दुर्गा में ने महिषासुर का वध कर महिषासुरमर्दिनि कहलाईं।
इस प्रकार गौरतलब है कि मान्यता या कथा चाहे जो भी हो लेकिन यह पर्व हर रूप में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
दुर्गा पूजा का विशेष है महत्त्व (Durga Puja Importance)
भारतीय संस्कृति में दुर्गा पूजा के पर्व का विशेष महत्व माना गया है। बता दें कि यह पर्व 9 दिनों तक मनाया जाता है लेकिन स्थान और परंपरा के अनुसार इसमें समय-समय पर परिवर्तन हो जाता है। जहाँ कुछ लोग इसे 5 या 7 दिनों तक मनाते हैं। तो कुछ लोग इसे 9 दिनों तक उपवास रखकर मां दुर्गा की पूजा -उपासना करते हैं। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में यह पर्व षष्ठी तिथि से शुरू होकर दशमी तिथि को समाप्त होता है। दुर्गा पूजा के दौरान जगह-जगह पर सजे हुए मनमोहक पांडाल अलग ही रौनक प्रकट करते हैं। इसके अलावा माता के विभिन्न मंदिरों में दुर्गा पाठ, जागरण, माता की चौकी और भजन भी होते रहते हैं। इसके अलावा कुछ भक्त घर में ही पूजा-पाठ करके माता को प्रसन्न करते हैं। इतना ही नहीं 9 दिनों तक माता की पूजा कर मूर्ति का विसर्जन नदी, समुद्र या किसी जलाशय में पूरी श्रद्धा के साथ कर दिया जाता है। नारी शक्ति का प्रतीक होने के कारण यह पर्व और भी ज्यादा विशेष हो जाता है।
पूरे देशभर में दुर्गा पूजा का उल्लास देखने लायक होता है लेकिन हर जगह के अनुसार इस पर्व से जुड़े रिवाजों और परंपराओं में परिवर्तन आ जाता है। इससे जुड़े कुछ मुख्य रिवाज़ इस प्रकार हैं :
कलश स्थापना
यह एक महत्वपूर्ण रिवाज़ है। नवरात्री के प्रथम दिन माता की प्रतिमा के साथ जौ बो के कलश भी स्थापित किया जाता है।
देवी की प्रतिमा
दुर्गा पूजा के दौरान माँ दुर्गा के जगह -जगह अलग-अलग पंडाल और दरबार भी सजाए जाते हैं। इसमें शेर पर बैठी हुई माँ दुर्गा की मूर्ति के नीचे महिषासुर मरणासन्न स्थिति पड़ा होता है। इसके बाएं तरफ लक्ष्मी माता और गणेश जी की प्रतिमा एवं दाएं तरफ सरस्वती जी और कार्तिका देवी की प्रतिमाएं होती हैं। इसके अलावा इसमें अन्य देवी-देवताओं के चित्र और मूर्तियाँ भी होती हैं।
चोखूदान
हिन्दू धर्म शस्त्रों में आँखदान की यह काफी प्राचीन परंपरा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब देवी के पंडाल के लिए प्रतिमाएं तैयार की जाती थी तो आँखें आखिर में बनाई जाती थी । धर्म शास्त्रों के अनुसार यह नेत्र दान की ही परंपरा मानी जाती है। लेकिन आजकल बदलते माहौल में प्रतिमाओं के साथ ही आँखे भी बनाकर प्रतिमाएं सौंपी जाती हैं।
पुष्पांजलि
अष्टमी तिथि को दुर्गा माता को पुष्प, फल , वस्त्र आदि अर्पित करते हुए पुष्पांजलि की परंपरा बेहद खास है।
कन्या पूजन
अष्टमी या नवमी को 9 कन्याओं को बिठाकर उनकी पूजा कर भोजन कराया जाता है। यह नवदुर्गा पूजा की एक बेहद महत्वपूर्ण परंपरा है जिसमे 1 वर्ष से 16 वर्ष की कन्याओं का पूजन होता है।
सिंदूर खेला
बंगाल में महिलाएं दशमी तिथि को एक दूसरे को सिंदूर लगाकर अपने अखंड सुहाग की कामना करती हैं। बता दें कि ये ये सिंदूर की होली को सिंदूर खेला की परंपरा के नाम से जाना जाता है।
विजयदशमी
दशमी तिथि को दुर्गा माता की मूर्ति का विसर्जन किसी नदी , तालाब या जलाशय में पूरी श्रद्धा के साथ किया जाता है। मान्यता है कि उन्होंने इसी दिन महिषासुर का वध किया था जिस कारण इसी दिन दशहरे का पर्व भी बड़े धूम -धाम से मनाया जाता है जिसमें श्री राम का रूप रखे बालक रावण के पुतले का वध अपने तीर से करते हैं।