माथे पर तिलक लगाना हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग है। हिंदू संस्कृति में तिलक को विभिन्न रूपों में लगाया जाता है। स्त्री हो या पुरुष, आज्ञा चक्र पर तिलक लगाने का रिवाज रहा है। हिन्दू परम्परा में तिलक लगाना शुभ माना जाता है और इसे सात्विक होने का प्रतीक माना जाता है। वैसे, तिलक लगाने के पीछे आध्यात्मिक भावना के साथ-साथ दूसरे तरह के लाभ की कामना भी होती है।
आज्ञा चक्र पर तिलक करने से आज्ञाचक्र को नियमित रूप से उत्तेजना मिलती रहती है। इससे सजग रूप में हम भले ही उससे जागरण के प्रति अनभिज्ञ रहें, पर अनावरण का वह क्रम अनवरत चलता रहता है। मनुष्य उर्जावान, तनावमुक्त, दूरदर्शी, विवेकशील होता है। उसकी समझ अन्य लोगों की तुलना में अधिक होती है। दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है, जिससे उदासी दूर होती है और मन में उत्साह जागता है। यह उत्साह लोगों को अच्छे कामों में लगाता है।
तिलक कई प्रकार का होता है जिसमें मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि सम्मिलित हैं। सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं। चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं।
तिलक लगाने की विधि
प्रत्येक उंगली से तिलक लगाने का अपना-अपना महत्व है जैसे मोक्ष की इच्छा रखने वाले को अंगूठे से तिलक लगाना चाहिए, शत्रु नाश करना चाहते हैं तो तर्जनी से, धनवान बनने की इच्छा है तो मध्यमा से और सुख-शान्ति चाहते हैं तो अनामिका से तिलक लगाएं। देवताओं को मध्यमा उंगली से तिलक लगाया जाता है। उत्तर भारत में तिलक आरती के साथ आदर, सत्कार और स्वागत कर तिलक लगाया जाता है।