Ganga Dussehra Aaj: ऐसे मनाएं गंगा दशहरा, इस आराधना से होगी मनोकामना पूर्ण
भीड़भाड़ से बचने के लिए और कोरोना संक्रमण के भय के चलते जो लोग गंगा स्नान करने नहीं जा पा रहे हैं वह नहाने के बर्तन या बाल्टी में पहले गंगाजल और फिर पानी मिलाकर स्नान करें।
Ganga Dussehra: ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की 10वीं तिथि को दशमी दशहरा कहते हैं। कहते हैं इस दिन गंगा का अवतरण हुआ था। स्कन्दपुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत्सरमुखी मानी गई है इसमें स्नान और दान का विशेष महत्व है। इसलिए इस दिन किसी भी नदी पर जाकर अर्घ्य (पूजादिक) एवं तिलोदक (तीर्थ प्राप्ति निमित्तक तर्पण) करें तथा उस नदी की स्वच्छता का भी ध्यान रखें। तभी आपका व्रत और मां गंगा की आराधना पूरी हो पाएगी। ऐसा करने वाला महापातकों के बराबर के दस पापों से छूट जाता है। ऐसा इसलिए कहा गया है ताकि आप अपने आस पास की नदियों का ध्यान रखे और मां गंगा की तरह उनको भी स्वच्छ रख सके समाज के लिए ऐसा काम करने वाला स्वयं पापो से मुक्त हो जाता है।
मान्यता है कि ज्येष्ठ शुक्ला दशमी के दिन यदि मंगलवार हो व हस्त नक्षत्र युता तिथि हो यह सब पापों को हरने वाली होती है। वराह पुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी बुधवार को हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी गंगा स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थी वह दस पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं। ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर, आनंद, व्यतिपात, कन्या का चंद्र, वृषभ के सूर्य इन दस योगों में मनुष्य स्नान करके सब पापों से छूट जाता है।
गंगाजल में मिलने पर सब गंगाजल हो जाता है
इस बार यह तिथि 20 जून को पड़ रही है। दशमी तिथि 19 जून शनिवार को शाम 06 बजकर 50 मिनट पर शुरू होगी। इसका समापन 20 जून रविवार को शाम 04 बजकर 25 मिनट पर होगा। भीड़भाड़ से बचने के लिए और कोरोना संक्रमण के भय के चलते जो लोग गंगा स्नान करने नहीं जा पा रहे हैं वह नहाने के बर्तन या बाल्टी में पहले गंगाजल और फिर पानी मिलाकर स्नान करें। क्योंकि गंगाजल में मिलने पर सब गंगाजल हो जाता है ऐसी मान्यता है। नहाने के बाद सबसे पहले सूर्यदेव को अर्घ्य दें। फिर 'ऊं श्री गंगे नमः' का उच्चारण करते हुए मां गंगे का स्मरण करके अर्घ्य दें। इसके बाद गंगा मैया की पूजा- आराधना करें।
लेकिन साधना या आराधना तब तक पूर्णता को प्राप्त नहीं होती जब तक अपनी सामर्थ्य के अनुरूप दान न किया जाए। इस दिन निराश्रितों एवं ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से गंगा मैया की कृपा से श्रद्धालु के जीवन में कभी कोई दिक्कत नहीं आती। भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि, जो मनुष्य गंगा दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार इस स्तोत्र को पढ़ता है चाहे वो दरिद्र हो, चाहे असमर्थ हो प्रयत्नपूर्वक गंगा की पूजा कर उस फल को पा जाता है।
स्कंद पुराण का कहा हुआ दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र और उसके पढ़ने की विधि
- सब अवयवों से सुंदर तीन नेत्रों वाली चतुर्भुजी जिसके कि, चारों भुज, रत्नकुंभ, श्वेतकमल, वरद और अभय से सुशोभित हैं, सफेद वस्त्र पहने हुई है।
मुक्ता मणियों से विभूषित है, सौम्य है, अयुत चंद्रमाओं की प्रभा के सम सुख वाली है जिस पर चामर डुलाए जा रहे हैं, वाल श्वेत छत्र से भलीभाँति शोभित है, अच्छी तरह प्रसन्न है, वर के देने वाली है, निरंतर करुणार्द्रचित्त है, भूपृष्ठ को अमृत से प्लावित कर रही है, दिव्य गंध लगाए हुए है, त्रिलोकी से पूजित है, सब देवों से अधिष्ठित है, दिव्य रत्नों से विभूषित है, दिव्य ही माल्य और अनुलेपन है, ऐसी गंगा के पानी में ध्यान करके भक्तिपूर्व मंत्र से अर्चना करें। 'ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा' यह गंगाजी का मंत्र है।
इसका अर्थ है कि, हे भगवति गंगे! मुझे बार-बार मिल, पवित्र कर, पवित्र कर, इससे गंगाजी के लिए पंचोपचार और पुष्पांजलि समर्पण करें। इस प्रकार गंगा का ध्यान और पूजन करके गंगा के पानी में खड़े होकर ॐ अद्य इत्यादि से संकल्प करें कि, ऐसे-ऐसे समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर दशमी तक रोज-रोज एक बढ़ाते हुए सब पापों को नष्ट करने के लिए गंगा स्तोत्र का जप करूँगा। पीछे स्तोत्र पढ़ना चाहिए। ईश्वर बोले कि, आनंदरूपिणी आनंद के देने वाली गंगा के लिए बारंबार नमस्कार है।
विष्णुरूपिणी के लिए और तुझ ब्रह्म मूर्ति के लिए बारंबार नमस्कार है।। 1।।
तुझ रुद्ररूपिणी के लिए और शांकरी के लिए बारंबार नमस्कार है, भेषज मूर्ति सब देव स्वरूपिणी तेरे लिए नमस्कार है।। 2।।
सब व्याधियों की सब श्रेष्ठ वैद्या तेरे लिए नमस्कार, स्थावर जंगमों के विषयों को हरण करने वाली आपको नमस्कार।। 3।।
संसाररूपी विष के नाश करने वाली एवं संतप्तों को जिलाने वाली तुझ गंगा के लिए नमस्कार ; तीनों तापों को मिटाने वाली प्राणेशी तुझ गंगा को नमस्कार।। 4।।
मूर्ति तुझ गंगा के लिए नमस्कार, सबकी संशुद्धि करने वाली पापों को बैरी के समान नष्ट करने वाली तुझ...।। 5।।
भुक्ति, मुक्ति, भद्र, भोग और उपभोगों को देने वाली भोगवती तुझ गंगा को।। 6।।
तुझ मंदाकिनी के लिए देने वाली के लिए बारंबार नमस्कार, तीनों लोकों की भूषण स्वरूपा तेरे लिए एवं तीन पंथों से जाने वाली के लिए बार-बार नमस्कार। कोई इस श्लोक में 'त्रिपथायै' इसके स्थान में 'जगद्धात्रैय' ऐसा पाठ करते हैं। इसका अर्थ होता है कि, जगत् की धात्री के लिए नमस्कार।। 7।। तीन शुक्ल संस्थावाली को और क्षमावती को बारंबार नमस्कार तीन अग्नि की संस्थावाली तेजोवती के लिए नमस्कार है, लिंग धारणी नंदा के लिए नमस्कार तथा अमृत की धारारूपी आत्मा वाली के लिए नमस्कार कोई 'नारायण्यै नमोनम:' नारायणी के लिए नमस्कार है ऐसा पाठ करते हैं।। 8।। संसार में आप मुख्य हैं आपके लिए नमस्कार, रेवती रूप आपके लिए नमस्कार, तुझ बृहती के लिए नमस्कार एवं तुझ लोकधात्री के लिए नम: है।। 9।।
संसार की मित्ररूपा तेरे लिए नमस्कार, तुझ नंदिनी के लिए नमस्कार, पृथ्वी शिवामृता और सुवृषा के लिए नमस्कार।। 10।। पर और अपर शतों से आढया तुझ तारा को बार-बार नमस्कार है। फंदों के जालों को काटने वाली अभित्रा तुझको नमस्कार है।। 11।। शान्ता, वरिष्ठा और वरदा जो आप हैं आपके लिए नमस्कार, उत्रा, सुखजग्धी और संजीवनी आपके लिए नमस्कार।। 12।। ब्रहिष्ठा, ब्रह्मदा और दुरितों को जानने वाली तुझको बार-बार नमस्कार।। 13।। सब आपत्तियों को नाश करने वाली तुझ मंगला को नमस्कार।। 14।। सबकी आर्तिको हरने वाली तुझ नारायणी देवी के लिए नमस्कार है। सबसे निर्लेप रहने वाली दुर्गों को मिटाने वाली तुझ दक्षा के लिए नमस्कार है।। 15।। पर और अपर से भी जो पर है उस निर्वाण के लिए देने वाली गंगा के लिए प्रणाम है। हे गंगे! आप मेरे अगाडी हों आप ही मेरे पीछे हों।। 16।।
मेरे अगल-बगल हे गंगे! तू ही रह हे गंगे! मेरी तेरे में ही स्थिति हो। हे गंगे! तू आदि मध्य और अंत सब में है। सर्वगत है तू ही आनंददायिनी है।। 17।। तू ही मूल प्रकृति है, तू ही पर पुरुष है, हे गंगे ! तू परमात्मा शिवरूप है, हे शिवे! तेरे लिए नमस्कार है।। 18।। जो कोई इस स्तोत्र को श्रद्धा के साथ पढ़ता या सुनता है वो वाणी शरीर और चित्त से होने वाले पापों से दस तरह से मुक्त होता है।। 19।। रोगी, रोग से विपत्ति वाला विपत्तियों से, बंधन से और डर से डरा हुआ पुरुष छूट जाता है।। 20।। सब कामों को पाता है मरकर ब्रह्म में लय होता है। वो स्वर्ग में दिव्य विमान में बैठकर जाता है।। 21।।
जो इस स्तोत्र को लिखकर घर में रख छोड़ता है उसके घर में अग्नि और चोर से भय नहीं होता एवं पापी ही वहाँ सताते हैं।। 22।। ज्येष्ठ शुक्ला हस्तसहित बुधवारी दशमी तीनों तरह के पापों को हरती है।। 23।। उस दशमी के दिन जो कोई गंगाजल में खड़ा होकर इस स्तोत्र को दस बार पढ़ता है जो दरिद्र हो या असमर्थ हो।। 24।। वो गंगाजी को प्रयत्नपूर्वक पूजता है तो उसे भी वही फल मिल जाता है जो कि पहले विधान से फल कहा है।। 25।। जैसी गौरी है वैसी ही गंगाजी है इस कारण गौरी के पूजन में जो विधि कही है वही विधि गंगा के पूजन में भी होती है।। 26।। जैसे शिव वैसे ही विष्णु और शिव में तथा श्री और गौरी में तथा गंगा और गौरी में जो भेद बताता है वो निरा मूर्ख है।। 28।। वो रौरवादिक घोर नरकों में पड़ता है। अदत्त का उपादान, अविधान की हिंसा।। 29।। दूसरे की स्त्री के साथ रमण, ये तीन (कायिक) शारीरिक पाप। पारुष्य, अनृत और चारों ओर की पिशुनता।। 30।। असंबद्ध प्रलाप ये चार तरह की वाणी। पाप; दूसरे के धन की चाह, मन से किसी का बुरा चीतना।। 31।।
मिथ्या का अभिनिवेश ये तीन तरह का मन का पाप, इन दसों तरह के पापों को हे गंगे आप दूर कर दें। 32।। ये दस पापों को हरती है, इस कारण इसे दशहरा भी कहते हैं, कोटि जन्म के होने वाले इन दस तरह के पापों से।। 33।। छूट जाता है इसमें संदेह नहीं है। हे गदाधर! यह सत्य है, सत्य है, इसमें संशय नहीं है ! यदि इस मंत्र से गंगा का पूजन करा दिया तो तीनों के दस, तीस और सौ पितरों को संसार से उबारती है।। 34।। कि, 'भगवती नारायणी दस पापों को हरने वाली शिवा गंगा विष्णु मुख्या पापनाशिनी रेवती भागीरथी के लिए नमस्कार है'। ज्येष्ठमास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार हस्त नक्षत्र गर, आनंद व्यतिपात, कन्या के चंद्र, वृष के रवि इन दशों के योग में जो मनुष्य गंगा स्नान करता है वो सब पापों से छूट जाता है।। 35।।
मैं उस गंगादेवी को प्रणाम करता हूँ जो सफेद मगर पर बैठी हुई श्वेतवर्ण की है तीनों नेत्रों वाली है, अपनी सुंदर चारों भुजाओं में कलश, खिला कमल, अभय और अभीष्ट लिए हुए हैं जो ब्रह्मा, विष्णु शिवरूप है चांदसमेद अग्र भाग से जुष्ट सफेद दुकूल पहने हुई जाह्नवी माता को मैं नमस्कार करता हूँ।। 36।। जो सबसे पहले तो ब्रह्माजी के कमण्डल में विराजती थी पीछे भगवान के चरणों का धोवन बनकर शिवजी की जटाओं में रह जटाओं का भूषण बनी पीछे जन्हु महर्षि की कन्या बनी, यही पापों को नष्ट करने वाली भगवती भागीरथी दिखती है।। 38।।