Gangaur 2022 Today: सौभाग्य की वृद्धि का प्रतीक गणगौर आज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि व उपाय
Gangaur 2022 Today: गणगौर का पर्व राजस्थान में मनाए जाता है, जो वहां की संस्कृति को परिलक्षित करते है। नवरात्रि के तीसरे दिन यानी की चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता यानि की मां पार्वती की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता और भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है।
Gangaur 2022 Today:
गणगौर तीज 2022 आज
आज चैत्र शुक्ल तृतीया का पावन पर्व हैं जिसे गौरी तीज या गणगौर (Gangaur) के रूप में जाना जाता हैं। 'गण' का अर्थ है शिव और 'गौर' का अर्थ पार्वती है। इस दिन को सौभाग्य तीज के नाम से भी जाना जाता है। आज के दिन सुहागन महिलाएं अपने सुहाग के प्यार के लिए और अविवाहित लड़कियां अच्छे वर के लिए यह व्रत रखती हैं। मुख्य तौर पर यह पर्व राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा में मनाया जाता हैं। होली के दूसरे दिन से चलने वाले इस त्योहार की शुरुआत चैत्र माह के पहले दिन से शुरू होती है। गणगौर पूजा भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। इस दिन को भगवान शिव ( lord shiva) और देवी पार्वती ( Goddess Parvati) के प्रेम और विवाह दिवस के रूप में मनाया जाता है।
गणगौर शुभ समय
राजस्थान में बहुत से त्योहार मनाए जाते है, जो वहां की संस्कृति को परिलक्षित करते है। नवरात्रि के तीसरे दिन यानी की चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता यानि की मां पार्वती की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता और भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है।
गणगौर तीज 2022 तिथि
तृतीया तिथि आरंभ: 03 अप्रैल, रविवार दोपहर 12:38 बजे से
तृतीया तिथि समाप्त : 04 अप्रैल, सोमवार दोपहर 01:54 बजे पर
गणगौर तीज व्रत 04 अप्रैल को रखा जाएगा।
गणगौर क्यो मनाते हैं?
ये पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है, इसे गौरी तृतीया भी कहते हैं। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से कुंवारी और सुहागिनें हर दिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी में जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन शाम के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। इस व्रत के करने से सुहागिनों का सुहाग अखण्ड रहता है।
होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से 16 दिवसीय गणगौर पूजा का पर्व शुरू होता है। इस पर्व के दिनों में कुंआरी और विवाहित महिलाएं, नवविवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं और वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। यह पर्व विशेष तौर पर केवल सुहागिन महिलाओं के लिए ही होता है। इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को और पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं। स्त्रियां नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाती हैं। कुंआरी कन्याएं भी सुयोग्य वर पाने के लिए गणगौर माता का पूजन करती है।
गणगौर तीज कैसे मनाते हैं?
चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को सुबह स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए। इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एक समय भोजन (एकासना ) करना चाहिए। इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईशर का रूप माना जाता है।इस दौरान सुहागिनें 16 श्रृंगार की सामग्री को चंदन, धूप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण करती है। इसके बाद गौरी जी को भोग लगाया जाता है। फिर कथा सुनकर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियां मांग भरती है।
गणगौर कथा
प्राचीन समय में पार्वती ने भगवान शिव को पति ( वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने को कहा- पार्वती ने उन्हें वर रूप में पाने की इच्छा जाहिर की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और उनसे शादी हो गई। बस उसी दिन से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है ।
सुहागिन स्त्रियां पति की लंबी उम्र के लिए पूजा करती हैं। गणगौर की पूजा चैत्र मास में की जाती है। स्त्रियां 16 दिन तक सुबह जल्दी उठकर बाग-बगीचे में जाती हैं दूब और फूल लेकर आती हैं । उस दूब से दूध के छीटें मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। थाली में दही, पानी, सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है। जहां पूजा की जाती उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहां विसर्जित की जाती है उस स्थान को ससुराल माना जाता है ।
पहला गणगौर मायके में
राजस्थान में गणगौर में मैदे का गुना बनता है। इसे ही चढ़ाया जाता है। नवविवाहित लड़िकयां पहली बार गणगौर मायके में मनाती है। फिर इसी गुने और सास के बायने के साथ ससुराल विदा हो जाती हैं। राजस्थानी में कहावत भी है तीज तींवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर। मतलब कि सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर 4 महीने का विराम लग जाता है।
गणगौर में करें ये काम
गणगौर तीज पर माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना करते समय देवी को सुहाग की सामग्री अर्पित करें और भगवान शिव को सफेद वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद भोग लगाएं और आरती करें। इस उपाय से घर में सुख-समृद्धि आती है।
माता पार्वती को शक्कर का भोग लगाकर उसका दान करने से भक्त को दीर्घायु प्राप्त होती है। दूध चढ़ाकर दान करने से सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलती है।
गणगौर तीज के दिन माता पार्वती को घी का भोग लगाने तथा उसका दान करने से रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा वह निरोगी हो जाता है।
गणगौर तीज के दिन लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने से भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।