Gangaur Kyu Manaya Jata Hai गणगौर क्यों मनाया जाता है? जानिए कब है गणगौर पूजा का समय और इससे जुड़ी कहानी

Gangaur Kyu Manaya Jata Hai गणगौर क्यों मनाया जाता है?: इस दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए और अविवाहित लड़कियां अच्छे वर के लिए यह व्रत रखती हैं। यह पर्व राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा में मनाया जाता हैं। 18 दिन चलने वाले इस त्योहार की शुरुआत चैत्र माह के पहले दिन से शुरू होता है।

Update:2023-03-09 07:19 IST

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Gangaur Kyu Manaya Jata Hai

गणगौर क्यों मनाया जाता है?

गणगौर  होली के दिन से शुरू होता है। और चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को खत्म होता है। यानि आज से गणगौर का आरंभ हो रहा है जो चैत्र शुक्ल तृतीया का पावन पर्व हैं जिसे गौरी तीज या गणगौर के रूप में जाना जाता हैं। गणगौर प्रेम एवं पारिवारिक सौहाद्र का एक पावन पर्व है, जिसे की हिन्दुवों द्वारा मनाया जाता है। गणगौर बना हुआ है दो शब्दों के मिलने से, गण और गौर। इसमें गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है। इस दिन को सौभाग्य तीज के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन सुहागन महिलाएं अपने सुहाग के प्यार के लिए और अविवाहित लड़कियां अच्छे वर के लिए यह व्रत रखती हैं। मुख्य तौर पर यह पर्व राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा में मनाया जाता हैं। 18 दिन चलने वाले इस त्योहार की शुरुआत चैत्र माह के पहले दिन से शुरू होता है। गणगौर पूजा भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। इस दिन को भगवान शिव और देवी पार्वती के प्रेम और विवाह दिवस के रूप में मनाया जाता है। राजस्थान में बहुत से त्योहार मनाए जाते है, जो वहां की संस्कृति को परिलक्षित करते है। नवरात्रि के तीसरे दिन यानी की चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता यानि की मां पार्वती की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता और भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है।


गणगौर क्यों मनाते हैं?

ये पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है, इसे गौरी तृतीया भी कहते हैं। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से कुंवारी और सुहागिनें हर दिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी में जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन शाम के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। इस व्रत के करने से सुहागिनों का सुहाग अखण्ड रहता है।

होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से 16 दिवसीय गणगौर पूजा का पर्व शुरू होता है। इस पर्व के दिनों में कुंआरी और विवाहित महिलाएं, नवविवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं और वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं।

चैत्र शुक्ल तृतीया का दिन गणगौर पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष तौर पर केवल सुहागिन महिलाओं के लिए ही होता है। इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को और पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं। ‍स्त्रियां नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाती हैं। कुंआरी कन्याएं भी सुयोग्य वर पाने के लिए गणगौर माता का पूजन करती है।

गणगौर 2023 कब है पूजा समय

इस साल 2023 में गणगौर का त्यौहार 24 मार्च 2023 को यानि शुक्रवार को मनाया जायेगा। गणगौर की तिथि की शुभ शुरुआत 23 मार्च 2023 को शाम 6 : 20 बजे होगी। और तिथति की समाप्ति 24 मार्च 2023 को शाम 5 ; 00 बजे होगी।

तृतीया तिथि शुरू : 18:20 – 23 मार्च 2023

तृतीया तिथि ख़त्म : 17:00 – 24 मार्च 2023

गणगौर कैसे मनाते हैं?

चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को सुबह स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए। इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एक समय भोजन (एकासना ) करना चाहिए। इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईशर का रूप माना जाता है।इस दौरान सुहागिनें 16 श्रृंगार की सामग्री को चंदन, धूप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण करती है। इसके बाद गौरी जी को भोग लगाया जाता है। फिर कथा सुनकर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियां मांग भरती है।

गणगौर की कथा

प्राचीन समय में पार्वती ने भगवान शिव को पति ( वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने को कहा- पार्वती ने उन्हें वर रूप में पाने की इच्छा जाहिर की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और उनसे शादी हो गई। बस उसी दिन से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है ।

सुहागिन स्त्रियां पति की लंबी उम्र के लिए पूजा करती हैं। गणगौर की पूजा चैत्र मास में की जाती है। स्त्रियां 16 दिन तक सुबह जल्दी उठकर बाग-बगीचे में जाती हैं दूब और फूल लेकर आती हैं । उस दूब से दूध के छीटें मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। थाली में दही, पानी, सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है। जहां पूजा की जाती उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहां विसर्जित की जाती है उस स्थान को ससुराल माना जाता है ।

गणगौर की शुरुआत मायके से क्योंं

राजस्थान में गणगौर में मैदे का गुना बनता है। इसे ही चढ़ाया जाता है। नवविवाहित लड़िकयां पहली बार गणगौर मायके में मनाती है। फिर इसी गुने और सास के बायने के साथ ससुराल विदा हो जाती हैं। राजस्थानी में कहावत भी है तीज तींवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर। मतलब कि सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर 4 महीने का विराम लग जाता है।

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