विशेष : सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति महादेव

Update: 2018-02-09 10:40 GMT

पूनम नेगी

देवों के देव महादेव की सर्वोपरि विशिष्टता यह है कि वे जितने साधारण हैं उतने ही विलक्षण व असाधारण भी। महादेव साधन नहीं भक्त की पात्रता व भाव देखते हैं। यही वजह है कि हर खासोआम महादेव से पूरी सहजता से जुड़ाव महसूस करने लगता है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव के स्वरूप में बहुत कुछ ऐसा है जो इंसान को गहरी सीख और संबल देने वाला है। उनके व्यक्तित्व में सृष्टि की सारी विशेषताएं और जटिलताएं समाहित हैं। शिव हर जगह समान रूप से पूजित हैं।

राक्षस भी उन्हें पूजते रहे हैं और आर्य जन भी। राम ने रावण पर विजय पाने के लिए पहले शिव की पूजा की तो रामेश्वरम बना और रावण ने तो कैलाश उठाकर लंका ले जाने की ठानी थी पर शिव की शर्त थी कि जहां तुम मुझे रख दोगे बस मैं वहीं का हो जाऊंगा।

रावण को इसी बीच लघुशंका महसूस हुई तो उसने शिवलिंग को कैलाश के शिखर पर रख दिया। बस शिव वहीं जम गए। आदिवासी समाज की उनमें जितनी श्रद्धा है, उतनी ही नगरीय समाज की भी। चूंकि रावण ने साक्षात् शिव को कैलाश पर्वत के शिखर पर रखा था, इसलिए कैलाश को ही शिव का निवास माना गया है।

आनंद का संदेश देते हैं महादेव

महादेव ऐसे योगी हैं जो हर परिस्थिति में शांत और धैर्यवान रहते हैं। शिव का यही स्वरूप सिखाता है कि जिंदगी में हमेशा आनंदित रहने का प्रयास करना चाहिए। परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों, अपने मन को स्थिर और चित्त को शांत रखने की कोशिश जरूरी है। हर हाल में आनंदित होने का भाव जीवन में संतुष्टि का आधार तैयार करता है। आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में छोटी-छोटी बातें भी हमें विचलित कर जाती हैं।

यह सच है कि अनुकूल परिस्थितियां मन को सुखी और आनंदित करती हैं, पर हालात प्रतिकूल होने पर भी हिम्मत से डटे रहना और खुद को थामे रखना गहरी संतुष्टि और आत्मविश्वास देता है। ऐसे में भोलेनाथ से मिली यह सीख वाकई जीवन को सुखद और सार्थक दिशा दे सकती है। नकारात्मक समय में सकारात्मक सोच रखना जीवन का सबसे खूबसूरत मंत्र है क्योंकि समय के साथ आने वाले बदलावों को कोई नहीं रोक सकता। लेकिन नकारात्मक स्थिति को भी सोच की सही दिशा से सकारात्मक बनाया जा सकता है।

इच्छाओं पर नियंत्रण जरूरी

समुद्र मंथन से जब विष निकला तो सभी ने कदम पीछे खींच लिए थे पर महादेव ने स्वयं विषपान किया। नीलकंठ कहलाने वाले शिवजी से जुड़ा यह संदर्भ अपने ही नहीं अपने परिवेश में मौजूद हर प्राणी का जीवन सहेजने और संवारने की बात कहता है। यह घटना सिखाती है कि हम भी जिंदगी की हर नकारात्मकता को अपने भीतर खपा दें, उसका असर न खुद पर हावी होने दें और न ही दूसरों पर। इच्छाएं अनंत होती हैं। इसलिए इच्छाओं पर नियंत्रण रखना जरूरी है।

शिव कई मायनों में प्रेरणादायक

भगवान शिव का प्रकृति से जुड़े रहना और साधारण जीवन जीना भी आमजन के लिए प्रेरणादायी है। शिव योगी ही नहीं, पारिवारिक भी हैं। फिर भी उनका जीवन परिग्रह से दूर धरती से गहरा जुड़ाव रखता है। यूं ही नहीं शिव प्रकृति के देवता कहे जाते। जिस धैर्य, दृढ़ता और संयम के साथ वे अपने सुख साधन विहीन प्राकृतिक परिवेश के साथ संतुलन साधते हैं, भौतिक सुखों से दूर रहकर आत्मिक सुख और विश्व कल्याण के भाव में समाधिस्थ रहते हैं, वह अपने आप में विलक्षण है।

यूं भी शिव शब्द का अर्थ ही कल्याण है। इस अर्थ के व्यावहारिक आधार को देखें तो संसार के जीवों का कल्याण प्रकृति से जुड़े बिना संभव नहीं है। आज देखने में आ रहा है कि हमारे जीवन में कई व्याधियां और विपदाएं सिर्फ इसलिए आ रही हैं कि हम प्रकृति का सम्मान करना भूल गए हैं। महादेव की आराधना के इस रहस्य को यदि ठीक से समझा जाए तो हम प्रकृति के संरक्षण के दिव्य संदेश को ग्रहण कर सकेंगे।

निरीह पशुओं के रक्षक हैं शिव

शिव डम डिग्री बजाते हैं तो प्रलय होती है, लेकिन इसी डमरू से संस्कृत व्याकरण के सूत्र निकलते हैं। इन्हीं माहेश्वर सूत्रों से दुनिया की कई भाषाओं का जन्म हुआ। शिव पहले पर्यावरण प्रेमी हैं। वे निरीह पशुओं के रक्षक हैं। शिव ने बूढ़े बैल नंदी को अपना वाहन बनाकर अभयदान दिया। जंगल काटने से बेदखल सांपों को अपने गले में आश्रय दिया।

श्मशान, मरघट में कोई नहीं रुकता पर अलबेले शिव ने मरघट और श्मशान को अपना निवास बनाया। जिस कैलाश पर ठहरना मुश्किल है वहां न तो प्राणवायु है, न कोई वनस्पति वहां उन्होंने धूनी रमाई। दूसरे सारे देवता अपने शरीर पर सुगंधित, सुवासित द्रव्य लगाते हैं पर शिव केवल भभूत। उनमें रत्ती भर लोक-दिखावा नहीं है।

मिथ नहीं है शिव की तीसरी आंख

शिव न्यायप्रिय हैं। मर्यादा तोडऩे पर दंड भी देते हैं। काम बेकाबू हुआ तो उन्होंने अपनी तीसरी आंख से उसे भस्म कर दिया। तिब्बती तो कैलाश पर्वत में ही बाकायदा तीसरी आंख बताते हैं। दरअसल तीसरी आंख सिर्फ मिथ ही नहीं है। आधुनिक शरीरशास्त्र भी मानता है कि हमारी आंख की दोनों भृकुटियों के बीच एक ग्रंथि है और वह शरीर का सबसे संवेदनशील हिस्सा है, रहस्यपूर्ण भी। इसे पीनियल ग्रंथि भी कहते हैं। यह हमेशा सक्रिय नहीं रहती, पर इसमें संवेदना ग्रहण करने की अद्भुत ताकत है। इसे ही शिव का तीसरा नेत्र कहा है।

शिव के सभी रूप कल्याणकारी

महादेव का सौम्य रूप जितना सुहावना और सरल है उनका रौद्र रूप उतना ही भय पैदा करने वाला, लेकिन उनका गुस्सा किसी विशेष कारण के बिना नहीं दिखता। साथ ही उनके क्रोध करने का कारण भी लोक कल्याण का भाव ही होता है। भगवान शिव किसी पर गुस्सा निकालने या पीड़ा पहुंचाने के बजाय गुस्से को एक संरचनात्मक दिशा देने की सीख देते हैं।

भोलेनाथ शांत और सहज रहते हैं, लेकिन जब बुरी ताकतों को नष्ट करने की बात आती है तो वे क्रोधित होने लगते हैं। लेकिन उनका विध्वंसक स्वरूप आमजन और प्रकृति के लिए विनाशकारी नहीं बनता। वे तांडव करने वाले नटराज भी हैं और भक्तों के लिए बाबा भोलेनाथ भी। शिव के सभी रूप भक्तों के लिए कल्याणकारी ही हैं।

जीवन में संतुलन बनाने की सीख

शिव का संपूर्ण रूप देखकर यह संदेश मिलता है कि हम जिन चीजों को अपने परिवेश में स्थान नहीं दे सकते उन्हें भोलेनाथ के जीवन में जगह मिली है। वे देव, दानव, भूत, पिशाच, गण सभी को साथ लेकर चलते हैं। उनके ईश्वरीय स्वभाव की यह बात आम इंसान के जीवन में बहुत महत्व रखती है।

शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के भाव की आज के समय में सबसे अधिक जरूरत है। संसार में फैल रहे द्वेष की सबसे बड़ी वजह यही है कि हम औरों के प्रति स्वीकार्यता का भाव खो रहे हैं। जिंदगी को सहज बनाने और उसमें संतुलन लाने का भाव नीलकंठ महादेव की बड़ी सीख हैं। महादेव के मस्तक पर चंद्रमा है तो विषधर सर्प गले का हार है। उनका जीवन व्यक्तित्व के हर रंग का संतुलन बनाने की सीख देता है।

नंदी में ग्रहणशीलता का गुण

हमारी परंपरा में भगवान शिव को कई सारी वस्तुओं से सजा हुआ दिखाया जाता है। उनके माथे पर तीसरी आंख, उनका वाहन नंदी और उनका त्रिशूल इसके उदाहरण हैं। शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूल पहलुओं को दर्शाता है। योग परंपरा में उसे रुद्र, हर और सदाशिव कहा जाता है। ये जीवन के तीन मूल आयाम हैं, जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है। इन्हें इड़ा, ङ्क्षपगला और सुषुम्ना भी कहा जा सकता है। ये तीनों प्राणमय कोष यानी शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाडिय़ां हैं। बाईं, दाहिनी और मध्य। ये नाडिय़ां शरीर में उस मार्ग या माध्यम की तरह होती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है।

योग संस्कृति में सर्प यानी सांप कुंडलिनी का प्रतीक है। यह आपके भीतर की वह ऊर्जा है जो फिलहाल इस्तेमाल नहीं हो रही है। कुंडलिनी का स्वभाव ऐसा होता है कि जब वह स्थिर होती है तो आपको पता भी नहीं चलता कि उसका कोई अस्तित्व है। जब उसमें हलचल होती है, तभी आपको महसूस होता है कि आपके अंदर इतनी शक्ति है। जब तक वह अपनी जगह से हिलती-डुलती नहीं, उसका अस्तित्व लगभग नहीं के बराबर होता है।

नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक हैं। भारतीय संस्कृति में इंतजार को सबसे बड़ा गुण माना गया है। जो बस चुपचाप बैठकर इंतजार करना जानता है, वह कुदरती तौर पर ध्यानमग्न हो सकता है। यह गुण ग्रहणशीलता का मूल तत्व है। नंदी शिव के सबसे करीबी साथी हैं क्योंकि उनमें ग्रहणशीलता का गुण है। किसी मंदिर में जाने के लिए आपके अंदर नंदी का गुण होना चाहिए।

महाशिवरात्रि देती है शारीरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा

अमावस्या से एक दिन पहले हर चंद्र महीने की 14वीं रात्रि को शिवरात्रि कहा जाता है। माघ के चंद्र महीने में पडऩे वाली 12वीं शिवरात्रि को महाशिवरात्रि की संज्ञा दी गई है। यह शुभ अवसर साल में एक बार ही मिलता है। इसे महाशिवरात्रि इसलिए कहते हैं क्योंकि 12 शिवरात्रों में इसे सबसे ज्यादा शक्तिशाली और प्रभावी माना गया है।

महाशिवरात्रि 2018 का शुभ मुहूर्त

महाशिवरात्रि का मुहूर्त 13 फरवरी की आधी रात से शुरू होकर 14 फरवरी तक रहेगा। इस दिन भगवान शिव का पूजन सुबह 7.30 से लेकर दोपहर 3.20 तक किया जाएगा। रात्रि के समय भगवान शिव का पूजन एक से चार बार कर सकते हैं। पारपंरिक रूप से पूजा करने के उपरांत अगली सुबह स्नान के बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाने से व्रत खत्म हो जाएगा।

अच्छे करियर के लिए फलदायी महाशिवरात्रि

अच्छे करियर और पारिवारिक खुशहाली चाहने वालों के लिए भी इस रात का बड़ा महत्व है। जो लोग परिवार वाले हैं, वे महाशिवरात्रि को शिव विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाते हैं। महत्वाकांक्षी लोग शिव को उस रूप में देखते हैं जिस रूप में उन्होंने अपने शत्रुओं पर एकतरफा जीत दर्ज की थी।

क्या करें महाशिवरात्रि पर

ज्यादातर लोग इस दिन प्रार्थना करते हैं। कुछ लोग उपवास भी करते हैं। ये सब साधना के माध्यम हैं। उपवास से शरीर में जमे विष दूर होते हैं और दिमागी हलचल कम होती है। ऐसा माना जाता है कि जो दिमाग हलचलों से मुक्त नहीं होगा वह ध्यान के दौरान निद्रा में चला जाएगा। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन उपवास शरीर को शुद्ध करता है जिससे ध्यान में मदद मिलती है। महाशिवरात्रि पर ग्रहों की दशा ऐसी होती है जिससे ध्यान करने से शरीर में असीम ऊर्जा का संचार होता है।

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