Sona-Chandi Shiv Se mila hai: भगवान शिव जब काम के मोह में पड़े थे तो इस अंग से निकला था सोना, जानिए स्वर्ण धातु की उत्पति की रोचक कथा

Sona-Chandi Shiv Se mila hai: सृष्टि की रचना में जितने भी सजीव और निर्जीव वस्तुएं है उन सबका संबंध ईश्वर से है। इसी संदर्भ में सोना-चांदी के प्रमाण भी मिलते है। भागवत के एक प्रसंग में ये भी कहा गया है कि धरती पर जो सोना-चांदी है वो शिव से बना है।

Update:2023-01-17 09:43 IST

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Shiv Se mila h Sona-Chandi

शिव से मिला है सोना-चांदी

 हिंदू धर्म को सबसे पुरातन धर्म माना जाता है। कहा जाता है सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही इस धर्म की उत्पत्ति हुई है। इस धर्म के ग्रंथ,वेद-पुराण में बहुत सी ऐसी बातें लिखी गई है जिसके शाश्वत प्रमाण भी मिलते है। पूरी सृष्टि की रचना में जितने भी सजीव और निर्जीव वस्तुएं है उन सबका संबंध ईश्वर से है। इसी संदर्भ में सोना-चांदी के प्रमाण भी मिलते है। श्रीमदभागवत में बताया गया है कि सोना चांदी की उत्पत्ति कैसे हुई है। तो चलिए जानते हैं क्या  लिखा है इस विषय में

सोना-शिव से जुड़ा रहस्या छिपा है भागवत में

शिवपुराण में अनुशासन और उत्तरदायित्व का पाठ पढ़ाया गया है। शिव की रचना स्वयं भगवान ने की है। वहीं भागवत को जीवन का सार माना जाता है। जीवन में एक बार इन ग्रंथों का अध्ययन प्रत्येक मनुष्य को जरुर करना चाहिए। कहा जाता है कि जिसने एकबार भी भागवत में पढ़ लिया उसने परब्रह्म को पा लिया। भागवत में ऐसी बहुत सी बातें बताई गईं, जिसे पढ़कर मनुष्य को उसपर अमल करना चाहिए। भागवत के एक प्रसंग में ये भी कहा गया है कि धरती पर जो सोना-चांदी है वो शिव के वीर्य से बना है।


सोना-चांदी शिव की देन

समुंद्र मंथन के समय जब अमृत कलश निकला तो देव-दानव के बीच अमृत को लेकर युद्ध छिड़ गया। ईश्वर की इच्छा थी कि अमृत देवताओं को मिले, ताकि सबका कल्याण हो सकें। इसलिए जनकल्याण के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया और दानवों को माया में डालकर अमृत देवताओं को पिलाया। श्रीमद्भागवत के प्रथम खंड के अष्टम स्कंद के द्वादश अध्याय में लिखा है।

जब भगवान ने मोहिनी रूपी नारी का रूप धरा तो उसकी महिमा अलौकिक थी। उस रूप पर स्वयंं शिव भी मोहित हो गए थे। भगवान शिव ने जब उनसे मोहिनी रूप के बारे में पूछा तो विष्णु ने उन्हें इसकी सत्यता से अवगत कराने के लिए एक बार फिर वहीं रुप धरकर शिव-पार्वती और उनके गणों के सामने सुंदर उपवन में आए। तब भगवान शिव उस मोहिनी रुप के मायाजाल में ऐसे पड़ें की, उन्हें लोकलज्जा का ध्यान और मां पार्वती की सुध भी ना रहीं।

फिर उस मोहिनी के पीछे भागने लगे, जब शिव ने मोहिनीरुपी नारी को पकड़ा तो शिव की काम शक्ति बहुत तीव्र थी, शायद कामदेव भी उनके सामने ना ठहरे, लेकिन जैसे ही मोहिनी रूपी भगवान विष्णु ने अपने को शिव से छुड़ाया तो शिव ने उन्हें फिर पकड़ने की चेष्टा की। इसी क्रम में भगवान शिव का वीर्य धरती पर गिर गया और जहां-जहां उनका वीर्य गिरा। वहां सोना-चांदी की खान बन गई। इस तरह सोना-चांदी में भी स्वयंभू का अंश है और इन धातुओं को पवित्र और पूजनीय माना जाता है। कहते हैं कि जो लोग सोना और चांदी खोजते हैं उन्हें भौतिक वैभव के लिए भगवान शिव की उपासना करना चाहिए। भगवान शिव एक बेल वृक्ष के नीचे रहते हैं और रहने के लिए एक घर भी नहीं बनाते, किंतु भले ही वे स्पष्ट रूप से निर्धन हों, उनके भक्त कभी-कभी बड़ी मात्रा में चांदी और सोने से संपन्न होते हैं। इसी तरह चांदी शिव को नेत्रों स उत्पन्न हुआ।

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