ये वजह है नहीं रखती माता सीता, श्रीराम के पद चिह्नों पर पैर,इस दिन उनके पूजन का महत्व

Update: 2019-02-25 00:42 GMT

जयपुर: भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र से जुडी अनेकों बातों को संस्कृत भाषा में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण' और गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा अवधी भाषा में रचित श्रीरामचरितमानस में कहा गया है। इन दोनो धार्मिक ग्रंथों में सबसे प्रमाणिक 'रामायण' को माना गया है। लेकिन इन दोनों ग्रंथों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि इनमें भगवान श्रीराम की पत्नी सीता जी के बारे में बहुत सी भावपूर्ण बातों को बताया गया है।वाल्मीकि रामायण में यह वर्णन मिलता है कि, 'जब भगवान श्री राजा जनक यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए उस भूमि को हल से जोत रहे थे, उसी समय उन्हें भूमि से एक कन्या प्राप्त हुई. हल के नुकीले हिस्से को सीत कहते हैं. इससे टकराने पर सीता जी मिलीं इसलिए उनका नाम सीता रखा गया। सीता जी पृथ्वी से प्रगट हुई थी।

यह भी मान्यता है कि राजा जनक, यज्ञ के लिए भूमि तैयार कर रहे थे। भूमि से ही उन्हें कन्या मिलीं, हल के फल को सीता कहा जाता है। इस कारण कन्या का नाम सीता रखा गया। मां सीता ने बचपन में ही भगवान शिव का धनुष खेल-खेल में उठा लिया था। इसलिए राजा जनक ने उनके स्‍वयंवर के समय धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त रखी थी। राजा जनक का यह प्रण पूरा हुआ और माता सीता का विवाह श्रीराम से हुआ। भगवान शिव के इस धनुष का नाम पिनाक था।

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फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को माता सीता के पूजन का दिन है। इस दिन माता सीता धरती पर अवतरित हुईं थी। इस दिन को सीता अष्टमी या जानकी जयंती के नाम से जाना जाता है। माता सीता एक आदर्श स्त्री का उदाहरण हैं। माता सीता को सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी के अवतार पद्या के रूप में माना जाता है।एक स्त्री का पति के लिए समर्पण माता सीता से ही सीखने को मिलता है।

माना जाता है कि मां सीता, वेदवती का अवतार हैं। एक बार रावण पुष्पक विमान से जा रहा था। तभी उसकी नजर एक सुंदर स्त्री पर पड़ी। उनका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थीं। रावण ने बाल पकड़कर उन्हें खींचा। तब उन्होंने श्राप दिया कि रावण का अंत किसी स्त्री के कारण ही होगा। रावण को श्राप देकर वह अग्नि में समा गईं और माना जाता है कि वेदवती ने ही माता सीता के रूप में जन्म लिया।

प्रभु पद रेख बीच बिच सीता। धरति चरन मग चलति सभीता।।

सीय राम पद अंक बराएं। लखन चलहिं मगु दाहिने लाएं।।

मां सीता ने अपने जीवन में अनेक कष्ट उठाए। मान्यता है कि सीताजी के हरण के बाद उसी रात देवराज इंद्र, भगवान ब्रह्मा के कहने पर अशोक वाटिका में माता सीता के लिए खीर लेकर आए। माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से माता सीता को जब तक लंका में रहीं भूख-प्यास नहीं लगी। मान्यता के अनुसार माता सीता को महज 18 साल की आयु में वनवास का कष्ट भोगना पड़ा। वन गमन के दौरान माता सीता भगवान श्रीराम की छाया शक्ति रहीं। यदि माता सीता अशोक वाटिका में वैराग्यणी के रूप में तप नहीं करतीं तो रावण को मार पाना असंभव था। श्रीरामचरित मानस के अनुसार वनवास के दौरान श्रीराम के पीछे-पीछे सीता चलती थीं। चलते समय वह इस बात का विशेष ध्यान रखती थीं कि भूल से भी उनका पैर श्रीराम के चरण चिह्नों पर न रख जाए।श्रीराम के चरण चिह्नों के बीच-बीच में पैर रखती हुई सीताजी चलती थीं.

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