क्या है गोत्र,हिंदू धर्म व शादी विवाह में इसका इतना क्यों है महत्व?

Update:2018-12-01 06:58 IST

जयपुर: इस समय सियासी गलियारों में चारो ओर गोत्र-गोत्र की चर्चा हो रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के गोत्र को पूछे जाने पर सवाल उठा था। पर क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में गोत्र का क्या महत्व है? जिस गोत्र के बारे में पंडित पुजारी पूछते हैं वो आखिर है क्या? कैसे हुई गोत्र की शुरुआत और समान गोत्र में क्यों नहीं किया जाता विवाह ये सब सवालों के जवाब

प्राचीन भारतीय परंपरा में गोत्र का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में वर्ण व्यवस्था पाई जाती है उसके बाद जाति व्यवस्था भी है। इन सभी जाति और वर्ण में गोत्र अवश्य पाए जाते हैं। गोत्र का नामकरण प्राय: किसी न किसी ऋषि के नाम पर होता है। यही से गोत्र की शुरुआत हुई है जो कि हिंदू परंपरा का भाग है। वहीं कुछ गोत्रों के नाम कुलदेवी या कुलदेवता पर होते हैं जिसका तात्पर्य वंश परंपरा से है जिसमें व्यक्ति संतान कुल को आगे बढ़ाती है। वहीं गोत्र आगे चलता जाता है।

हिंदू धर्म में यूं तो पहले चार गोत्र ही प्रमुख थे परंतु उसके बाद इनकी संख्या आठ हो गई। हिंदू पुराणों में मूल रूप से चार गोत्र रहे हैं जो अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु हैं। इन्ही में अब जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य ऋषि नाम पर गोत्र जुड़ गए हैं। इन गोत्रों को मिलाकर गोत्र की संख्या आठ हो गई।

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महत्व किसी कुल या वंश के आगे बढ़ने और लक्षण गुण के कारण गोत्र को महत्व दिया जाता है। गोत्र के कारण व्यक्ति के कुल और जन्म की जानकारी मालूम हो जाती है। कुल की परंपरा और गुण भी गोत्र से प्रभावित होते हैं। प्रचीन समय में जाति व्यवस्था चरम पर थी ऐसे में सवर्ण लोग अपने नाम के साथ गोत्र धारण करते थे। फिर शूद्रों ने भी गोत्र लगाना आरंभ कर दिया था। इस प्रकार गोत्र अधिकतर किसी पुरोहित के नाम से प्रचलित हो गए। हालांकि इसमें बहुत से बदलाव हुए हैं।

गोत्र का चाहे कितना ही महत्व हो लेकिन समान गोत्र में विवाह नहीं किए जाते हैं। समान गोत्र में लड़का-लड़की भाई-बहन होते हैं। अत: एक ही गोत्र वाले से विवाह संबंध शुभ नहीं माने जाते हैं। हिंदू धर्म में समान गोत्र विवाह को निषेध किया गया है। ऐसा भी माना जाता है कि समान गोत्र में विवाह एक विकृत संतान को जन्म देता है। दूसरी तरफ आठ पीढ़ियों के बाद समान गोत्र में विवाह संभव तो है लेकिन पूर्णत: मान्य नहीं। इसमें भी संदेह जारी है। तो इस प्रकार गोत्र को लेकर हिंदू धर्म में अधिक महत्व दिया गया है। किसी भी व्यक्ति का धर्म-जाति से जुड़ा गोत्र जरूर होता है।

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