Govardhan Puja 2024: आखिर क्यों होती है गोवर्धन पूजा, इस मंत्र का जप करने से होगी सुखों की प्राप्ति
Govardhan Puja 2024: गोवर्धन पूजा करने से भक्त के जीवन की सभी बाधाएं खत्म हो जाती हैं और सुख की प्राप्ति होती है। यह पर्व प्रकृति और मानवता के बीच के संबंध को दर्षाता है।
Govardhan Puja 2024: दीपावली पर्व के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस साल 2024 में दीपावली पर्व दो दिन 31 अक्टूबर और एक नवंबर को मनाये जाने के चलते गोवर्धन पूजा दो नवंबर (शनिवार) को मनाया जा रहा है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है। यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्त जगत पालनहार भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा अर्चना करते हैं।
हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार गोवर्धन पूजा करने से भक्त के जीवन की सभी बाधाएं खत्म हो जाती हैं और सुख की प्राप्ति होती है। यह पर्व प्रकृति और मानवता के बीच के संबंध को दर्शाता है। इस कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की एक नवंबर को सायं 06 बजकर 16 मिनट से प्रारंभ हो गई है। इसका समापन दो नवंबर को रात्रि 08.21 बजे होगा। सनातन धर्म में उदयातिथि में पर्व मनाया जाता है। ऐसे में गोवर्धन पूजा दो नवंबर को मनायी जाएगी।
आखिर क्यों होती है गोवर्धन पूजा
हिंदू धर्म कथाओं के अनुसार देवराज इंद्र ने एक बार अहंकारवष गोकुल में अत्यधिक वर्षा की। मूसलाधार बारिश होने के चलते गोकुल में बाढ़ की स्थिति आ गयी। गोकुलवासियों के जीवन पर संकट आ गया। ऐसे में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों की प्राणों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्व को अपने हाथ की छोटी उंगली पर उठा लिया। सभी गोकुलवासी और जीव-जन्तु गोवर्धन पर्वत के नीचे आ गये और उनके प्राणों की रक्षा हो गयी।
वहीं देवराज इंद्र का अहंकार टूट गया और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की। वहीं हमेशा से प्राकृतिक आपदाओं से गोकुल की रक्षा करते आ रहे गोवधन पर्वत ने एक फिर सबसे प्राणों को बचाया। वहीं गोवर्धन पर्व की हरी-भरी घास गाय और बकरियों के लिए उपयोगी है। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने बाल लीलाओं के माध्यम से प्रकृति के महत्व को समझाया।
’’श्रीकृष्ण शतनामावली स्तोत्र’’
श्रीकृष्णः कमलानाथो वासुदेवः सनातनः !
वसुदेवात्मजः पुण्यो लीलामानुषविग्रहः ॥
श्रीवत्सकौस्तुभधरो यशोदावत्सलो हरिः !
चतुर्भुजात्तचक्रासिगदाशंखाद्युदायुधः ॥
देवकीनन्दनः श्रीशो नन्दगोपप्रियात्मजः !
यमुनावेगसंहारी बलभद्रप्रियानुजः ॥
पूतनाजीवितहरः शकटासुरभञ्जनः !
नन्दव्रजजनानन्दी सच्चिदानन्दविग्रहः ॥
नवनीतविलिप्ताङ्गो नवनीतनटोऽनघः !
नवनीतनवाहारो मुचुकुंदप्रसादकः ॥
षोडशस्त्रीसहस्रेशो त्रिभंगीललिताकृतिः !
शुकवागमृताब्धीन्दुः गोविन्दो गोविदां पतिः॥
वत्सवाटचरोऽनन्तो धेनुकासुरमर्द्दनः !
तृणीकृततृणावर्तो यमलार्जुनभञ्जनः ॥
उत्तालतालभेत्ता च तमालश्यामलाकृतिः !
गोपगोपीश्वरो योगी कोटिसूर्यसमप्रभः॥
इलापतिः परंज्योतिः यादवेन्द्रो यदूद्वहः
वनमाली पीतवासा पारिजातापहारकः ॥
गोवर्धनाचलोद्धर्त्ता गोपालस्सर्वपालकः !
अजो निरञ्जनः कामजनकः कञ्जलोचनः॥
मधुहा मथुरानाथो द्वारकानायको बली !
वृन्दावनांतसञ्चारी तुलसीदामभूषणः ॥
स्यमन्तकमणेर्हर्ता नरनारायणात्मकः !
कुब्जाकृष्टांबरधरो मायी परमपूरुषः ॥
मुष्टिकासुरचाणूरमल्लयुद्धविशारदः !
संसारवैरि कंसारी मुरारी नरकान्तकः ॥
अनादिब्रह्मचारी च कृष्णाव्यसनकर्शकः !
शिशुपालशिरच्छेत्ता दुर्योधनकुलान्तकः ॥
विदुराक्रूरवरदो विश्वरूपप्रदर्शकः !
सत्यवाक्सत्यसंकल्पः सत्यभामारतो जयी ॥
सुभद्रापूर्वजो विष्णुः भीष्ममुक्तिप्रदायकः !
जगद्गुरुर्जगन्नाथो वेणुनादविशारदः ॥
वृषभासुरविध्वंसी बाणासुरबलांतकः !
युधिष्ठिरप्रतिष्ठाता बर्हिबर्हावतंसकः ॥
पार्थसारथिरव्यक्तो गीतामृतमहोदधिः !
कालीयफणिमाणिक्यरञ्जितश्रीपदांबुजः ॥
दामोदरो यज्ञभोक्ता दानवेन्द्रविनाशकः
नारायणः परंब्रह्म पन्नगाशनवाहनः ॥
जलक्रीडासमासक्तगोपीवस्त्रापहारकः !
पुण्यश्लोकस्तीर्थपादो वेदवेद्यो दयानिधिः ॥
सर्वभूतात्मकस्सर्वग्रहरूपी परात्परः !
एवं कृष्णस्य देवस्य नाम्नामष्टोत्तरं शतं, ॥
कृष्णनामामृतं नाम परमानन्दकारकं,
अत्युपद्रवदोषघ्नं परमायुष्यवर्धनम् !
श्रीकृष्णः कमलानाथो वासुदेवः सनातनः !
वसुदेवात्मजः पुण्यो लीलामानुषविग्रहः ॥