Govardhan Puja Katha Hindi: गोवर्धन पूजा पर विशेष, इंद्र का देना तोड़ा था कृष्ण के गोवर्धन ने
Govardhan Puja Katha Kahani in Hindi: पूजा के बाद कथा सुनें।प्रसाद के रूप में दही व चीनी का मिश्रण सब में बांट दें।इसके बाद किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन करवाकर उसे दान-दक्षिणा देकर प्रसन्न करें।
Govardhan Puja Katha Kahani: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है। यहां जानिए गोवर्धन पूजा की सरल विधि-गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है।इस दिन सुबह शरीर पर तेल की मालिश करके स्नान करना चाहिए।फिर घर के द्वार पर गोबर से प्रतीकात्मक गोवर्धन पर्वत बनाएं।इस पर्वत के बीच में पास में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें।अब गोवर्धन पर्वत व भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न प्रकार के पकवानों व मिष्ठानों का भोग लगाएं। साथ ही देवराज इंद्र, वरुण, अग्नि और राजा बलि की भी पूजा करें।
पूजा के बाद कथा सुनें।प्रसाद के रूप में दही व चीनी का मिश्रण सब में बांट दें।इसके बाद किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन करवाकर उसे दान-दक्षिणा देकर प्रसन्न करें।
कथा
एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि नाच-गाकर खुशियां मनाई जा रही हैं।जब श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो गोपियों ने कहा-आज मेघ व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। पूजन से प्रसन्न होकर वे वर्षा करते हैं,जिससे अन्न पैदा होता है, तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है।
तब श्रीकृष्ण बोले-इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है।इसी के कारण वर्षा होती है।हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करना चाहिए।तब सभी श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।यह बात जाकर नारद ने देवराज इंद्र को बता दी।यह सुनकर इंद्र को बहुत क्रोध आया।इंद्र ने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलधार बारिश करें।बारिश से भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे।
गोप-गोपियों की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले-तुम सब गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलो।वह सब की रक्षा करेंगे।सब गोप-ग्वाले पशुधन सहित गोवर्धन की तराई में आ गए।श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी उंगली पर उठाकर छाते-सा तान दिया। गोप-ग्वाले सात दिन तक उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टि से बच गए।सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी।यह चमत्कार देखकर ब्रह्माजी द्वारा श्रीकृष्णावतार की बात जान कर इंद्रदेव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमा याचना करने लगे।
श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि-अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो।तभी से यह पर्व गोवर्धन पूजा के रूप में प्रचलित है।
महत्व
हमारे कृषि प्रधान देश में गोवर्धन पूजा जैसे प्रेरणाप्रद पर्व की अत्यंत आवश्यकता है।इसके पीछे एक महान संदेश पृथ्वी और गाय दोनों की उन्नति तथा विकास की ओर ध्यान देना और उनके संवर्धन के लिए सदा प्रयत्नशील होना छिपा है।अन्नकूट का महोत्सव भी गोवर्धन पूजा के दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है।यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है।अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है,लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है।
उस समय जहां वर्षा के देवता इंद्र की ही उस दिन पूजा की जाती थी, वहीं अब गोवर्धन पूजा भी प्रचलन में आ गई है।धर्मग्रंथों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है।ये पूजन पशुधन व अन्न आदि के भंडार के लिए किया जाता है।बालखिल्य ऋषि का कहना है कि अन्नकूट और गोवर्धन उत्सव श्रीविष्णु भगवान की प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए।इन पर्वों से गायों का कल्याण होता है,पुत्र, पौत्रादि संततियां प्राप्त होती हैं, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त होता है।कार्तिक के महीने में जो कुछ भी जप, होम, अर्चन किया जाता है,इन सबकी फल प्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए।
गोवर्धन पर्वत गोबर का क्यों बनाया जाता है..
ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण को गायों से अत्यंत प्रेम था और वो गायों तथा बछड़ों की सेवा किया करते थे।यह भी माना जाता है कि गाय का गोबर अत्यंत पवित्र होता है,इसलिए इसी से गोवर्धन पर्वत बनाना और इसका पूजन करना फलदायी माना जाता है।इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है,और इसके चारों कोनों में करवा की सींकें लगाईं जाती हैं। इसके भीतर कई अन्य आकृतियां भी बनाई जाती हैं और इसकी पूजा की जाती है।
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।
ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:।।
अर्थ :–
हे वासुदेव कृष्ण ! हे गिरधर गोपाल, हे परमात्मा, हे जगत के पालनहार,आप हमारे सारे कष्ट दूर करें।
( लेखक प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हैं ।)