गुल्लावीर में लगती थी ब्रह्मा जी की कचहरी, सूर्य यज्ञ से हुआ था अनारकली झील का निर्माण

Update:2017-09-22 12:30 IST

बहराइच: शहर के पश्चिमी छोर पर गुल्लावीर मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर त्रेता युग में ब्रह्मा जी की कचहरी लगती थी। धर्म-कर्म से संबंधित फैसले देवतागण इसी स्थान पर करते थे, जिसके चलते मंदिर को सिद्धपीठ का दर्जा भी प्राप्त है।

गुल्लावीर मंदिर 1000 वर्ष से अधिक पुराना माना जाता है। इस मंदिर में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की प्रतिमाएं तो स्थापित हैं ही, विभिन्न देवताओं की प्रतिमाएं भी मंदिर के गौरव को बढ़ाती हैं। मंदिर के सामने एक पुराना कुंड स्थापित है। मंदिर से सटी हुई अनारकली झील है।

यह भी पढ़ें: जानिए नवरात्रि में कैसे करें स्नान तो होगा आपको धन लाभ

ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की यहां पर कचहरी लगती थी। ऋषि कुल सम्मेलन का आयोजन भी ब्रह्मा जी के द्वारा इसी स्थान पर किया गया था। विश्व के कल्याण के लिए सूर्य यज्ञ भी हुआ था। किंवदंतियों पर गौर करें तो गुल्लावीर मंदिर के निकट स्थित अनारकली झील का निर्माण सूर्य यज्ञ में ऋषि-मुनियों के द्वारा यज्ञ के लिए एकत्रित किए गए जल से हुआ था।

यह भी पढ़ें: शारदीय नवरात्रि: मनोवांछित फल प्राप्त करता है दुर्गा देवी का यह उपाय

पौराणिक मान्यताएं यह भी हैं कि यज्ञ के बाद ब्रह्मा जी की कचहरी भी यहां लगती थी। धर्म कर्म से संबंधित फैसले होते थे। मंदिर परिसर में एक अति प्राचीन वट वृक्ष स्थापित है। लोगों की आस्था है कि इस वट वृक्ष में बंधन बांधने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कष्टों से छुटकारा मिलता है। मंदिर परिसर में समय-समय पर श्रद्धालुओं द्वारा विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। गुल्लावीर मंदिर समिति के पदाधिकारियों की ओर से प्रतिवर्ष मंदिर के सौंदर्यीकरण व उत्थान के लिए रंग रोगन कराया जाता है।

यह भी पढ़ें: शारदीय नवरात्रि: माता की भक्ति व इच्छाओं की पूर्ति पाने के लिए है 13वां अध्याय

पांडवों ने करवाई थी मंदिर की स्थापना

मंदिर के पुजारी का कहना है कि मंदिर काफी पुराना है। त्रेतायुग में ब्रह्मदेव की कचेहरी लगती थी। लेकिन मंदिर का निर्माण द्वापर में पांडवों ने अज्ञातवास के समय बहराइच के जंगलों में भ्रमण करते हुए करवाया था। इसके बाद समय-समय पर लोगों ने पुनरोद्धार करवाया।

यहां होते हैं यह संस्कार

पुजारी ने बताया कि मंदिर सिद्धपीठ का दर्जा होने के चलते यहां पर आजमगढ़, देवरिया, लखीमपुर, बाराबंकी, लखनऊ, दिल्ली और नेपाल से श्रद्धालु आते रहते हैं। मुंडन, अन्न प्रासन, जनेउ, तेल पूजन आदि संस्कार विधि विधान से मंदिर में करवाये जाते हैं। नामकरण की भी पूजा होती है। इसके अलावा महामृत्युंजय जप, देवी स्त्रोत पाठ के भी पूजा की व्यवस्था है।

Tags:    

Similar News