गुरु पूर्णिमा में बस कुछ दिन ही है शेष, अगर अब तक आपका नहीं बन पाया कोई गुरु तो करें यह उपाय
जीवन में हर कार्य किसी न किसी के द्वारा सिखाया जाता है। जिससे हम सिखते है वह हमारे लिए गुरु की तरह होता हैं वह 'गुरु' कहलाता है। साधारणतया गुरु का महत्व अध्यात्म में सर्वोपरि माना गया है जिसमें दीक्षा किसी न किसी रूप में दी जाए शिष्य की देखरेख उसके कल्याण की भावना से की जाती है।
जयपुर: हम अपने जीवन में हर दिन कुछ ना कुछ सीखते हैं। चाहें हम छोटे हो या बड़े हर दिन किसी न किसी से कुछ न कुछ जरुर सीखते है।जीवन में हर कार्य किसी न किसी के द्वारा सिखाया जाता है। जिससे हम सिखते है वह हमारे लिए गुरु की तरह होता हैं वह 'गुरु' कहलाता है। साधारणतया गुरु का महत्व अध्यात्म में सर्वोपरि माना गया है जिसमें दीक्षा किसी न किसी रूप में दी जाए शिष्य की देखरेख उसके कल्याण की भावना से की जाती है।
सर्वप्रथम एक श्वेत वस्त्र पर चावल की ढेरी लगाकर उस पर कलश-नारियल रख दें। उत्तराभिमुख होकर सामने शिवजी का चित्र रख दें। शिवजी को गुरु मानकर निम्न मंत्र पढ़कर श्रीगुरुदेव का आवाहन करें-
- 'ॐ वेदादि गुरुदेवाय विद्महे, परम गुरुवे धीमहि, तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।।'
हे गुरुदेव! मैं आपका आह्वान करता हूं। फिर यथाशक्ति पूजन करें, नैवेद्यादि आरती करें तथा 'ॐ गुं गुरुभ्यो नम: मंत्र' की 11, 21, 51 या 108 माला करें। यदि किसी विशेष साधना को करना चाहते हैं, तो उनकी आज्ञा गुरु से मानसिक रूप से लेकर की जा सकती है।