Guru Purnima 2022: गुरु पूर्णिमा मनाने का विशेष है महत्त्व ,जानें कब और कैसे हुई शुरुआत

Guru Purnima 2022: यानी जो व्यक्ति आपको जीवन के सही राहों से अवगत कराये सही मायनों में वही आपके जीवन का सच्चा गुरु होता है। हालाँकि ये सर्वविदित है कि हर एक व्यक्ति के जीवन का पहला गुरु उसकी माँ ही होती है।

Written By :  Preeti Mishra
Update: 2022-07-13 11:44 GMT

Guru purnima (Image credit : social media)

Guru Purnima 2022: आज 13 जुलाई को पूरे देश में गुरु पूर्णिमा या कहें व्यास पूर्णिमा मनाई जा रही है। इन्हें आषाढ़ पूर्णिमा भी कहा जाता जाता है। बता दें कि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस पूर्णिमा का बेहद ख़ास महत्त्व होता है। पौराणिक ग्रंथों में भी कहा गया है कि गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः अर्थात गुरु ही ब्रम्हा है, गुरु ही विष्णु है तथा गुरु ही महेश हैं। गुरु साक्षात परब्रम्ह हैं, ऐसे गुरु को मै प्रणाम करता/ करती हूँ।

बता दें कि किसी भी व्यक्ति के जीवन में गुरु के रूप कोई भी व्यक्ति हो सकता है। यानी जो व्यक्ति आपको जीवन के सही राहों से अवगत कराये सही मायनों में वही आपके जीवन का सच्चा गुरु होता है। हालाँकि ये सर्वविदित है कि हर एक व्यक्ति के जीवन का पहला गुरु उसकी माँ ही होती है। क्योंकि वो माँ ही होती है जो आपको पहली बार इस दुनिया से रूबरू करातीं हैं।

इतना ही नहीं जीवन में आने वाली हर परेशानियों से सच्चे रूप से अवगत कराने वाले आपके माता -पिता ही होते हैं। इनके अलावा जो व्यक्ति आपको जीवन के हर उतार -चढाव में चलना सिखाता है वो भी आपका गुरु है। सच मायने में एक व्यक्ति के जीवन को सही दिशा दिखाने वाले कई गुरु होते हैं। जो पग -पग पर इस मायावी दुनिया में रहने और टिकने का हुनर आपको सिखाते हैं।

कुछ लोग किसी ज्ञानी व्यक्ति को भी अपना गुरु मानते हैं जिनसे वो दीक्षा भी ले लेते हैं। और उनके विचारों और बातों का जीवन भर अनुकरण करने की कोशिश करते हैं। बता दें कि किसी भी इंसान की माँ ही पहली गुरु होती है लेकिन माँ के बाद की शिक्षा-दीक्षा एक गुरु ही करता है जो की जीवन को सफल बनाने हेतु अतिमहत्वपूर्ण हैं। उल्लेखनीय है कि वो गुरु ही है जो आपके जीवन के भवसागर को पार लगाने वाली शिक्षा दे सकता है। इतना ही नहीं गुरु के ज्ञान से ईश्वर के दर्शन तक संभव हो जाते हैं।

शायद इसलिए मानव ने क्रमिक विकास किया क्योंकि माँ के अलावा भी उसके पास गुरु भी मौजूद थे, जो की प्रकृति के अन्य जीवों के पास नहीं थे। गौरतलब है कि हिन्दू धर्म में ईश्वर से भी बढ़ चढ़कर गुरु के महिमा का वर्णन किया गया है। गुरु की याद में मनाया जाने वाले इसी दिन को गुरु पूर्णिमा कहा जाता हैं। बता दें कि प्रतिवर्ष (Guru Purnima) आषाढ़ या जून- जुलाई के महीने में पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।

उल्लेखनीय है कि संस्कृत भाषा में गु शब्द काअर्थ होता है - 'अंधकार' तथा रु का अर्थ- हरने वाला या उसका निरोधक बताया गया है। अतः जो अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके ज्ञान रुपी प्रकाश की ओर ले जाये वही गुरु कहलाता है।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है ?

आषढ़ मास की पूर्णिमा को समस्त मानव जाति के गुरु कहे जाने वाले व महाभारत ग्रन्थ के रचयिता महर्षि वेदव्यास का जन्म आज से लगभग 3000 ई.पू. हुआ था। बता दें कि आचार्य वेदव्यास को समस्त मानव जाति का ही गुरु माना जाता है। उन्हीं के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) मनाई जाती है। इसके अलावा पौराणिक मान्यता यह भी है कि इसी दिन व्यास जी ने अपने शिष्यों तथा ऋषि मुनियों को श्रीमद्भागवत का ज्ञान दिया था।

किसने शुरू की थी गुरु की पूजा की परंपरा ?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वेदव्यास जी के आश्रम में उनके छात्र निशुल्क अध्ययन किया करते थे जिनमें से उनके पांच शिष्यों ने सर्वप्रथम इन दिनों में उनकी पूजा करते हुए उन्हें ऊँचे आसान में बैठाकर उन्हें पुष्प अर्पित कर उन्हें ग्रन्थ भी अर्पित किये थे। तभी से गुरु व्यास के जन्मदिवस पर गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई।


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