Lord Shri Krishna: भगवान श्री कृष्ण की विद्या स्थली, उज्जैन स्थित गुरु सांदीपनि आश्रम
Lord Shri Krishna: महाभारत, श्रीमद्भागवत, ब्रम्ह्पुराण,अग्निपुराण तथा ब्रम्हवैवर्तपुराण में सांदीपनि आश्रम का उल्लेख मिलता है।
Lord Shri Krishna: उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि आश्रम ऋषि सांदीपनि की तप स्थली है। यहां महर्षि ने घोर तपस्या की थी। इसी स्थान पर महर्षि सांदीपनि ने वेद, पुराण, शास्त्रादि की शिक्षा हेतु आश्रम का निर्माण करवाया था। महाभारत, श्रीमद्भागवत, ब्रम्ह्पुराण,अग्निपुराण तथा ब्रम्हवैवर्तपुराण में सांदीपनि आश्रम का उल्लेख मिलता है।
पौराणिक महत्व-
सांदीपनि आश्रम की प्रसिद्धि का विशिष्ट कारण है यहां भगवान श्री कृष्ण द्वारा किया गया विद्या अर्जन।पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण, बलराम और उनके मित्र सुदामा ने इसी आश्रम में कुलगुरु सांदीपनि से शास्त्रों और वेदों का ज्ञान लिया था। इसलिए सांदीपनि आश्रम को श्री कृष्ण की विद्या अध्ययन स्थली के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण लगभग 5500 वर्ष पूर्व द्वापर युग में यहां आये थे। भगवान श्री कृष्ण ने 64 दिनों के अल्प समय में सम्पूर्ण शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण कर ली थी। उसका विवरण इस प्रकार है:- 18 दिनों में 18 पुराण, 4 दिनों में 4 वेद , 6 दिनों में 6 शास्त्र, 16 दिनों में 16 कलाएं, 20 दिनों में गीता का ज्ञान, उसके साथ ही गुरु दक्षिणा और गुरु सेवा। 64 दिनों में शिक्षा पूर्ण हो जाने के बाद महर्षि सांदीपनि ने श्रीकृष्ण से कहा,” मेरे पास जो भी ज्ञान था वो तो में आपको दे चुका हुं, आपकी शिक्षा पूर्ण होती है। “ फिर श्री कृष्ण के गुरु दक्षिणा देने की बात पर महर्षि बोले- “आप तो स्वयं प्रभु हैं, मैंने क्या दिया है आपको ?” तब गुरु शिष्य परंपरा का निर्वाह करने के लिए श्री कृष्ण ने कहा- “पर गुरुदेव गुरु दक्षिणा स्वरूप कुछ आदेश तो करना ही होगा।”
उत्तर स्वरुप महर्षि ने अपनी पत्नी सुषुश्रा को उनके बदले कुछ माँगने को कहा। गुरु माँ ने गुरु दक्षिणा के रूप में अकाल मृत्यु को प्राप्त अपने पुत्र का जीवनदान माँगा।सारी सृष्टि के रचयिता विष्णु रूपी भगवान श्री कृष्ण अपनी गुरुमाता के दुःख को कैसे देख सकते थे। उन्होंने गुरु पुत्र पुनर्दत्त को पुनर्जीवन का वरदान दिया और अपनी गुरु दक्षिणा पूर्ण की।
मंदिर संरचना, इतिहास और विशिष्टता-
आश्रम में जहां गुरु सांदीपनि बैठते थे वहां उनकी प्रतिमा और चरण पादुकाएं स्थापित हो गई है। जहां कृष्ण बैठ कर विद्यार्जन किया करते थे वहां भगवान की पढ़ती लिखती बैठी हुई प्रतिमा विराजमान है जो दुनिया में और कहीं नहीं मिलती।
आश्रम के सम्मुख श्री कुंडेश्वर महादेव का मंदिर है, जो चौरासी महादेव में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यह पूरी पृथ्वी पर एक ही ऐसा शिवलिंग है जिसमें शिव का वाहन नंदी खड़ा हुआ है। मान्यतानुसार जब श्री कृष्ण आश्रम में आये तो उज्जैन यानी अवंतिका के राजा महाकाल कार्तिक मास की बैकुंठ चतुर्दशी के दिन उनसे मिलने पधारे। तब गुरु के सम्मान में नंदी खड़े हो गए क्योंकि यह गुरु का स्थान है। प्रत्येक बैकुंठ चौदस को यहां हरिहर मिलन के रूप में मनाया जाता है।
मंदिर के पीछे एक अतिप्राचीन श्री सर्वेश्वर महादेव का मंदिर भी है, जो लगभग 6000 वर्ष पुराना है। ऐसा माना जाता है कि गुरु सांदीपनि यहीं बैठ कर तप करते थे।यहां स्थित शिवलिंग गुरु सांदीपनि ने अपने तपो बल से बिल्वपत्र द्वारा उत्पन्न किया था। मंदिर परिसर में ही एक कुंड है। माना जाता है कि इस कुंड के ज़रिये श्रीकृष्ण अपने गुरु के लिए गोमती नदी को यहां तक लेकर आये इसलिए इसे गोमती कुंड कहा जाता है। इसी गोमती कुंड के जल से श्री कृष्ण अपनी पाटी (भोजपत्र) साफ किया करते थे। इस दौरान उनके लिखे अंक कुंड में गिरे थे और फलस्वरूप इस क्षेत्र को विद्वानों का क्षेत्र कहा जाने लगा। इसी कारण इस क्षेत्र को अंकपात कहा जाता है।