Hindu Mythology Stories: क्या आपने सुना है ये पौराणिक धार्मिक कहानियां, जो सिखाती है बहुत कुछ....

Hindu Mythology Stories: धर्म ग्रंथों और पुराणों में बहुत सी धार्मिक कथाओं का जिक्र है, जिन्हें जितनी बार सुनते है उतना है ईश्वर को करीब पाते हैं। उन्हीं में से कुछ कथाओँ का जिक्र कर रहें है, जो हम सब का मार्गदर्शन और अच्छी सीख देते हैं।

Published By :  suman
Update: 2022-05-02 11:16 GMT

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Hindu Mythology Stories

पौराणिक धार्मिक कहानियां

हर धर्म में कुछ प्रेरणाप्रद और पथ-प्रदर्शक कहानियां होती है। जो सनातन धर्म (Sanatan Dharam) के खास दिनों तिथियों से जुड़ी होती है। जैसे होली, दिवाली हो या दशहरा या फिर 3 मई को आने वाली अक्षय तृतीया ( Akshaya Tritiya) है। सब से पौराणिक कथाएं जुड़ी है। उन्हीं में से कुछ प्रेरणादायक कथाएं जिनका संबंध धर्म मां लक्ष्मी गणेश जी से है।  सनतान धर्म में कहा गया है कि जिस घर में धन का भंडार होता है। वहां मां लक्ष्मी और गणेश जी( goddess lakshami & lord ganesha) की कृपा बरसती है। हिदू धर्म ( Hindu Dharam)के अधिकतर  त्योहार लक्ष्मी और गणेश जी की कथाओं से जुड़े है। उसके बारे में जानते हैं कि ये किस परिप्रेक्ष्य में कही गई है। क्या महत्व है।

पहली कथा

एक बार की बात है, एक बार एक राजा ने एक लकड़हारे पर प्रसन्न होकर उसे एक चंदन की लकड़ी का जंगल उपहार स्वरुप दे दिया।लकड़हारा तो ठहरा लकड़हारा, भला उसे चंदन की लकड़ी का महत्व क्या मालूम, वह जंगल से चंदन की लकड़ियां लाकर उन्हें जलाकर, भोजन बनाने के लिये प्रयोग करता था।

राजा को अपने अपने गुप्तचरों से यह बात पता चली तो, उलझन में आ गया कि धन का उपयोग भी बुद्धिमान व्यक्ति ही कर पाता है।यही कारण है कि लक्ष्मी जी और श्री गणेश जी की एक साथ पूजा की जाती है।ताकि व्यक्ति को धन के साथ साथ उसे प्रयोग करने कि योग्यता भी आयें।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

दूसरी कथा

श्री राम का अयोध्या वापस आनाः- धार्मिक ग्रन्थ रामायण में यह कहा गया कि जब चौदह साल का वनवास काट कर राजा राम, लंका नरेश रावण का वध कर, वापस अयोध्या आये थे, उन्ही के वापस आने की खुशी में अयोध्या वासियों ने अयोध्या को दीयों से सजाया था। अपने भगवान के आने की खुशी में अयोध्या नगरी दीयों की रोशनी में जगमगा उठी थी।

भगवान कृ्ष्ण ने दीपावली से एक दिन पहले नरकासुर का वध किया था।नरकासुर एक दानव था। उसके पृथ्वी लोक को उसके आतंक से मुक्त किया था। इसी कारण बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रुप में भी दीपावली पर्व मनाया जाता है।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

राजा और साधु की कथा

एक कथा के अनुसार, एक बार के साधु के मन में राजसिक सुख भोगने का विचार आया।इसके लिये उसने लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिये तपस्या करनी प्रारम्भ कर दी।तपस्या पूरी होने पर लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर उसे मनोवांछित वरदान दे दिया।वरदान प्राप्त करने के बाद वह साधु राजा के दरबार में पहुंचा और सिंहासन पर चढ़कर राजा का मुकुट नीचे गिरा दिया।

राजा ने देखा कि मुकुट के अन्दर से एक विषैला सांप निकल कर भागा।यह देख कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ, क्योंकि साधु ने सर्प से राजा की रक्षा की थी।इसी प्रकार एक बार साधु ने सभी दरबारियों को फौरन राजमहल से बाहर जाने को कहा, सभी के बाहर जाते ही, राजमहल गिर कर खंडहर में बदल गया।राजा ने फिर उसकी प्रशंसा की, अपनी प्रशंसा सुनकर साधु के मन में अहंकार आने लगा। वह सबको  तुक्ष समझने लगा।

फिर साधु को अपनी गलती का पता चला, उसने गणपति को प्रसन्न किया, गणपति के प्रसन्न होने पर राजा की नाराजगी दूर हो और साधु को उसका स्थान वापस दे दिया गया। इसीलिए कहा गया है कि धन के लिये बुद्धि का होना आवश्यक है। यही कारण कि दीपावली पर लक्ष्मी व श्री गणेश के रुप में धन व बुद्धि की पूजा की जाती है।

लक्ष्मी जी और साहूकार की बेटी की कथा

एक गांव में एक साहूकार था, उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी।जिस पीपल के पेड़ पर वह जल चढ़ाती थी, उस पेड़ पर लक्ष्मी जी का वास था।एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा 'मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूँ।" लड़की ने कहा कि मैं अपने पिता से पूछ कर आऊंगा। यह बात उसने अपने पिता को बताई, तो पिता ने 'हां' कर दी।दूसरे दिन से साहूकार की बेटी ने सहेली बनना स्वीकार कर लिया।

दोनों अच्छे मित्रों की तरह आपस में बातचीत करने लगे। एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गई।अपने घर में लक्ष्मी जी उसका दिल खोल कर स्वागत किया।उसकी खूब खातिर की।उसे अनेक प्रकार के भोजन परोसे।मेहमान नवाजी के बाद जब साहूकार की बेटी लौटने लगी तो, लक्ष्मी जी ने प्रश्न किया कि अब तुम मुझे कब अपने घर बुलाओगी।साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपने घर बुला तो लिया, परन्तु अपने घर की आर्थिक स्थिति देख कर उदास हो गई।उसे डर लग रहा था कि क्या वह, लक्ष्मी जी का अच्छे से स्वागत कर पायेगी।

साहूकार ने अपनी बेटी को उदास देखा तो वह समझ गया, उसने अपनी बेटी को समझाया कि तू फौरन मिट्टी से चौका लगा कर साफ-सफाई कर।चार बत्ती के मुख वाला दिया जला और लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा।उसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार लेकर उसके पास डाल गया।साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर भोजन की तैयारी की। थोड़ी देर में श्री गणेश के साथ लक्ष्मी जी उसके घर आ गई। साहूकार की बेटी ने दोनों की खूब सेवा की, उसकी खातिर से लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई और साहूकार बहुत अमीर बन गया।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

इन्द्र और बलि कथा

एक बार देवताओं के राजा इन्द्र से डर कर राक्षस राज बलि कहीं जाकर छुप गये।देवराज इन्द्र दैत्य राज को ढूंढते- ढूंढते एक खाली घर में पहुंचे, वहां बलि गधे के रूप में छुपे हुए थे।दोनों की आपस में बातचीत होने लगी. उन दोनों की बातचीत अभी चल ही रही थी कि उसी समय दैत्यराज बलि के शरीर से एक स्त्री बाहर निकली।

देव राज इन्द्र के पूछने पर स्त्री ने कहा, 'मै, देवी लक्ष्मी हूं।मैं स्वभाव वश एक स्थान पर टिककर नहीं रहती हूं।' परन्तु मैं उसी स्थान पर स्थिर होकर रहती हूं, जहां सत्य, दान, व्रत, तप, पराक्रम तथा धर्म रहते हैं।जो व्यक्ति सत्यवादी होता है, ब्राह्मणों का हितैषी होता है, धर्म की मर्यादा का पालन करता है।उसी के यहां मैं निवास करती हूं।इस प्रकार यह स्पष्ट है कि लक्ष्मी जी केवल वहीं स्थायी रूप से निवास करती है, जहां अच्छे गुणी व्यक्ति निवास करते हैं।

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