Holi 2023 in Mahakal: इस दिन मनेगी महाकाल में होली, जानें होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

Holi 2023 in Mahakal: होलिका दहन की पूजा यदि शुभ मुहूर्त में न की जाए तो यह दुर्भाग्य और कष्ट देती है। प्रदोष काल में सूर्यास्त के बाद होलिका दहन किया जाता है।

Written By :  Preeti Mishra
Update: 2023-02-27 08:20 GMT

Holi 2023 in Mahakal (Image: Social Media)

Holi 2023 in Mahakal: साल की सभी पूर्णिमाओं में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बेहद खास माना जाता है, क्योंकि इस दिन होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है। होली मिलन का पर्व है। नए साल में होलिका दहन (Holika Dahan 2023) 7 मार्च 2023 को है। इसे छोटी होली भी कहते हैं। अगले दिन 8 मार्च 2023 (Holi 2023 date) को रंगों की होली खेली जाएगी। हर साल होली के त्योहार का सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। हिंदू धर्म में होली का विशेष महत्व है। होलिका दहन की अग्नि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। आइए जानते हैं होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और कथा।

इस साल होली का त्योहार दो दिनों तक मनाया जाएगा। इस बार फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 6 मार्च 2023 को शाम 4 बजकर 17 मिनट से शुरू होगी और पूर्णिमा तिथि 7 मार्च को शाम 6 बजकर 9 मिनट पर समाप्त होगी। आपको बता दें कि देश में सबसे पहले होली का पर्व उज्जैन के महाकाल मंदिर में मनाया जाता है।

कब है महाकाल में होली? (Mahakal Holi Date)

महाकाल मंदिर में होलिका दहन 6 मार्च 2023 को किया जाएगा। 7 मार्च 2023 को सुबह भस्म आरती के बाद बाबा का अबीर व हर्बल गुलाल से श्रृंगार कर रंगोत्सव मनाया जाएगा। होलिका दहन की पूजा यदि शुभ मुहूर्त में न की जाए तो यह दुर्भाग्य और कष्ट देती है। प्रदोष काल में सूर्यास्त के बाद होलिका दहन किया जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 6 मार्च 2023 को शाम 04 बजकर 17 मिनट से शुरू होगी जो 7 मार्च 2023 को शाम 06 बजकर 09 मिनट पर समाप्त होगी।

भद्रा पुंछ - 12:43 पूर्वाह्न - 02:01 पूर्वाह्न

भद्रा मुख – 02:01 AM – 04:11 AM

होलिका दहन मुहूर्त- शाम 06:31- रात 08:58 (7 मार्च, 2023)

अवधि – 02 घंटे 27 मिनट

महाकाल में कैसी होती है होली (Holi in Mahakal)


पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप नाम का असुर सम्राट अभिमान के नशे में चूर होकर स्वयं को भगवान मानने लगा था। और उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पुत्र का विष्णु के प्रति प्रेम और भक्ति देखकर राजा ने उसे मारने का निश्चय किया। इसके बाद हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। होलिका को वरदान था कि वह आग से नहीं जल सकती लेकिन इस आग में होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। होलिका का यह हार बुराई के विनाश का प्रतीक है।

होलिका दहन के लिए नहीं किया जाता है लकड़ी का प्रयोग

बेहद अनोखे तरीके से महाकाल मंदिर में गाय के गोबर से होलिका तैयार की जाती है यहाँ होलिका दहन के लिए लकड़ी का प्रयोग बिलकुल नहीं किया जाता है।। सबसे अनोखी और खास बात यहाँ के होलिका दहन में हरि भक्त प्रह्लाद के रूप में सिर्फ एक झंडा लगाया जाता है, जिसे होलिका दहन के बाद भी सुरक्षित रूप में रखा जाता है। शिव के गण महादेव का फूलों से भव्य श्रृंगार कर उनके साथ होली खेलते हैं। इसके बाद ही मंदिर परिसर में रंगों का त्योहार होली धूमधाम से मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि यहां महाकाल होली के दर्शन के लिए देश भर से आये श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है।

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