होली: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक, जानिए कब हुई थी शुरुआत

रंगों का त्योहार होली फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। देशभर में मनाया जाने वाला ये त्योहार भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। पौराणिक कथा के अनुसार होली से हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है।

Update:2020-03-08 13:22 IST

जयपुर: रंगों का त्योहार होली फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। देशभर में मनाया जाने वाला ये त्योहार भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। पौराणिक कथा के अनुसार होली से हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है।

 

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क्यों जलाते हैं होलिका

पौराणिक काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा था जो कि राक्षस की तरह था। उसके छोटे भाई हिरण्याक्ष को भगवान ने मारा था। वो अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था। इसलिए उसने शक्ति प्राप्ति के लिए ब्रह्माजी की सालों तक तपस्या की।

आखिरकार उसे वरदान मिला, लेकिन इसके बाद हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने को कहने लगा। इस दुष्ट राजा का एक बेटा था जिसका नाम प्रह्लाद था और वह भगवान विष्णु का परम भक्त था।

उसने अपने पिता का कहना नहीं माना और वो भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया। उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए, क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी।

उनकी योजना प्रह्लाद को जलाने की थी, लेकिन वे सफल नहीं हो सकी, क्योंकि प्रह्लाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई। होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है।इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, लेकिन होली से होलिका की मौत की कहानी जुड़ी है। इसके चलते देश के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है।

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रंग-होली संबंध

ये मान्यता है कि भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण के समय की है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का ये तरीका लोकप्रिय हुआ। वे वृंदावन और गोकुल में अपने साथियों और राधा के साथ होली मनाते थे। वे पूरे गांव में मज़ाक भरी शैतानियां करते थे। आज भी वृंदावन जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं खेली जाती।

होली बसंत का त्योहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं। कुछ हिस्सों में इस त्योहार का संबंध बसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को बसंत महोत्सव या काम महोत्सव भी कहते हैं।

बहुत प्राचीन त्योहार

होली एक प्राचीन हिंदू त्योहार है इसको ईसा के जन्म से पहले से मनाया जा रहा है। देश के पौराणिक मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां बनी हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है।

इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे पर रंग लगा रहे हैं। कई मध्ययुगीन तस्वीरें , जैसे 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र, मेवाड़ पेंटिंग, बूंदी के लघु चित्र, सब में अलग अलग तरह होली मनाते देखा जा सकता है।

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एक दिन नहीं कई दिन मनाते है

होली एक दिन का त्योहार नहीं है। इसे कई राज्यों में 3 दिन तक मनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन एक थाली में रंगों को सजाया जाता है और परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बाकी सदस्यों पर रंग छिड़कता है। इसे पूनो भी कहते हैं। इस दिन होलिका के चित्र जलाते हैं और होलिका और प्रहलाद की याद में होली जलाई जाती है। अग्नि देवता के आशीर्वाद के लिए मां अपने बच्चों के साथ जलती हुई होली के पांच चक्कर लगाती हैं। इस दिन को पर्व कहते हैं और ये होली उत्सव का अंतिम दिन होता है। इस दिन एक दूसरे पर रंग और पानी डाला जाता है। भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों पर भी रंग डालकर उनकी पूजा की जाती है।

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