कातिल शबनम की तकदीर: क्या धर्म होने देगा फांसी, क्या वाकई आ जाएगी प्रलय

हिंदू शास्‍त्रों में नारी का स्‍थान पुरुष से बहुत ऊपर है। एक नारी को मृत्‍युदंड दिए जाने से समाज का कोई भला नहीं होगा, उल्‍टे इससे दुर्भाग्‍य और आपदाओं को न्‍यौता मिलेगा।

Update:2021-02-23 19:47 IST
कातिल शबनम की तकदीरः क्या धर्म होने देगा फांसी, जानें ज्योतिषियों की राय

लखनऊ : आजाद भारत में पहली बार किसी महिला को फांसी होने वाली है। वो महिला है शबनम, जिसकी माफी की याचिका को राष्ट्रपति द्वारा उसे खारिज कर दिया गया है। उसके बाद से अब मुद्दा चर्चा में है। और जब से शबनम केस पर तपस्‍वी छावनी के महंत परमहंस दास ने अपील की है मामला और गर्म हो गया है।परमहंस दास ने राष्‍ट्रपति से अपील की थी कि वे शबनम की फांसी की सजा को माफ कर दें। उन्‍होंने कहा कि एक महिला को फांसी दिए जाने से देश को दुर्भाग्‍य और आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।

इस पर धर्म के जानकारों का क्या कहना है जानते हैं, लेकिन उससे पहले जान लें कि...

कौन है शबनम

14 अप्रैल, 2008 की रात को एक ऐसी घटना घटी, जिसने सबको हिला कर रख दिया । एक बेटी ने महज निजी स्वार्थ के लिए 7 रिश्तों का खून कर दिया। शबनम अली है, वो महिला कैदी है जिसे आजाद भारत के इतिहास में पहली बार फांसी पर लटकाया जाएगा। इसके लिए मथुरा जेल प्रशासन ने तैयारी शुरू कर दी है। शबनम अली ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने परिवार के सात लोगों को कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी थी।

इस हत्याकांड के बाद शबनम को फांसी की सजा सुनाई गई थी। तो वहीं, सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद अब शबनम की फांसी की सजा को राष्ट्रपति ने भी बरकरार रखा है। ऐसे में अब उसका फांसी पर लटकना तय हो गया है।शबनम को फांसी सजा मिली इसपर कहा जा रहा है कि देश की आजादी के बाद आज तक किसी महिला को फांसी नहीं दी गई। यदि शबनम को फांसी दी जाती है तो यह पहला मामला होगा।

समाज का कोई भला नहीं

महंत परमहंस ने कहा कि ‘हिंदू शास्‍त्रों में नारी का स्‍थान पुरुष से बहुत ऊपर है। एक नारी को मृत्‍युदंड दिए जाने से समाज का कोई भला नहीं होगा, उल्‍टे इससे दुर्भाग्‍य और आपदाओं को न्‍यौता मिलेगा। महंत ने कहा कि यह सही है कि उसका अपराध माफ किए जाने योग्‍य नहीं है लेकिन उसे महिला होने के नाते माफ किया जाना चाहिए। अब इस मुद्दे को धार्मिक दृष्टि से देखा जाने लगा। देश के बुद्धिजीवी वर्ग हो या धर्म के जानकार उनका इस मुद्दे पर क्या विचार है जानते हैं।

ज्योतिषर्विदों के विचार

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फांसी की पक्षधर नहीं

जयपुर से डॉ भेषराज शर्मा जिनको संस्कृत दर्शन,एवम वैदिक अध्ययन गहनता से ज्ञान हैं, उन्होंने कई धर्म ग्रंथों का गहन अध्ययन किया है। इनके अनुसार धर्मशास्त्र हो या स्मृतिशास्त्र या ग्रहसूत्र हो। किसी भी ग्रंथ में फांसी का वर्णन नहीं है। अपराध के लिए सजा है लेकिन जीव की हत्या को अपराध मानते है। इनके विचार से ये बहुत विस्तृत विषय है। इसपर बिना ज्ञान के हल्के में कुछ कहना और चर्चा करना व्यर्थ होगा। जिसने भी शास्त्रों का गहराई से अध्ययन किया है, वो फांसी की पक्षधर नहीं होगा। अपराध के लिए फांसी समाधान नहीं है। इसका समाधान भयंकर दंड हो सकता है। क्या ऐसे केस में पहले फाँसी नहीं हुई। फिर दोबारा होगा तोभी अपराध कम नहीं होगा।

जीव हत्या की धर्मशास्त्र में मनाही

धर्मानुसार अपराध के लिए दंड विधान है। जीव हत्या की धर्मशास्त्र में मनाही है। अगर ऐसा होता है तो उसका परिणाम भी दिखता है। फर्क बस इतना होता है कि मानव समझना नहीं चाहते हैं। हां अगर फांसी होती है तो प्रलय नहीं आएगा, लेकिन दोष लगेंगे। अपराधी ने अपराध कर लिया, अब बस सजा देने की बात है तो जरूरी नहीं की उसे फांसी दी जाए , उसकी सजा कई और तरह की भयानक दंड से भी हो सकती है। जो किया जा सकता है। इसमें मानसिक , शारीरिक दंड दिए जा सकते है। गरूड़ पुराण में कहा गया है कि यम के दूत पकड़ लेकर जाते हैं तब आत्मा जाती है। 84 योनियों को पार होने के बाद शुद्ध की जाती है। मरना बहुत आसानहै इस लिए उसका अहसास कराना भी सबसे बड़ी सजा है।

अमानवीय कृत्य

ज्योतिर्विद पीयूष गौड़ ने अपने विचार और धर्म शास्त्रों के गहन अध्ययन के आधार पर कहा कि अगर कोई चाहे वो शबनम केस हो या कोई भी मानव मानवता के विरुद्ध या अमानवीय कृत्य करता है तो वह दैत्य या राक्षस प्रवृति का कहा जाता है । हमारे धर्म में ऐसे मानव को जो निर्दोष की हत्या जैसा जघन्य अपराध करें उसे दंड देने का विधान है फिर वह चाहे मर्द हो या औरत ।

 

दबाव बनाना गलत होगा

चंडीगढ़ से ज्योतिषाचार्य सबिता के अनुसार जिन्होंने कई ग्रंथों और पुराणों का गहन अध्ययन किया है। उनके अनुसार धर्म ग्रंथ में अपराध का सजा निर्धारित है। चाहें आप पुरूष हो स्त्री। समान विधान है। उनका कहना है कि हमारे धर्म ग्रंथ ये नहीं कहते कि हम स्त्री है तो वो अपने कृत्य के लिए दंड की भागी नहीं । पुराणों को आधार मानकर कहा है कि भगवान ने भी 100 गलती माफ की है। लेकिन दंड दिया है।जितना गहन अपराध किया है तो उसकी सजा भी उतनी ज्यादा होगी। अगर नारी को फांसी नहीं दी जाएगी तो फिर इस आड़ में अपराध बढ़ेंगे। कानून के तरफ से बहुत सोच समझकर फैसला लिया जाता है जिसके लिए सालों लगते हैं तो उस पर भी सवाल उठाना या दबाव बनाना गलत होगा।

जघन्य अपराध की सजा होनी चाहिए

ज्योतिषर्विद हेमंत थरेजा जिन्होंने अपने विचार रखते हुए कहा है कि जघन्य अपराध की सजा होनी चाहिए। उसे स्री या पुरुष के रुप में ना देखकर अपराधी की जैसा देखना न्याय संगत होगा। कोई भी शास्त्र इसकी इजाजत नहीं देता है कि आप अपने निज स्वार्थ में आकर किसी की हत्या जैसा संगीन अपराध करें। और वो भी जिसने आपको जन्म दिया उसकी हत्या के लिए तो इसलोक क्या उस लोक में भी माफी नहीं है। नारी जब तक लक्ष्मी स्वरुप है तब तक ही पूज्यनीय है। शिवपुराण में भी इसका वर्णन है।

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अगर बात धर्मशास्त्रों या वेद पुरानों की बात करें तो सब में जीव हत्या की मनाही है, लेकिन दंड करने पर सजा देने का भी विधान है। बस सजा क्या हो ये अपराध के अनुसार तय होते है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा कि जो जैसा कृत्य करता, ईश्वर उसके लिए वैसी सजा तय करके रखते हैं। बस बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए, इसका ख्याल रखना चाहिए। नारी और पुरुष को धर्म ग्रंथों में समान दर्जा दिया गया है तो अच्छे और बुरे कृत्य के भागी भी दोनों बराबर होते है।

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