Lord Hanuman: आज के समय में हनुमान को बनायें इष्ट

Lord Hanuman: आज के समय में हमें हनुमान जी जैसे विश्वसनीय मित्र की आवश्यकता है। ऐसे मित्र की जो हनुमान जी की तरह स्वामिभक्त हो, ज्ञानी हो, त्यागी हो, चरित्रवान हो और जिसमें चतुरशीलता हो

Newstrack :  Network
Update: 2024-04-20 06:43 GMT

Lord Hanuman

Lord Hanuman: एक अवसर पर कपिवर की प्रशंसा के आनन्द में मग्न भगवान श्रीराम ने सीताजी से कहा-"देवी ! लंका विजय में यदि हनुमान का सहयोग न मिलता, तो आज भी मैं सीता वियोगी ही बना रहता।"माता सीता जी ने कहा, "आप बार-बार हनुमान की प्रशंसा करते रहते हैं, कभी उनके बल शौर्य की, कभी उनके ज्ञान की। अतः आज आप कोई ऐसा प्रसंग सुनाइये कि जिसमें उनकी चतुरता से लंका विजय में विशेष सहायता हुई हो।"श्रीराम बोले, ठीक याद दिलाया तुमने। युद्ध में रावण थक गया था। उसके अधिकतर वीर सैनिकों का वध हो चुका था। अब युद्ध में विजय प्राप्त करने का उसने अन्तिम उपाय सोचा। यह था देवी को प्रसन्न करने के लिए चण्डी महायज्ञ। यज्ञ आरम्भ हो गया। किन्तु हमारे हनुमान को चैन कहाँ? यदि यज्ञ पूर्ण हो जाता और रावण देवी से वर प्राप्त करने में सफल हो जाता, तो उसकी विजय निश्चित थी।

बस, तुरन्त उन्होंने ब्राह्मण का रूप धर यज्ञ में शामिल ब्राह्मणों की सेवा करना प्रारम्भ कर दिया। ऐसी निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मण अति प्रसन्न हुए। उन्होंने हनुमान से वर मांगने के लिए कहा।

पहले तो हनुमान ने कुछ भी मांगने से मना कर दिया, किन्तु सेवा से अति-संतुष्ट ब्राह्मणों का आग्रह देखकर उन्होंने एक वरदान मांग लिया।

"वरदान में क्या मांगा हनुमान ने?" सीता जी के प्रश्न में उत्सुकता थी।

श्रीराम बोले, "उनकी इसी याचना में तो चतुरता झलकती है। जिस मंत्र को बार बार किया जा रहा था, उसी मंत्र के एक अक्षर के परिवर्तन का हनुमान ने वरदान में मांग लिया। उसी के कारण मंत्र का अर्थ ही बदल गया, जिससे कि रावण का घोर विनाश हुआ।"

सीताजी ने प्रश्न किया, "मात्र एक अक्षर से अर्थ में इतना बड़ा परिवर्तन! कौन सा मंत्र था वह?"

श्रीराम ने मंत्र बताया-

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।

जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥

(अर्गलास्तोत्र-2)

इस श्लोक में "भूतार्तिहारिणि" शब्द में "ह" के स्थान पर "क" का उच्चारण करने का हनुमान ने वर मांगा। भूतार्तिहारिणि का अर्थ है, "सभी प्रणियों की पीड़ा हरने वाली” और "भूतार्तिकारिणि" का अर्थ है “सभी प्राणियों को पीड़ित करने वाली।" इस प्रकार केवल एक अक्षर बदलने से रावण का संपूर्ण विनाश हो गया।

“ऐसे चतुरशिरोमणि हैं हमारे हनुमान।" श्रीराम ने प्रसंग को पूर्ण किया। सीताजी इस प्रसंग को सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुईं।

आज के समय में हमें हनुमान जी जैसे विश्वसनीय मित्र की आवश्यकता है। ऐसे मित्र की जो हनुमान जी की तरह स्वामिभक्त हो, ज्ञानी हो, त्यागी हो, चरित्रवान हो और जिसमें चतुरशीलता हो। इस कलियुग में हनुमान जी ही हम सबके सबसे बड़े ईष्ट मित्र हैं!

सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।

सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥

भावार्थ: श्री रघुनाथजी का गुणगान सभी प्रकार के सुंदर मंगल प्रदान करने वाला है। जो इसे आदर सहित सुनेंगे, वे बिना किसी जहाज (अन्य साधन) के ही भवसागर को तर जाएँगे।

Tags:    

Similar News