Indira Ekadashi ka Mahatva:इंदिरा एकादशी कब है, जानिए इसका महत्व शुभ मुहूर्त और पारणा का समय

Indira Ekadashi ka Mahatva: आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन भगवान हरि को तुलसी पीले फूल और अक्षत से निर्जल और फलाहार करके व्रत करने से पितर प्रसन्न होते हैं और मोक्ष मिलता है।

Update:2024-09-18 09:00 IST

Indira Ekadashi  इंदिरा एकादशी कब है 2024: आश्विन माह के कृष्ण पक्ष के दिन पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी सभी 24 एकादशियों में सबसे श्रेष्ठ एकादशी है। इसे एकादशी भी कहते हैं। इस साल 2024 में 28 सितंबर को इंदिरा एकादशी है। इस दिन कठोर नियमों का पालन करते हुए भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन और उपवास किया जाता है।

आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी 28 सितंबर को है इस दिन व्रत के नियम का पालन करेंगे तो आपके पितरों को मुक्ति मिलती है। इस माह की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहते हैं। पितृपक्ष में किसी कारणवश श्राद्ध के नियमों का पालन नहीं किया है तो वे लोग अगर इंदिरा एकादशी एकादशी का व्रत करके पूजा करें तो पितरों को मुक्ति मिलती है।

इंदिरा एकादशी का महत्व 

धार्मिक मान्यता के अनुसार, इंदिरा एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है जिससे पितृ शांत रहते हैं। धार्मिक शास्त्रों और पौराणिक ग्रंथो में भगवान विष्णु पितरों के देवता माने जाते हैं। इस दिन व्रत रखकर पितरों के निमित्त दान भी करना चाहिए। इस एकादशीका व्रत करने से सिर्फ पितरों को मोक्ष मिल जाता है बल्कि व्रत भी सुखों की प्राप्ति होती है। माना जाता है इस एकादशी पर व्रत रखने से पितरों की कृपा परिवार पर बनी रहती है।

इंदिरा एकादशी में नियमों में व्रत का पालन किया जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से एक करोड़ पितरों का उद्धार होता है। इस व्रत के प्रभाव से स्वयं के लिए भी स्वर्ग लोक के मार्ग खुलता हैं। विधि विधान से इस एकादशी का व्रत करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इंदिरा एकादशी का शुभ मुहूर्त 

एकादशी तिथि का प्रारंभ: 27 सितंबर की दोपहर 01 . 20 मिनट से एकादशी की तिथि की शुरुआत

एकादशी तिथि का समापन : 28 सितंबर 2024 की दोपहर 02 .49 मिनट पर समाप्त होगी

 उदया तिथि के अनुसार, इंदिरा एकादशी का व्रत 28 सितंबर को रखा जाएगा।

ब्रह्म मुहूर्त: 04:42 AM – 05:30 AM

अमृत काल : 04:40 PM – 06:27 PM

अभिजीत मुहूर्त - सुबह 11 .47 मिनट से दोपहर 12 . 24 मिनट

 पूजा मुहूर्त - सुबह 4 बजकर 36 मिनट से 5 बजकर 24 मिनट

इंदिरा एकादशी के दिन राहुकाल समय- सुबह 9 बजकर 11 मिनट से 10 बजकर 41 मिनट

इंदिरा एकादशी की व्रत पारण तिथि है 29 सितंबर, दिन रविवार

आपको बता दें कि इस बार इंदिरा एकादशी पर शिव योग बन रहा है जो किसी भी काम की पूर्णता के लिए शुभ है।

इंदिरा एकादशी पूजा विधि

इंदिरा एकादशी के दिन बिना जल और अन्न के व्रत रखकर पीले फूल, फल तुलसी गंगाजल से भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। उपवास से एक दिन पहले सात्विक भोजन कर व्रत की शुरुआत करना चाहिए । इस व्रत में भगवान विष्णु की उपासना करें। भगवार श्री हरि को तुलसी, ऋतु फल और तिल अर्पित करें। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। इस व्रत में निंदा और झूठ नहीं बोलना चाहिए और व्रत में अपने मन को शांत रखें। किसी भी प्रकार की द्वेष भावना या क्रोध मन में न आने दें। एकादशी पर तांबा, चांदी, चावल और दही का दान करना शुभ माना जाता है। यदि व्रत नहीं भी रखते हैं तो एकादशी के दिन भोजन में चावल का प्रयोग न करें। एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। रात्रि में जागकर भगवान श्री हरि का भजन कीर्तन करें। विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें। एकादशी का व्रत रखने वाले को व्रत से एक दिन पूर्व दशमी तिथि पर सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए।

इंदिरा एकादशी व्रत कथा

भगवान श्री कृष्ण धर्मराज युद्धिष्ठर को इंदिरा एकादशी का महत्व बताते हुए कहते हैं कि यह एकादशी समस्त पाप कर्मों का नाश करने वाली होती है एवं इस एकादशी के व्रत से व्रती के साथ-साथ उनके पितरों की भी मुक्ति होती है। हे राजन् इंदिरा एकादशी की जो कथा मैं तुम्हें सुनाने जा रहा हूं। इसके सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।आगे कथा शुरु करते हुए भगवन कहते हैं। बात सतयुग की है। महिष्मति नाम की नगरी में इंद्रसेन नाम के प्रतापी राजा राज किया करते थे। राजा बड़े धर्मात्मा थे प्रजा भी सुख चैन से रहती थी। धर्म कर्म के सारे काम अच्छे से किये जाते थे। एक दिन क्या हुआ कि नारद जी इंद्रसेन के दरबार में पंहुच जाते हैं। इंद्रसेन उन्हें प्रणाम करते हैं और आने का कारण पूछते हैं। तब नारद जी कहते हैं कि मैं तुम्हारे पिता का संदेशा लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज के निकट उसका दंड भोग रहे हैं। अब इंद्रसेन अपने पिता की पीड़ा को सुनकर व्यथित हो गये और देवर्षि से पूछने लगे हे मुनिवर इसका कोई उपाय बतायें जिससे मेरे पिता को मोक्ष मिल जाये। तब देवर्षि ने कहा कि राजन तुम आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत के पुण्य को अपने पिता के नाम दान कर दो इससे तुम्हारे पिता को मुक्ति मिल जायेगी। उसके बाद आश्विन कृष्ण एकादशी को इंद्रसेन ने नारद जी द्वारा बताई विधि के अनुसार ही एकादशी व्रत का पालन किया जिससे उनके पिता की आत्मा को शांति मिली और मृत्यु पर्यंत उन्हें भी मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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