Bhagwad Gita: अनिर्वचनीय तत्त्व भी भगवान ही हैं
Bhagwad Gita: अर्जुन 'सदसत्तत्परं यत्’ पदों से मानो यह कहते हैं कि सत् भी भगवान् हैं, असत् भी भगवान् हैं और सत्-असत् के सिवाय जो भी हमारी कल्पना में आ सकता है, वह भी भगवान् ही हैं।
कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्म णोऽप्यादिकत्र्रे।
अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्॥११।३७॥
हे महात्मन् ! गुरुओं के भी गुरु और ब्रह्मा के भी आदिकर्ता आपके लिये वे सिद्धगण नमस्कार क्यों नहीं करें? क्योंकि हे अनन्त ! हे देवेश ! हे जगन्निवास ! आप अक्षरस्वरूप हैं; आप सत् भी हैं,असत् भी हैं और उनसे (सत्-असत् से) पर भी जो कुछ है, वह भी आप ही हैं।
अर्जुन 'सदसत्तत्परं यत्’ पदों से मानो यह कहते हैं कि सत् भी भगवान् हैं, असत् भी भगवान् हैं और सत्-असत् के सिवाय जो भी हमारी कल्पना में आ सकता है, वह भी भगवान् ही हैं। ज्ञान की दृष्टि से जो न सत् कहा जा सकता है और न असत् कहा जा सकता है, वह अनिर्वचनीय तत्त्व भी भगवान् ही हैं। तात्पर्य है कि उनके सिवाय न तो कोई हुआ है, न कोई है, न कोई होगा और न कोई हो ही सकता है अर्थात् केवल वे-ही-वे हैं।