Jagannath Rath Yatra 2024 Date: जगन्नाथ रथयात्रा में शामिल होकर मिलेगा मोक्ष, जानिए इस रहस्यमयी यात्रा की महिमा

Jagannath Rath Yatra 2024 Date: जगन्नाथ रथयात्रा धर्मानुसार भगवान श्रीकृष्ण धरती पर पुरी में भगवान जगन्नाथ जी के रूप में विराजमान हैं...

Update:2024-06-14 11:13 IST

Jagannath Rath Yatra 2024 Date: भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा विश्वभर में प्रसिद्ध है,हर साल भगवान जगन्नाथ की एक झलक पाने के लिए ओड़िशा के पुरी में रथ यात्रा के दौरान देश-विदेश से लाखों लोगों की भीड़ इक्ठ्‌ठा होती है।पुरी में यात्रा के समय भगवान श्रीकृष्ण, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं और अपनी प्रजा का हालचाल जानते हैं।जगन्नाथ रथ यात्रा 2024 में कब शुरू होगी, इसका महत्व।

जगन्नाथ यात्रा शुरू होने का समय (Jagannath Rath Yatra Time)

भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथ पुरी में आरंभ होती है और इसका समापन दशमी तिथि को होता है। इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 7 जुलाई 2024 को शुरू होगी और इसकी समाप्ति 16 जुलाई 2024 को होगी।

7 जुलाई को रथ यात्रा के समय शुभ   रहेगा। जो यात्रा को सुखद बनाएंगे।इस दिन शुभ काल और तिथि....

द्वितीया तिथि का आरंभ- 7 जुलाई, 2024 को सुबह 04.26 मिनट पर शुरू

द्वितीया तिथि का समापन- 8 जुलाई, 2024 को सुबह 04. 59 मिनट पर

अभिजीत मुहूर्त - 12:05 PM से 12:59 PM

अमृत काल - 01:35 AM से 03:14 AM

ब्रह्म मुहूर्त - 04:16 AM से 05:04 AM

जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व (Jagannath Rath Yatra Importance)

स्कंद पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि रथ-यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है, वह पुनर्जन्म के बंधव से मुक्त हो जाता है. जो व्यक्ति भगवान के नाम का कीर्तन करता हुआ रथयात्रा में शामिल होता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. रथ यात्रा में भाग लेने मात्र से संतान संबंधी सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं.

क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा ?

जगन्नाथ रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ के वार्षिक गुंडिचा माता मन्दिर के भ्रमण का प्रतीक है. एक बार बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा जाहिर की थी, तब जगन्नाथ जी ने रथ पर बैठाकर उन्हें नगर भ्रमण कराया था. भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है तथा इन्हें वैष्णव धर्म के अनुयायियों भी पूजते हैं। जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ है "जग के नाथ", अर्थात ब्रह्माण्ड के स्वामी. जगन्नाथ मन्दिर पवित्र चार धामों में से एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। चार धाम की यात्रा हिन्दु धर्म में अत्यन्त महत्वपूर्ण मानी जाती है।

जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) के सभी चारों दरवाजों को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है। जगन्नाथ पुरी मंदिर की बात करें तो यहां कुल चार दरवाजे हैं। इनका नाम सिंह द्वार, अश्व द्वार, व्याघ्र द्वार और हस्ति द्वार है। पहले द्वार का नाम सिंहद्वार (शेर का द्वार), दूसरे द्वार का नाम व्याघ्र द्वार (बाघ का द्वार), तीसरे द्वार का नाम हस्ति द्वार (हाथी का द्वार) और चौथे द्वारा का नाम अश्व द्वार (घोड़े का द्वार) है। इन सभी को धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है।

तीसरी सीढ़ी यम शिला कही जाती है

पुरी के जगन्नाथ धाम मंदिर में कुल 22 सीढ़ियां हैं। ये सभी सीढ़ियां मानव जीवन की बाईस कमजोरियों का प्रतीक हैं। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, ये सभी सीढ़ियां बहुत ही रहस्यमयी हैं। जो भी भक्त इन सीढ़ियों से होकर गुजरता है, तो तीसरी सीढ़ी का खास ध्यान रखना होता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर पैर नहीं रखना होता। तीसरी पीढ़ी यम शिला कही जाती है। अगर इस पर पैर रख दिया तो समझो कि सारे पुण्य धुल गए और फिर बैकुंठ की जगह यमलोक जाना पड़ेगा। यही वजह है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए जाते समय तीसरी सीढ़ी पर पैर न रखने की सलाह दी जाती है।

जगन्नाथ रथ यात्रा पूजा-विधि

इस दिन घर पर भी रथयात्रा के दिन पूजा में भगवान जगन्नाथ की पूजा और आरती का विशेष महत्व होता है। जगन्नाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। रथ यात्रा इस महीने आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को है। रथयात्रा में नारायण या शालीग्राम की पूजा और आरती का विधान है। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की पूजा में भोग का भी विशेष महत्व है। चाहें तो रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ को भोग के लिए नारियल भी चढ़ा सकते हैं।

भगवान जगन्नाथ की आरती करने से पहले उन्हें अच्छे से आसन दें और फूल चंदन से सजा लें। अब उन्हें टिंबर पुष्पांजलि अर्पण करें और धूप-दीप जलाकर उन्हें दिखाएं।

आरती के धूप को "एतस्मै धूपाय नमः" इस मंत्र को बोलकर आचमन करें। जल छिड़के और फिर गंध पुष्प से "इदं धूपं ॐ नमो नारायणाय नमः" मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्पण करें।

फिर धूप से आरती करें, इसके बार आरती के पांच दीप यानि पंचप्रदीप जलाकर "एतस्मै नीराजन दीपमालाएं नमः" कह कर आचमनी जल छिड़के ।

गंध पुष्प लेकर "एष नीराजन दीपमालाएं ॐ नमः नारायणाय नमः" इस मंत्र उच्चारण कर आरती करें।

भगवान का आशीर्वाद इसके बाद अगर चाहें तो कपूर, जल भरे शंख, पुष्प और चामर से आरती कर सकते हैं। आरती के खत्म होने पर शंख ध्वनि करके प्रणाम करें और प्रसाद स्वरुप आरती के बाद धूप और दीप सबको दें। इसके बाद ही भोग या प्रसाद सब में बांटे।

अगर रथ यात्रा के दिन आरती करते हैं तो आपको पूर्णयात्रा (अंतिम दिन) के दिन भी आरती करना चाहिए। रथ यात्रा में सूर्यास्त से पहले एक बार आरती जरूर करें और फिर शाम को संध्या आरती करें। पूजा करने से पहले पूरे घर को धूप के सुगंध से सुगन्धित करें।

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