Janeu Sanskar vidhi Kya Hai: क्या आप पहनते हैं जनेऊ?, अगर नहीं तो इससे जुड़े चमत्कार जानने के बाद जरूर करेंगे धारण

Janeu Sanskar vidhi Kya Hai: वैदिक धर्म में प्रत्येक आर्य का कर्तव्य जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना जरूरी है। ब्राह्मण ही नहीं समाज के हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही बालक को यज्ञ व स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। लड़कियों को भी जनेऊ धारण करने का अधिकार है ।

Update:2022-11-11 09:45 IST

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

जनेऊ यानि यज्ञोपवीत संस्कार विधि क्या है Janeu Sanskar vidhi Kya Hai:

सनातन धर्म की परंपरा में यज्ञोपवित यानि जनेऊ धारण करना अनिवार्य होता है। जनेऊ को संस्कृत( s भाषा में 'यज्ञोपवीत' कहा जाता है। बहुत से लोगों को बाएं कंधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे देखा होगा। इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर व दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे।

जनेऊ( Janeu) का महत्त्व प्राचीन काल से चला आ रहा है। जनेऊ धारण करना एक संस्कार की श्रेणी में आता है। कच्चे सूत से बने इस पवित्र धागे को व्यक्ति धारण करता है। गुरुकुल की परंपरा में गुरु दीक्षा के बाद जनेऊ पहना जाता है।

जनेऊ का महत्व

त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक जनेऊ हर व्यक्ति को धार्मिक नियमों का पालन करते हुए धारण करना चाहिए। जनेऊ के तीन धागे माता-पिता की सेवा और गुरु कर्तव्य बोध कराते है। जनेऊ के तीन धागों में 9 लड़ी होती है, मलतब इससे 9 ग्रह प्रसन्न रहते है।

सोलह संस्कारों में एक जनेऊ ब्राह्मणों में 7 वर्ष, क्षत्रिय में 11 वर्ष और वैश्यों में 13 वर्ष के पहले धारण करना जरूरी है और किसी भी कारणवश पहले जनेऊ धारण न हुआ हो तो विवाह योग्य आयु के पहले जरूर धारण करवाना चाहिए।

जनेऊ की उत्पत्ति

यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। तीन सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। इन्ही से इसकी उत्पत्ति हुई है। अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। बिना यज्ञोपवीत धारण कये अन्न जल गृहण नहीं किया जाता। यह तीन धागों वाला सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात् इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे। 


सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

जनेऊ कब धारण करें

जनेऊ यानि यज्ञसूत्र में सत, रज, तम तीन गुण होते है जो तीनों गुणो का प्रतीक होने के साथ -साथ देवऋण, पितृऋण, ऋषिऋण का भी प्रतीक है । यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों और मानव जीवन के तीन आश्रमों का भी प्रतीक है । किसी भी धार्मिक कार्य, पूजा-पाठ, यज्ञ आदि करने के पूर्व जनेऊ धारण करना जरूरी है। हिन्दू धर्म में विवाह तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक कि जनेऊ धारण नहीं किया जाए। मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए।

जनेऊ पहनने से क्या होता है?

मूत्र त्याग के वक्त दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से वे नसें दब जाती हैं, जिनसे वीर्य निकलता है। ऐसे में जाने-अनजाने शुक्राणुओं की रक्षा होती है। इससे इंसान के बल और तेज में वृद्ध‍ि होती है। रिसर्च में मेडिकल साइंस ने भी पाया है कि जनेऊ पहनने वालों को हृदय रोग और ब्लडप्रेशर की आशंका अन्य लोगों के मुकाबले कम होती है।

जनेऊ को कान पर क्यों चढ़ाते हैं

. जनेऊ को लघुशंका या दीर्घशंका के समय अपवित्र होने से बचाने के लिए उसे खींचकर कानों पर चढ़ाया जाता हैं। कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जागृत होता है। .. उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, मूत्रन्द्रीय रोग, हृदय के रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते।

संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है। नौ तार, यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्या नौ होती है। एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वार मिलाकर कुल नौ होते हैं। पांच गांठ, यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है।

वैदिक धर्म में प्रत्येक आर्य का कर्तव्य जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना जरूरी है। ब्राह्मण ही नहीं समाज के हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही बालक को यज्ञ व स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। लड़कियों को भी जनेऊ धारण करने का अधिकार है ।

जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होती है। इसका अभिप्राय यह है कि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर कुल 32 विद्याएं होती है। 64 कलाओं में जैसे- वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि।

जनेऊ धारण करते वक्त मंत्र...

ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजा-पतेर्यत -सहजं पुरुस्तात।

आयुष्यं अग्र्यं प्रतिमुन्च शुभ्रं यज्ञोपवितम बलमस्तु तेजः।।


जनेऊ धारण करने के पीछे है नियम

  • जनेऊ को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका स्थूल भाव यह है कि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो।
  • जनेऊ का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए, तो बदल देना चाहिए। खंडित जनेऊ शरीर पर नहीं रखते। धागे कच्चे और गंदे होने लगें, तो पहले ही बदल देना उचित है।
  • जन्म-मरण के सूतक के बाद इसे बदल देने की परम्परा है। महिलाओं को हर मास मासिक धर्म के बाद जनेऊ को बदल देना चाहिए ।
  • जनेऊ शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता। साफ करने के लिए उसे कण्ठ में पहने रहकर ही घुमाकर धो लेते हैं। भूल से उतर जाए, तो प्रायश्चित करें ।
  • मर्यादा बनाये रखने के लिए उसमें चाबी के गुच्छे आदि न बांधें। बालक जब इन नियमों के पालन करने योग्य हो जाएं, तभी उनका जनेऊ करना चाहिए। 


सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

जनेऊ को विज्ञान भी मानता है

  • चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
  • वैज्ञानिकों अनुसार बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
  • कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।
  • कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।
  • माना जाता है कि शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर तक स्थित है। जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है।
  • जनेऊ से पवित्रता का अहसास होता है। यह मन को बुरे कार्यों से बचाती है। कंधे पर जनेऊ है, इसका मात्र अहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से दूर रहने लगता है।
  • जनेऊ हमें सदगति को ले जाती है। बुरे कर्मों से बचाती है। एक हिंदू को इसका पालन करना चाहिए। अब इसमें इतने व्यवहारिक लाभ है तो हर हिंदू इसे अवश्य पहनना चाहेगा। शायद कांग्रेस पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला को राहुल गांधी को जनेऊधारी हिंदू कहने के पीछे यही तर्क हो।

जनेऊ पहनने के लाभ

  • जनेऊ पहने होने से ही मनुष्य बुरे कामों से दूर रहने लगता है। पवित्रता का अहसास होने से आचरण शुद्ध करने लगते हैं। आचरण की शुद्धता से मानसिक बल बढ़ता है।
  • जो लोग जनेऊ पहनते हैं और इससे जुड़े नियमों का पालन करते हैं, वे मल-मूत्र त्याग करते वक्त अपना मुंह बंद रखते हैं। इसकी आदत पड़ जाने के बाद लोग बड़ी आसानी से गंदे स्थानों पर पाए जाने वाले जीवाणुओं और कीटाणुओं के प्रकोप से बच जाते हैं।
  • जनेऊ धारण करने से हृदय रोग और ब्लडप्रेशर की आशंका कम होती है। मेडिकल साइंस की रिसर्च में जनेऊ शरीर में खून के प्रवाह को भी कंट्रोल करने में मददगार होता
  • जनेऊ धारण करने वाला आदमी को लकवे मारने की संभावना कम हो जाती है, क्योंकि जनेऊ धारण करने वाले को लघुशंका करते समय दांत पर दांत बैठा कर रहना चाहिए। मल मूत्र त्याग करते समय दांत पर दांत बैठाकर रहने से आदमी को लकवा नहीं मारता।
  • जनेऊ को कान के ऊपर कसकर लपेटने का नियम है। ऐसा करने से कान के पास से गुजरने वाली उन नसों पर भी दबाव पड़ता है, जिनका संबंध सीधे आंतों से है। इन नसों पर दबाव पड़ने से कब्ज की शिकायत नहीं होती है। पेट साफ होने पर शरीर और मन, दोनों ही सेहतमंद रहते हैं।
  • कान पर हर रोज जनेऊ रखने और कसने से स्मरण शक्ति का कम नहीं होता है। इससे स्मृति कोष बढ़ता रहता है। कान पर दबाव पड़ने से दिमाग की नसें ऐक्टिव हो जाती हैं, जिनका सम्बंध स्मरण शक्ति से होता है।

जनेऊ कौन कौन धारण कर सकता है?

हिन्दू धर्म में प्रत्येक व्यक्ति जनेऊ पहन सकता है और उसके नियमों का पालन कर सकता है। ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है।जो लोग जनेऊ पहनते हैं और इससे जुड़े नियमों का पालन करते हैं, वे मल-मूत्र त्याग करते वक्त अपना मुंह बंद रखते हैं। इसकी आदत पड़ जाने के बाद लोग बड़ी आसानी से गंदे स्थानों पर पाए जाने वाले जीवाणुओं और कीटाणुओं के प्रकोप से बच जाते हैं।

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