Janmashtami Special 2021 कृष्ण की बांसुरी :कान्हा को किसने दी बांसुरी, जिसकी धुन से राधा के साथ जुड़ा शिव का सार
Janmashtami Special 2021 कृष्ण की बांसुरी : शिव वो हैं जो संपूर्ण संसार को अपने प्रेम के वश में रखते है और शिव व विष्णु के अटूट प्रेम के शास्त्र साक्षी है दोनों एक दूसरे के पूरक है। उनकी व्यवहार और वाणी दोनों ही बांसुरी की तरह मधुर है।
Janmashtami Special 2021 कृष्ण की बांसुरी :
इस साल 2021 में जन्माष्टमी का त्योहार 29-30 अगस्त को है। श्रीकृष्ण का जन्म भगवान श्रीविष्णु के आठवें अवतार के रुप में इसी दिन हुआ था। इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रुप में मनाते हैं। श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने असुरों और मामा कंस के आतंक से जन मानस को बचाने के लिए अवतार लिया था।
श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है जो सोलह कलाओं से सुशोभित है। उनकी बांसुरी की धुन की पूरी दुनिया दीवानी रही है । कहते हैं कि जब कृष्ण के मुख से बांसुरी की धुन निकलती थी तो जीव-निर्जीव सब झूम उठते थे। मोरपंख की तरह ही श्रीकृष्ण के हाथों में सदैव बांसुरी रहती थी। जो सिर्फ राधा-रानी के लिए ही बजती थी।
जन्माष्टमी स्पेशल कृष्ण की बांसुरी में शिव
भगवान विष्णु के आठवें अवतार जब कृष्ण का जन्म हुआ था तब पूरी सृष्टि में एक नई रौशनी की आस जगी थी। काली अंधेरी रात में बारिश के सैलाब के बीच कारागार में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था और पालन पोषण के लिए वासुदेव ने कन्हैया को नंद बाबा के यहां पहुंचा दिया था। जब नंद बाबा के यहां बालक जन्म की खबर फैली तो ऋषिमुनि समेत देवता गंधर्व सबने खुशी और आशीर्वाद दिए।
सृष्टि से रचनाकार संहारकर्ता शिव ने भी अपने आशीर्वाद में अनुपम भेंट दी, जिसकी धुन सबको मनमोह लेती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जब भगवान शिव अपना आशीर्वाद देने मथुरा जा रहे थे तो रास्ते में दधिची मुनि की हड्डी के अवशेष मिले ये वही हड्डियां थी जिसेऋषि ने राक्षसों के संहार के लिए शस्त्र बनाने के लिए देवों को अपना शरीर दान कर दिया था। उसी के कुछ अवशेष से बांसुरी बना कर नंदबाबा को कृष्ण के लिए आशीर्वाद दिया था तब से ही भगवान कृष्ण ने बांसुरी को भोलेभंडारी का आशीर्वाद स्वरुप अपने पास रखा था। कृष्ण ने अपनी बांसुरी से जगत को मोह लिया है। और उनकी धुन हमेशा राधा रानी के लिए निकली।
बांसुरी को वंशी कहते हैं, वंशी को उल्टा करने पर शिव बनता है बांसुरी शिव का रूप है। शिव वो हैं जो संपूर्ण संसार को अपने प्रेम के वश में रखते है और शिव व विष्णु के अटूट प्रेम के शास्त्र साक्षी है दोनों एक दूसरे के पूरक है। उनका व्यवहार और वाणी दोनों ही बांसुरी की तरह मधुर है।कन्हैया की बांसुरी कई नामों से जानी जाती है। बांसुरी को वंशी कहते हैं वंशी का उल्टा शिव होता है। कृष्ण की लंबी बांसुरी का नाम महानंदा, सम्मोहिनी,आकर्षिणी एवं सबसे बड़ी बांसुरी आनंदिनी था।
जन्माष्टमी पर कृष्ण की बांसुरी का रहस्य
एक बार राधा ने भी बांसुरी से पूछा -है प्रिय बांसुरी यह बताओ कि मैं कृष्ण जी को इतना प्रेम करती हूं, फिर भी कृष्ण जी मुझसे अधिक तुमसे प्रेम करते हैं, तुम्हें अपने होठों से लगाए रखते हैं, इसका क्या कारण है? बांसुरी ने कहा - मैंने अपने तन को कटवाया , फिर से काट-काट कर अलग की गई, फिर मैंने अपना मन कटवाया यानी बीच में से, बिल्कुल आर-पार पूरी खाली कर दी गई। फिर अंग-अंग छिदवाया। मतलब मुझमें अनेकों सुराख कर दिए गए। उसके बाद भी मैं वैसे ही बजी जैसे कृष्ण जी ने मुझे बजाना चाहा। मैं अपनी मर्ज़ी से कभी नहीं बजी। यही अंतर है आप में और मुझमें कृष्ण जी की मर्जी से चलती हूं और तुम कृष्ण जी को अपनी मर्ज़ी से चलाना चाहती हो।
जन्माष्टमी स्पेशल कृष्ण की बांसुरी के फायदे
- बांसुरी में 8 छेद होते हैं। जिसमें पहला मुंह के पास, जिससे हवा फूंकी जाती है और 6 छेद सरगम के होते हैं। जिन पर उंगलियां होती हैं। वहीं सबसे नीचे एक और छेद होता है, जो 8वां छेद है ।
- बांसुरी बनाना केवल बांस में छेद कर देना भर नहीं है। इसमें अगर एक भी छेद गलत हो गया तो फिर वह बांसुरी बेसुरी हो जाती है।
- यूं तो बांसुरी बनाने में ज्यादा वक्त नहीं लगता है, लेकिन मधुर धुन के साथ बनाने में बहुत समय लगता है। साथ ही एक भी गलत जगह छेद हो जाता है तो पूरी मेहनत बर्बाद हो जाती है।
- मानसिक तनाव और पति-पत्नी के बीच अनबन को दूर करने के लिए सोते समय सिरहाने से बांसुरी रखनी चाहिए।
- संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपतियों को श्रीकृष्ण के बालरूप की तस्वीर शयनकक्ष में लगानी चाहिए।
- बांसुरी शांति व समृद्धि का प्रतीक है। घर के मुख्य द्वार पर बांस की बांसुरी लटकाने से समृद्धि आती है।
कृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त
भाद्र मास के दिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र लगता है तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है। जानते हैं कृष्ण जन्माष्टमी के दिन का शुभ मुहूर्त
- अष्टमी तिथि का आरंभ – 23.24 (29 अगस्त)
- अष्टमी तिथि का समाप्त – 01.59 (31 अगस्त)
- कृत्तिका नक्षत्र- 29 अगस्त 03.35 AM से 30 अगस्त 06.39 AM
- रोहिणी नक्षत्र -30 अगस्त 06.39 AM से 31 अगस्त 09:44 AM
- निशिता काल पूजा– 23.58 से 00.44
- पारण– 09.44 ,31 अगस्त के बाद
- अभिजीत मुहूर्त -12.02 PM से 12.52 PM
- अमृत काल – नहीं
- ब्रह्म मुहूर्त – 04.36 AM से 05.24 AM
- विजय मुहूर्त- 02.05 PM से 02.56 PM
- गोधूलि बेला- 06.06 PM से 06.36 PM
- सर्वार्थसिद्धि योग – 30 अगस्त 06.39 AM – 31 अगस्त 06.12 AM
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कृष्ण के बाल रुप की माखन, मिश्री, गंगाजल पंचामृत से पूजा की जाती है और व्रत-उपवास कर श्रीकृष्ण से धर्म के मार्ग पर चलने की कामना की जाती है।