आया जेठ का बड़ा मंगल, जश्न में डूबा पूरा लखनऊ, जाने क्या हैं इस जश्न का राज  

हाँ ये सच है कि जेठ की तपती दुपहरी में लोगों का जीना मुहाल हो जाता है लेकिन लखनऊ में ऐसा नहीं है। सचमुच ऐसा नहीं... वजह भी जान लीजिये, इस शहर पर बजरंग बली की कृपा जो है।

Update:2019-05-28 10:22 IST

लखनऊ: हाँ ये सच है कि जेठ की तपती दुपहरी में लोगों का जीना मुहाल हो जाता है लेकिन लखनऊ में ऐसा नहीं है। सचमुच ऐसा नहीं... वजह भी जान लीजिये, इस शहर पर बजरंग बली की कृपा जो है।

पूरी दुनिया में केवल लखनऊ ही एक ऐसा शहर है, जहाँ बड़े मंगल की धूम होती है। आप ये तो जानते ही होंगे कि लखनऊ के अलीगंज में दो प्रसिद्ध नया हनुमान मंदिर और पुराना हनुमान मंदिर है। लेकिन इनका इतिहास क्या और क्यों है ये ख़ास, आइये आपको बताते हैं..

अयोध्या में राम-सीता जी को वनवास मिलने के बाद राम, सीता और लक्ष्मण तीनों ने वनवास के लिये प्रस्थान किया। चलते-चलते मार्ग में बहुत थक जाने पर गोमती के किनारे सीताजी ने राम जी से आग्रह किया कि तनिक क्षण यहां रुक-कर विश्राम कर लेते हैं।

इतने मे सीताजी ने हनुमान जी को याद किया और कुछ क्षण विश्राम कर फिर चल पड़े। इधर हनुमान जी माता सीता का ध्यान करते हुए गोमती के किनारें पहुंचे, लेकिन तब सीता जी वहां से निकल चुके थे। और हनुमान जी वहीं रुक गयें।

अलीगंज का पुराना हनुमान मन्दिर

योगेश प्रवीन के दिये कथन के अनुसार, एक बार की बात हैं जब एक व्यक्ति अलीगंज स्थित एक तालाब में स्नान कर रहा था। स्नान करते समय उसका पैर किसी पत्थर से टकराया। तालाब से पत्थर को निकालने पर व्यक्ति ने देखा तो यह हनुमान जी की मूर्ति थी। तो उसने मूर्ति को तालाब के किनारें एक पेड़ पर टिका कर खड़ा कर दिया।

ऊधर से एक इत्र बेचने वाला निकल रहा था। भीषण गर्मी होने के कारण वह तालाब के किनारे आराम करने रुका। बैठते ही उसकी नजर हनुमानजी की मूर्ति पर गयी। तब उसने स्नान कर रहे व्यक्ति से पूछा कि ये मूर्ति यहां कैसे?

पूरी बात जानकर इत्र बेचनेवाले ने बोला, कि मेरा इत्र यदि जल्दी से जल्दी बिक जायेगा तो हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करवाऊंगा।

इतना कहते ही वह कैसरबाग पहुंचा, और कुछ देर बाद नवाब वाजिद अली शाह जो इत्र के प्रेमी थे, उन्होनें उसका पूरा इत्र खरीद लिया। इसके बाद से ही हनुमान जी की स्थापना का कार्य आरम्भ हो गया। और ज्येष्ठ के मंगल के दिन ही हनुमान की प्रतिमा स्थापित हुई। तब से ही स्थापना के दिन को ज्येष्ठ के बड़ा मंगल के नाम से जाना जाता हैं। इसे ही पुराने हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता हैं। इसकी स्थापना सन् 1798 ईसवी में हुई थी।

अलीगंज का बड़ा हनुमान मन्दिर

एक रात अवध के शिया नवाब शुजा-उद-दौला की पत्नी आलिया बेगम के स्वप्न में हनुमान जी स्वयं प्रकट हुए और उन्हें निर्देश दिया कि अमुक स्थान पर धरती मे मेरी मूर्ति दफन है उसे निकालो।

बेगम आलिया ने हनुमान जी द्वारा चिन्हित स्थान पर खुदाई प्रारम्भ करवाई। बहुत देर हो गयी परन्तु हनुमान जी की मूर्ति नहीं निकली और वहां उपस्थित सुन्नी मुसलमान दबी ज़बान में बेगम साहिबा का मज़ाक उड़ाने लगे, परन्तु बेगम साहिबा तनिक भी विचलित नहीं हुई।

उन्होंने हाथ जोड़कर हनुमान जी से प्रार्थना करी कि आप ही के आदेश पर मैंने खुदाई शुरू करवाई है। अब मेरे साथ-साथ आपकी इज़्ज़त भी दाव पर लगी है।

बेगम साहिबा की प्रार्थना पूरी भी नहीं हुई थी, कि जय हनुमान के नारे लगने लगे। हनुमान जी की मूर्ति प्रकट हो चुकी थी। बेगम आलिया की आँखों में श्रद्धा के आंसू थे।

बेगम आलिया ने आदेश देकर एक हाथी मंगाया और उसकी पीठ पर हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर आदेश दिया कि हाथी को आज़ाद छोड़ दो, और जहाँ यह हाथी रुक जायगा, वहीं हनुमान जी का मंदिर बनाया जाएगा।

उन्होनें ऐसा इसलिये किया क्योंकि यह सम्पूर्ण अवध हनुमान जी की मिलकियत है, और उनका मंदिर कहाँ बनाया जाए, इसका निर्धारण स्वयं हनुमान जी करेंगे।

यह हाथी अलीगंज में एक स्थान पर जाकर रुक गया और बेगम साहिबा ने उसी स्थान पर मंदिर निर्माण करवाकर हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर दी।

बेगम आलिया ने इसी हनुमान मंदिर में मंगलवार को पुत्र रत्न की मन्नत मानी। जिसे हनुमान जी ने पूरा किया और बेगम आलिया को मंगलवार ही के दिन पुत्र नवाब सआदत अली खां-II पैदा हुआ।

जिसका नाम बेगम आलिया ने " मिर्ज़ा मंगलू " रखा। यहीं से बड़े मंगल पर्व का प्रारम्भ हुआ और आज तक भक्तों की मन्नतें पूरी हो रही हैं।

शिया नवाबो पर हनुमान जी की कृपा यहीं नहीं रुकी, बल्कि जब भी आवशयकता हुई हनुमान जी संकट मोचन बने, आगे चलकर जब अवध के शिया नवाब मोहम्मद अली शाह का पुत्र घातक रूप से बीमार हुआ और सारे हकीमो और वैद्धों ने जवाब दे दिया।

तब नवाब साहब की पत्नी बेगम राबिया अपने बीमार पुत्र को लेकर इसी हनुमान मंदिर में पहुंची और पुजारी जी के कहने पर रात भर के लिए अपने पुत्र को हनुमान जी की शरण में छोड़ दिया। अगले दिन सुबह जब सब लोग मदिर पहुंचे तो नवाब साहब का पुत्र चमत्कारिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ हो चुका था।

इस प्रकार शिया रियासत में चारों ओर हनुमान जी के नाम का जयकारा गूंज उठा और बड़े मंगल को शिया नवाबों द्वारा विराट रूप प्रदान किया गया जो आज भी उसी उत्साह से जारी है और लोगों की मन्नतें पूरी हो रही हैं।

शिया नवाबों पर हनुमान जी की कृपा आगे भी जारी रही और शिया नवाबों ने भी अपनी श्रद्धा में कमी नहीं आने दी। नवाब शुजा-उद-दौला व अन्य शिया नवाबों ने ने अवध प्रांत में जगह जगह कई मंदिर निर्मित करवाए।

जिसमे अयोध्या का विश्वविख्यात हनुमान गढ़ी मंदिर का निर्माण भी शामिल है। जिसमें उनके बाद के शिया नवाबों ने भी योगदान जारी रखा।

सुन्नी मुसलमानों ने भारी विरोध के बावजूद भी आज शिया मुसलमान जब हिन्दुओ के साथ मिलकर बड़े मंगल पर भण्डारों इत्यादि का आयोजन करते हैं, तो अधिकतर कट्टरपंथी अपना मुंह छुपाते नज़र आते हैं।

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