Jitiya Vrat 2023: 6 या 7 अक्टूबर! कब है जीवत्पुत्रिका व्रत? ज्योतिषाचार्य से जानें सही तिथि, शुभ मुहूर्त और कब होगा पारण

Jitiya Vrat 2023: यह व्रत स्त्रियाँ अपने संतान की रक्षा के लिए करती है। इस व्रत में एक दिन पहले ब्रह्ममुहूर्त में जल, अन्न व फल ग्रहण करके दूसरे दिन अष्टमी तिथि में पूरे दिन व रात निर्जला व्रत किया जाता है।

Written By :  Preeti Mishra
Update:2023-10-05 05:45 IST

Jitiya Vrat 2023 (Image: Social Media)

Jitiya Vrat 2023: इस वर्ष अभी तक लोगों के मन में संदेह बना हुआ है कि जीवत्पुत्रिका व्रत अथवा जितिया व्रत कब मनाया जायेगा। कुछ लोग इसकी सही तिथि 6 अक्टूबर तो कुछ लोग 7 अक्टूबर बता रहे हैं। महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय के अनुसार यह व्रत आश्विन कृष्ण प्रदोष व्यापिनी अष्टमी तिथि को किया जाता है।

निर्णयसिंधु के अनुसार "पूर्वेद्युरपरेद्युर्वा प्रदोषे यत्र चाष्टमी तत्र पूज्यः सनारीभि: राजा जीमूतवाहन:"अतः अपराह्ण व प्रदोष काल में अष्टमी तिथि मिलने के कारण जीवत्पुत्रिक का व्रत शुक्रवार यानी 6 अक्टूबर को ही करना श्रेष्ठकर होगा। जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन मुहूर्त सायं 04:52 से 7 बजे तक करें। पंडित राकेश पाण्डेय ने बताया कि आर्द्रा नक्षत्र के साथ साथ वरीयान योग दिवा 09:57 तक पश्चात परिघ योग मिल रहा है।

ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय

संतान के लिए होता है यह व्रत

पंडित राकेश पाण्डेय ने बताया कि यह व्रत स्त्रियाँ अपने संतान की रक्षा के लिए करती है। इस व्रत में एक दिन पहले ब्रह्ममुहूर्त में जल, अन्न व फल ग्रहण करके दूसरे दिन अष्टमी तिथि में पूरे दिन व रात निर्जला व्रत किया जाता है। सायं काल में राजा जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को जल, चन्दन, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित किया जाता है और फिर पूजा करती है। इसके साथ ही मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है! जिसके माथे पर लाल सिन्दूर का टीका लगाया जाता है।

जीवत्पुत्रिका व्रत 2023 पारण का समय

पूजन के पश्चात जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। संतान की दीर्घायु: व आरोग्य तथा कल्याण की कामना से स्त्रियाँ इस व्रत को करती है। कहते है जो महिलाएं निष्ठा पूर्वक विधि-विधान से पूजन के पश्चात कथा सुनकर ब्राह्माण को दान-दक्षिणा देती है, उन्हें पुत्र सुख व उनकी समृद्धि प्राप्त होती है। इसके साथ ही पुत्र दिर्घायु व यशश्वी होता है। अपने पुत्र व पौत्रों के दीर्घायु होने की कामना करते हुए स्त्रियाँ बड़ी निष्ठा और श्रद्धा से इस व्रत को पूरा करती हैँ। पंडित राकेश पाण्डेय ने बताया कि जीवित पुत्रिका व्रतस्य पारणा शनिवार को 10:21 के पश्चात नवमी तिथी प्रारम्भ होने पर ही करें।

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