Jivitputrika Vrat 2024: जीवित्पुत्रिका व्रत कब है 2024 में, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
Jivitputrika-Vrat-2024: निसंतान दंपत्तियों के लिए जीतिया व्रत संजीवनी है।जानिए कब है जीवित्पुत्रिका का व्रत और शुभ मुहूर्त
Jivitputrika Vrat 2024 : जीवित्पुत्रिका व्रत कब है 2024: जीवित्पुत्रिका व्रत हर साल आश्विन माह के अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत को संतान के लिए किया जाता है। आश्विन माह कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन जितिया निर्जला व्रत रखा जाता है अर्थात इसमें अन्न नहीं खाया जाता है और नवमी के दिन पारण किया जाता है।इस साल जीवित्पुत्रिका/जितिया व्रत 25 सितंबर यानि बुधवार को है।
जीवित्पुत्रिका (जितिया) व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, लेकिन वे द्रोपदी की पांच संतानें थे। फिर अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली।
अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा।
जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त
साल 2024में जीवित्पुत्रिका व्रत 25 सितम्बर बुधवार को रखा जाएगा।
अष्टमी तिथि शुरू – 25 सितंबर को शाम 6:34 बजे शुरू होगा और
अष्टमी तिथि समाप्त – 26 सितंबर गुरुवार को रात 8:08 बजे समाप्त होगा।
अमृत काल - 12:11 PM – 01:49 PM
ब्रह्म मुहूर्त - 04:44 AM – 05:32 AM
सर्वार्थसिद्धि योग - Sep 26 06:20 AM - Sep 26 11:34 PM
जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत का पारण 26 सितंबर को व्रत का पारण करना है। जीवित्पुत्रिका व्रत नवमी तिथि को स्नान, पूजा तथा सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पारण किया जाता हैं। इस दिन पारण में मुख्य रूप से मटर का झोर, चावल, पोई का साग, मरुआ की रोटी और नोनी का साग खाने की परंपरा है।
जितिया व्रत का पूजन विधि
जीतिया के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनकर सुबह स्नान करने के बाद प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को साफ करें। इसमें प्रदोष काल में जीमूत वाहन देवता की पूजा की जाती है।फिर उन्हें दीप, धूप, अक्षत, रोली, लाल और पीली रूई से सजाया जाता है और उन्हें भोग लगाया जाता है। इसके बाद मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है, इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत की कथापढ़ी एवं सुनी जाती है। मां को 16 पेड़ा, 16 दूब की माला, 16 खड़ा चावल, 16 गांठ का धागा, 16 लौंग,16 इलायची, 16 पान, 16 खड़ी सुपारी और श्रृंगार कासामान अर्पित किया जाता है। वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्रों से पूजा की जाती है।