13 सितंबर को है जीवित्पुत्रिका व्रत, माताएं करेंगी पुत्र के लंबी उम्र की कामना
जयपुर: जीवित्पुत्रिका व्रत या जीउतिया व्रत इस बार 13 सिंतबर को है। नहाय खाय 12 सितंबर को है, इसके साथ शुरुआत होगी और दूसरे दिन बुधवार यानी 13 सितंबर को निर्जला उपवास रखा जाएगा। पारण 14 सितंबर को 5 बज कर 35 मिनट पर होगा। साधारणतया इस व्रत को लेकर धारणा है कि यह व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता, जबकि विद्वान बताते हैं यह व्रत संतान को दीर्घायु होने की कामना के लिए किया जाता है।
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पं. दिवाकर शास्त्री बताते हैं कि पुत्र शब्द का प्रयोग संतान यानी पुत्र और पुत्री दोनों के लिए किया जाता है। इस कारण इस व्रत के नाम से कोई भ्रम नहीं है। यह व्रत बेटा और बेटी दोनों के प्रति मां के प्यार को दिखाता है।
पंडित जी के अनुसार कुश से जीमूतवाहन राजा को बनाकर पूजा की जाती है। यह व्रत आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आता है। ऐसी मान्यता है कि यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपनी संतान की आयु, आरोग्य और उनके कल्याण के लिए पूरे विधि-विधान से किया जाता है। इस व्रत को जीतिया या जीउतिया तथा जिमूतवाहन व्रत भी कहते हैं।
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विधि
सुबह स्नान करने के बाद प्रदोष काल (शाम को) में गाय के गोबर से अपने आंगन को लीपे और वहीं एक छोटा सा तालाब भी बना लें। तालाब के निकट पाकड़ (एक प्रकार का पेड़) की डाल लाकर खड़ी कर दें। शालिवाहन राजा के पुत्र जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति मिट्टी के बर्तन में स्थापित कर पीली और लाल रुई से उसे सजाएं और धूप, दीप, चावल, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजा करें।
मिट्टी और गाय के गोबर से चिल्ली या चिल्होड़िन (मादा चील) व सियारिन की मूर्ति बनाकर उनके मस्तकों को लाल सिंदूर से सजा दें। अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए बांस के पत्तों से पूजा करना चाहिए। इसके बाद व्रत की कथा सुनें।
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व्रत की कथा
गंधर्वों के राजकुमार का नाम जीमूतवाहन था। वह बहुत दयालु एवं धर्मनिष्ठ था। परंतु उसका मन राज-पाट में नहीं लगता था। अत: राज्य का भार अपने भाइयों पर छोड़कर वह स्वयं वन में पिता की सेवा करने चला गया। एक दिन वन में जीमूतवाहन को एक वृद्धा विलाप करते हुए दिखाई दी। उन्होंने वृद्धा से उसके रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं नागवंश की स्त्री हूं तथा मेरा एक ही पुत्र है। नागों द्वारा रोज एक नाग पक्षीराज गरुड़ को भोजन के लिए दिया जाता है। आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बलि का दिन है।
उस स्त्री की व्यथा सुनकर जीमूतवाहन ने कहा कि मैं आपके पुत्र के प्राणों की रक्षा अवश्य करूंगा। वचन देकर जीमूतवाहन स्वयं गरुड़ को बलि देने के लिए चुने गए स्थान पर लेट गए। नाग के स्थान पर जीमूतवाहन को देखकर गरुड़ आश्चर्य में पड़ गए और जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा। जीमूतवाहन ने उन्हें सारी बात सच-सच बता दी। जीमूतवाहन की बहादुरी और परोपकार की भावना से प्रभावित होकर गरुड़देव उन्हें तथा नागों को जीवनदान दिया। इस प्रकार जीमूतवाहन के साहस से नाग जाति की रक्षा की।