कालाष्टमी के व्रत के पीछे है ये रहस्य, जरुर करे इस दिन उपाय

भैरव जी की पूजा व भक्ति से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहते हैं। सच्चे मन से जो इस भैरव जी की पूजा करता है और शुद्ध मन से उपवास करता है, उनके सभी कष्ट कट जाते हैं। साथ ही रुके हुए कार्य अपने आप बनते चले जाते हैं।

Update:2019-04-25 12:03 IST

जयपुर:हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी व्रत किया जाता है। लोग कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा कर उनके लिए उपवास करते हैं। इस माह 26 अप्रैल को यह व्रत पड़ रहा है। मान्यता है कि भगवान शिव उसी दिन भैरव के रूप में प्रकट हुए थे। इस दिन मां दुर्गा की पूजा का भी विधान है।

व्रत कथा

शिव पुराण में है कि देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी-बारी से पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है। जवाब में दोनों ने स्वयं को सर्व शक्तिमान और श्रेष्ठ बताया, जिसके बाद दोनों में युद्ध होने लगा। इससे घबराकर देवताओं ने वेदशास्त्रों से इसका जवाब मांगा। उन्हें बताया कि जिनके भीतर पूरा जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है वह कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव ही हैं।ब्रह्मा जी यह मानने को तैयार नहीं थे और उन्होंने भगवान शिव के बारे में अपशब्द कह दिए, इससे वेद व्यथित हो गए। इसी बीच दिव्यज्योति के रूप में भगवान शिव प्रकट हो गए। ब्रह्मा जी आत्मप्रशंसा करते रहे और भगवान शिव को कह दिया कि तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो और ज्यादा रुदन करने के कारण मैंने तुम्हारा नाम ‘रुद्र’ रख दिया, तुम्हें तो मेरी सेवा करनी चाहिए।

इस पर भगवान शिव नाराज हो गए और क्रोध में उन्होंने भैरव को उत्पन्न किया। भगवान शंकर ने भैरव को आदेश दिया कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। यह बात सुनकर भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के वही 5वां सिर काट दिया, जो भगवान शिव को अपशब्ध कह रहा था।इसके बाद भगवान शंकर ने भैरव को काशी जाने के लिए कहा और ब्रह्म हत्या से मुक्ति प्राप्त करने का रास्ता बताया। भगवान शंकर ने उन्हें काशी का कोतवाल बना दिया, आज भी काशी में भैरव कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। विश्वनाथ के दर्शन से पहले इनका दर्शन होता है, अन्यथा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है।

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मान्यता भैरव जी की पूजा व भक्ति से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहते हैं। सच्चे मन से जो इस भैरव जी की पूजा करता है और शुद्ध मन से उपवास करता है, उनके सभी कष्ट कट जाते हैं। साथ ही रुके हुए कार्य अपने आप बनते चले जाते हैं। खास ध्यान रखना चाहिए कि उपवास अष्टमी में ही किया जाए।कालाष्टमी के दिन रात में पूजा का महत्व है। भैरव जी की पूजा कर उन्हें जल अर्पित करना चाहिए। भैरव कथा का पाठ करना चाहिए। साथ ही भगवान शिव-पार्वती जी की पूजा अनिवार्य है।

उपाय

कालाष्टमी की रात को उड़द के आटे की मीठी रोटी बनाएं ,उस रोटी पर तेल लगाएं और किसी कुत्ते को खिला दें। इस दिन काले कुत्ते को खिलाना ज्यादा शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इससे कालभैरव बहुत खुश हो जाते हैं।

कालाष्टमी की रात को आप काल भैरव को सवा सौ ग्राम साबुत काली उड़द चढ़ाएं। इसके बाद 11 दाने अलग रख लें और ये दाने अपने कार्यस्थल पर रख लें। इससे काम में उन्नति मिलेगी।

कालाष्टमी की रात साबुत उड़त दाल, लाल फूल, लाल मिठाई शाम के समय भगवान कालभैरव को चढ़ा दें। इसके बाद इसे परिवारवालों के बीच बांट दें। इससे परिवार में क्लेश नहीं होगा और लक्ष्मी का वास होगा।

ऐसे भैरव मंदिर में जाएं जिसमें कम ही लोग जाते हो। रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर वहां जाएं। भैरव नाथ का पूजन करें। इसके बाद 5 से 7 साल तक के लड़कों को चने-चिरौंजी, तेल, नारियल, पुए और जलेबी का उन्हें प्रसाद दें। ध्यान रखें अपूज्य भैरव नाथ की पूजा करने से भैरव नाथ अत्ति प्रसन्न होते हैं।

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