Kanwar Yatra Ka Mahatva: कांवड़ यात्रा किसने और कब की थी शुरू, जानिए इसकी महिमा और लाभ

Kanwar Yatra Ka Mahatva: कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि यह श्रद्धा, तप और भक्ति का प्रतीक है।इनमें शुद्धता, उपवास, अनुशासन, और सामूहिकता शामिल हैं

Update:2024-07-17 08:30 IST

Kanwar Yatra Ka Mahatva: भगवान शिव शंकर का प्रिय महिना यानी सावन का महीना आ रहा  है। हर साल सावन के महीने में लाखों की संख्‍या में लोग कांवड़ लेकर पदयात्रा करते हैं। कांवड़ यात्रा की पंरपरा की शुरुआत किसने और कब की थी। हर साल सावन के महीने में लाखों की संख्‍या में लोग भारतभर से कांवड़ में गंगाजल लेकर पदयात्रा करके भगवान भोलेनाथ के मंदिर जा कर उन पर जल चढ़ाते हैं। इस यात्रा को कांवड़ यात्रा बोलते हैं और इन लोगों को कांवड़िया कहां जाता है।

सावन का महीना हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दौरान भक्तों द्वारा की जाने वाली कांवड़ यात्रा एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। कांवड़ यात्रा हर साल सावन में आयोजित होती है, जिसमें भक्त गंगा या अन्य पवित्र नदियों से जल लेकर भगवान शिव के मंदिरों में अर्पित करते हैं।कांवड़ यात्रा की परंपरा का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की आराधना करना है। श्रद्धालु विशेष रूप से इस माह में भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं। यात्रा के दौरान, भक्त पवित्र जल को कांवड़ में भरकर यात्रा करते हैं, और यह जल शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है। कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि यह श्रद्धा, तप और भक्ति का प्रतीक है।

जानते हैं कावड़ यात्रा का इतिहास, सबसे पहले कावड़िया कौन थे। इसे लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मान्यता है ...

सावन की कांवड़ यात्रा  किसने कब हुई थी शुरू

कांवड़िया केसरी रंग का वस्‍त्र पहने गौमुख, इलाहाबाद, हरिद्वार और गंगोत्री जैसे पवित्र तीर्थस्थलों से गंगाजल भर कर लाते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ में भरे जल को जमीन पर रखने की मनाही होती है। देशभर में प्रचलित इस कांवड़ यात्रा की पंरपरा बहुत पुरानी है। जातने हैं कि इस पवित्र यात्रा की शुरुआत किसने और कहां से शुरू की थी।

  • पहले कावड़िया पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम ने अपने शिव जी की पूजा के लिए भोलेनाथ के मंदिर की स्थापना की ।जिसके लिए उन्‍होंने कांवड़ में गंगा जल भरा और जल से शिव जी का अभिषेक किया था। इसी दिन से कांवड़ यात्रा की पंरपरा की शुरुआत हो गई।
  • परशुराम की कहानी के अलावा एक अन्‍य कहानी के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ तब उसमें से निकले विष को शिव जी ने पी लिया था। मां पार्वती जी को यह पता था कि यह विष बेहद खतरनाक है इसलिए उन्‍होंने शिव जी के गले में ही इसे रोक दिया।फिर इस विष को कम करने के लिए गंगा जी को बुलाया गया था तभी से सावन के महीने में शिव जी को गंगा जल चढ़ाने की पंरपरा बन गई।  कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’का कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था।
  •  सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कावड़ यात्रा की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे जहां उनके अंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानि हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की।
  • माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कावड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया. वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए। इसे ही कावड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।
  • कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कावडिया थे। उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कावड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।
  • पुराणों के अनुसार कावड यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव को घेर लिया।
  • शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया।तत्पश्चात कावड़ में जल भरकर रावण ने 'पुरा महादेव' स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।
  • कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल के प्रभावों को दूर करने के लिए देवताओं ने शिव पर पवित्र नदियों का शीतल जल चढ़ाया था। सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगे। सावन मास में कावड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ।

कांवड़ यात्रा के नियम

सावन का महीना हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है, और इस दौरान कांवड़ यात्रा एक प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान है। कांवड़ यात्रा हर साल सावन के महीने में भक्तों द्वारा की जाती है, जब श्रद्धालु गंगा या अन्य पवित्र नदियों से जल लेकर भगवान शिव के मंदिरों में अर्पित करते हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भक्तों के लिए एक अद्वितीय अनुभव भी प्रदान करती है।

  • कांवड़ यात्रा के दौरान किसी भी तरह का नशा, मांस मदिरा या तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। कांवड़ यात्रा पूरी तरह पैदल की जाती है। यात्रा प्रारंभ होने से लेकर पूर्ण होने तक सफर पैदल ही किया जाता है। यात्रा में वाहन का प्रयोग नहीं किया जाता।
  • कांवड़ में गंगा या किसी पवित्र नदी का ही जल ही रखा जाता है, किसी कुंए या तालाब का नहीं। कावड़ को हमेशा स्नान करने के बाद ही स्पर्श करना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए कि यात्रा के समय कांवड़ या आपसे चमड़ा स्पर्श ना हो। कावड़ियों को हमेशा जत्थे के साथ ही रहना चाहिए।
  • कांवड़ यात्रा के दौरान ध्यान रखना चाहिए कि अगर आप कहीं रुक रहे हैं तो कांवड़ को भूमि या किसी चबूतरे पर ना खें। कांवड़ को हमेशा स्टैंड या डाली पर ही लटकाकर रखें। अगर गलती से जमीन पर कांवड़ को रख दिया है तो फिर से कांवड़ में पवित्र जल भरना होता है।
  • कांवड़ यात्रा करते समय पूरे रास्ते बम बम भोले या जय जय शिव शंकर का उच्चारण करते रहना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कांवड़ को किसी के ऊपर से लेकर ना जाएं।

कांवड़ यात्रा के लाभ

  • कांवड़ यात्रा का सबसे बड़ा लाभ आध्यात्मिक अनुभव है इससे आत्मिक शांति और संतोष प्रदान करता है। भगवान शिव की आराधना से मन की शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
  • इस यात्रा के दौरान चलने और शारीरिक श्रम करने से शरीर स्वस्थ रहता है। लंबी दूरी तय करने से शारीरिक फिटनेस में भी सुधार होता है।
  •  कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों का ध्यान केवल भक्ति और आराधना पर रहता है, जिससे मानसिक तनाव कम होता है और मन की शांति मिलती है।
  • कांवड़ यात्रा में बड़ी संख्या में लोग एक साथ शामिल होते हैं, जिससे समाज में एकता और भाईचारे की भावना बढ़ती है। यह अनुभव एक-दूसरे की मदद और सहयोग का भी है।
  • कांवड़ यात्रा में नियमों और परंपराओं का पालन करना आवश्यक होता है, जिससे भक्तों में अनुशासन और संस्कार विकसित होते हैं। यह विशेषकर युवा पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण है।
  •  कांवड़ यात्रा अक्सर परिवार के सदस्यों के साथ की जाती है, जिससे परिवार में एकता और प्यार बढ़ता है। यह एक साथ मिलकर की गई यात्रा बंधनों को मजबूत बनाती है।
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