Karva Chauth 2023: करवा चौथ जुड़ा ये रहस्य जानते हैं आप, जानिए इस पात्र से अर्घ्य देने और पानी पीने का महत्व

Karva Chauth Special: करवा चौथ चांद व छलनी की तरह ही करवा चौथ में मिट्टी के करवे की जरूरत होती है। महिलाएं मिट्टी से तैयार करवे से पानी पीकर अपना व्रत खोलती हैं। जानते हैं रहस्य मिट्टी के करवे से ही महिलाएं क्यों पीती है पानी।

Update:2023-10-03 09:24 IST

Karva Chauth Special: करवा चौथ पति की दीर्घायु के लिए रखा जाता है। 1 नवंबर देश में करवा चौथ पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाएगा। हिंदू महिलाओं के लिए यह पर्व बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पर्व को मनाने के लिए महिलाओं ने जहां तैयारी शुरू कर दी है, वहीं इस पर्व को लेकर उनमें खासा उत्साह भी नजर दिखाई देने लगा है। यह व्रत पति की लंबी उम्र की कामना के लिए ही नहीं वरन पति की सुरक्षा के लिहाज से भी बेहद ही महत्वपूर्ण है।और इससे खुशहाल वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है। चांद व छलनी की तरह ही करवा चौथ में मिट्टी के करवे की जरूरत होती है। महिलाएं मिट्टी से तैयार करवे से पानी पीकर अपना व्रत खोलती हैं। जानते हैं रहस्य मिट्टी के करवे से ही महिलाएं क्यों पीती है पानी।

करवा चौथ 

पौराणिक के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो उपवास किया जाता है, उसका सुहागिन स्त्रियों के लिए बहुत अधिक महत्व होता है। दरअसल इस दिन को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन यदि सुहागिन स्त्रियां उपवास रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होने लगता है। पूरे भारतवर्ष में हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग बड़ी धूम-धाम से इस त्योहार को मनाते हैं, लेकिन उत्तर भारत में इस दिन अलग ही नजारा होता है।

करवाचौथ व्रत के दिन एक और जहां दिन में कथाओं का दौर चलता है, तो दूसरी और दिन ढलते ही विवाहिताओं की नज़रें चांद के दीदार के लिए बेताब हो जाती हैं। चांद निकलने पर घरों की छतों का नजारा भी देखने लायक होता है। दरअसल सारा दिन पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखने के बाद आसमान के चमकते चांद का दीदार कर अपने चांद के हाथों से निवाला खाकर अपना उपवास खोलती हैं। करवाचौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से पहले ही 4 बजे के बाद शुरु हो जाता है और रात को चंद्रदर्शन के बाद ही व्रत को खोला जाता है।

करवा चौथ व्रत का शुभ मुहूर्त

इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है और करवाचौथ व्रत की कथा सुनी जाती है। सामान्यत: विवाहोपरांत 12 या 16 साल तक लगातार इस उपवास को किया जाता है लेकिन इच्छानुसार जीवनभर भी विवाहिताएं इस व्रत को रख सकती हैं। माना जाता है कि अपने पति की लंबी उम्र के लिये इससे श्रेष्ठ कोई उपवास अतवा व्रतादि नहीं है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाए जाने वाले करवा चौथ में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। हालांकि, आजकल कई पति भी अपनी पत्नी के लिए व्रत रखते हैं। महिलाएं अपना व्रत छलनी से चांद देखकर तोड़ती हैं। इसके बाद छलनी से ही अपने पति का चेहरा भी देखती हैं। छलनी से अपने पति का चेहरा देखने के पीछे एक कथा हैं।

करवा चौथ 2023 - 1 नवंबर
करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 17:50 से 19:06
चंद्रोदय- 20:16


करवा चौथ व्रत में मिट्टी का करवा का रहस्य

करवा शब्द का अर्थ मिट्टी का बर्तन होता है। चौथ का शाब्दिक अर्थ चतुर्थी है।  इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र और सफलता की मनोकामना पूरी होने के लिए व्रत रखती हैं।  वहीं, अविवाहित युवतियां सुयोग्य वर की कामना के लिए इस व्रत को धारण करती हैं। इस दिन शाम को चंद्रमा के दर्शन करने के बाद पति, पत्नी को मिट्टी के बर्तन (करवा) से पानी पिलाकर व्रत खुलवाता है।  इसमें करवा क्यों महत्वपूर्ण है। करवा में पांच तत्व होते है जल, हवा , मिट्टी, अग्नि, व आकाश । इससे ही हमारा शरीर भी बना है। करवा में मिट्टी व पानी मिलाया जाता है। मिट्टी और पानी भूमि और जल का प्रतीक हैं। करवे का आकार दे देने के बाद इसे धूप और हवा में रखा जाता है ताकि ये जल्दी सूख जाए, ये आकाश और वायु का प्रतीक है। इसके बाद करवे को आग में तपा कर पक्का किया जाता है जो अग्नि का प्रतीक है। एक करवा तैयार करने में पांचों तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है।मिट्टी के करवा में पांच तत्व होते है जल, हवा , मिट्टी, अग्नि, व आकाश. इससे ही हमारा शरीर भी बना है। करवा में मिट्टी व पानी मिलाया जाता है। मिट्टी को पानी में गला कर करवा बनाया जाता है, भूमि तत्व और जल तत्व का प्रतीक है...

फिर उसे बनाकर धूप और हवा से सुखाया जाता है, जो आकाश तत्व और वायु तत्व के प्रतीक हैं. उसके बाद फिर आग में तपाकर बनाया जाता है. भारतीय संस्कृति में पानी को ही परब्रह्म माना गया है. जल ही सब जीवों की उत्पत्ति का केंद्र माना जाता है. इस तरह मिट्टी के करवे से पानी पिलाकर पति पत्नी अपने रिश्ते में पंच तत्व और परमात्मा दोनों को साक्षी बनाकर अपने दांपत्त जीवन को सुखी बनाने की कामना करते हैं. आयुर्वेद में भी मिट्टी के बर्तन में पानी पीने को फायदेमंद माना गया है. इस कारण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह उपयोगी है।

क्यों किया जाता है मिट्टी के करवा का उपयोग

सृष्टि भी इन्ही पांचों तत्वों से मिलकर बनी है और इसी वजह से मिट्टी के करवे का भी महत्व बढ़ जाता है चांद दर्शन हो जाने के बाद मिट्टी के करवे से पानी पिलाया जाता है और इस तरह पांचों तत्वों का समावेश शरीर में होता है। जो स्वस्थ वैवाहिक जीवन की खुशहाली का प्रतीक है।

करवाचौथ पर क्यों किया जाता है मिट्टी के करवा का प्रयोग हिंदू धर्म में पूजा-अनुष्ठान के कार्यों में मिट्टी के पात्रों को जैसे कलश, मिट्टी का दीपक आदि का प्रयोग किया जाता है।धर्म ग्रंथों में मिट्टी के पात्रों को शुद्ध माना जाता है। इसके अलावा प्रकृति में पांच मुख्य तत्वों के बारे में बताया गया है। मिट्टी, आकाश, जल, वायु, और अग्नि, इसके बारे में उल्लेख पहले ही किया जा चुका है। इस तरह से करवाचौथ पर मिट्टी के करवा का प्रयोग करना बेहद ही शुभ माना जाता है। 

करवा चौथ की मान्यता

एक स्त्री थी, जिसका नाम वीरवती था। बताया जाता है कि वीरवती ने विवाह के पहले वर्ष करवा चौथ का व्रत रखा। दिनभर कुछ न खाने व पीने की वजह से उसकी तबीयत खराब होने लगी। उसकी यह हालत उसके भाई देख रहे थे। उन्होंने फौरन एक पेड़ के पीछे जलता दिया रख दिया। इसके बाद वीरवती से कहने लगे कि चंद्रमा निकल आया है।वीरवती ने जलता दिया देखकर अपना व्रत तोड़ दिया। मान्यता है कि इसके कुछ दिनों बाद पति की मौत हो गई। वीरवती को पूरी कहानी पता चली तो उसने फिर से व्रत रखा और छलनी से चंद्रमा की पूजा की। इसके बाद उसका पति वापस जीवित हो गया। करवा चौथ में छलनी से पति को देखने के पीछे मनौवैज्ञानिक वजह भी है। माना जाता है कि जब पत्नी अपने पति को छलनी से देखती है तो सभी विचार और भावनाएं छनकर शुद्ध हो जाती हैं।

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