Karwa Chauth Niyam:करवा चौथ की पूजा कैसे करें , जानिए इस दिन के नियम जो लाते हैं सुख, शान्ति और समृद्धि

Karwa Chauth Niyam: करवा चौथ के व्रत से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। करवा चौथ व्रत तभी पूरा माना जाता है जब महिला करवा चौथ का त्यौहार बहुत खुशी के साथ नियमों का पालन करते हुए मनाये...

Update:2024-10-05 06:30 IST

Karwa Chauth Niyam: हर साल साल करवा चौथ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष के चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। महिलाएं अपने पति और बच्चों की लंबी उम्र और जीवन में खुशहाल रहने के लिए मनाती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत में महिलाएं पूरे दिन बिना किसी भोजन या पानी के व्रत रखती हैं। इस व्रत में महिलाएं चांद देखने के बाद ही उनके पति उन्हें पानी पिलाते हैं तभी अपना व्रत तोड़ती हैं।

मान्यता है कि इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और सुहाग की रक्षा के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। पंचांग के अनुसार, इस साल करवा चौथ का व्रत 19 अक्टूबर 2024 को रखा जाएगा। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, किसी भी पूजा-पाठ में उससे जुड़े खास नियमों का पालन करना जरूरी होता है। 

करवा चौथ के नियम

 सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत में पूजा की थाली में कलश या करवे का रंग लाल होना चाहिए। इसके साथ ही कलश पर लाल रंग का कलावा जरूर बंधा होना चाहिए। इसके अलावा पूजा-थाली में छलनी, घी का दीया, फूल, हल्दी, चंदन, मिठाई, शहद, अक्षत, कुमकुम, फल और पानी से भरा एक गिलास जरूर होना चाहिए।

करवा चौथ की पूजा कैसे करें ?

वास्तु शास्त्र के मुताबिक, करवा चौथ की पूजा दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके कभी नहीं करना चाहिए। व्रती महिलाओं को करवा चौथ का व्रत हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए। करवा चौथ की पूजा घर के पूजा मंदिर में भी की जा सकती है।शाम के समय के समय चंद्रोदय से लगभग एक घंटा पूर्व शिव-परिवार (शिवजी, पार्वतीजी, गणेशजी और कार्तिकेयजी सहित नंदीजी) की पूजा की जाती है। इसके अवला चंद्रदेव की पूजा करना भी जरूरी है।

करवा चौथ की सरगी और कथा के नियम

करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण कर लेना शुभ है। ऐसे में सरगी ग्रहण करते समय यह बात ध्यान रखें कि इस दौरान आपका मुख दक्षिण दिशा में हो। ऐसा करना शुभफलदायी होता है।उसके बाद जब तक रात्रि में चंद्रोदय नहीं हो जाता तब तक जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। यदि कोई स्वास्थय समस्या है तो जल पी सकते हैं। चन्द्र दर्शन के पश्चात ही इस व्रत का विधि विधान से पारण करना चाहिए। शास्त्र अनुसार केवल सुहागिनें या जिनका रिश्ता तय हो गया हो वही स्त्रियां ये व्रत रख सकती हैं। पत्नी के अस्वस्थ होने की स्थिति में पति ये व्रत रख सकते हैं।

करवा चौथ की कथा करते या सुनते वक्त व्रती महिलाएं अपना मुख पूर्व-उत्तर या पूरब दिशा में रख सकती हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से पति-पत्नी के बीच आपसी मनमुटाव दूर हो जाता है। परिणमास्वरूप वैवाहिक जीवन खुशहाल रहती है।

करवा चौथ व्रत के दौरान चंद्र देव को अर्घ्य देने का विधान है। ऐसे में करवा चौथ के दिन चांद निकलने पर उत्तर-पश्चिम दिशा में मुंह करके चंद्र देव को अर्घ्य देना शुभ रहेगा। चूंकि यह चंद्र देव की दिशा मानी गई है। ऐसे में इस दिशा की ओर मुंह करके अर्घ्य देने से शुभ फल की प्राप्ति होगी। साथ ही वैवाहिक जीवन खुशहाल रहेगा।

 कथा सुनना बेहद जरूरी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि आती है और सन्तान सुख मिलता है। करवा चौथ व्रत की कथा सुनते समय साबूत अनाज और मीठा साथ में अवश्य रखें। इस दिन कहानी सुनने के बाद बहुओं को अपनी सास को बायना देना चाहिये।

चंद्रमा का उदय होने के बाद सबसे पहले महिलाएं छलनी में से चंद्रमा को देखती हैं फिर अपने पति को, इसके बाद पति अपनी पत्नियों को लोटे में से जल पिलाकर उनका व्रत पूरा करवाते हैं। कुआंरी महिलाएं चंद्र की जगह तारों को देखती हैं। जब चंद्रदेव निकल आएं तो उन्हें देखने के बाद अर्घ्य दें।

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