Laddu Gopal Ki Chhati: लड्डू गोपाल की छठी कब और क्यों मनाएं, जानिए इसकी महिमा और कथा
Laddu Gopal Ki Chhati Kab Hai :कृष्णा या कान्हा की छठी मनाकर ही जन्माष्टमी का उत्सव पूरा होता है। कान्हा की छठी जन्माष्टमी के छठे दिन मनाई जाती है। जानते इसकी महिमा और नियम
Laddu Gopal Ki Chhati Kab Hai 2024 लड्डू गोपाल की छठी कब है )
आज 26 अगस्त को जन्माष्टमी मनाया जा रहा है और आज से छठे दिन कान्हा का नामकरण छठी मनाई जाएगी। जैसे लोग श्रद्धा और भक्ति से कान्हा का जन्मोत्सव मनाते है। वैसे ही कान्हा की छठी भी मनाई जायेगी। हिंदू धर्म में मनुष्य के जन्म से पहले और मृत्योपरांत तक 16 संस्कार माने जाते है। इन संस्कारो की शुरूआत गर्भ से शुरू होकर मृत्यु तक होता है।
जैसे जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके जन्म के 6 दिन छठी मनाने का विधान है। जैसे हम अपने बच्चे के लिए छठी मनाते है। कृष्ण की भी छठी मनाई जाती है। इस दिन लोग लड्डू गोपाल की पूजा करते हैं और कान्हा के नामकरण संस्कार को पूरा करते हैं। कान्हा की छठी भी जन्माष्टमी के छठे दिन ही मनाई जाती है। इस दिन लोग घरों में कढ़ी चावल बनाकर भोग लगाते है और खाते है। इस साल कृष्ण की छठी श्रीकृष्ण छठी 01 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी।
कान्हा की छठी कैसे मनाते है
छठी वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें, कृष्ण का पसंदीदा पंचामृत से लड्डू गोपाल को स्नान कराया जाता है। स्नान करवाते समय लड्डू गोपाल के मुख के तरफ से स्नान करवाये,ध्यान रहें पीठ की तरफ से स्नान करना वर्जित है। फिर शंख में गंगाजल भरकर लड्डू गोपाल से स्नान कराया जाता है। उसके बाद भगवान को पीले रंग के वस्त्र पहना कर श्रृंगार किया जाता है। कृष्ण के नामों में से कोई एक नाम से नामकरण किया जाता है।इसके बाद कढ़ी-चावल का भोग लगाया जाता है और प्रसाद स्वरुप खाया जाता है। इस दिन ऊं नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें।
आज से 6 दिन बाद कान्हा की छठी मनाने का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार कृष्ण का जन्म मामा कंस के कारगार में हुआ था और उन्हें वासुदेव ने उन्हें काली-अंधियारी रात में नंद और यशोदा के घर छोड़ दिया था। कंस को जब इसकी जानकारी हुई तो राक्षसी पूतना को कान्हा को मारने का आदेश दिया था। गोकुल में जितने भी 6 दिन के बच्चे हैं उन्हें मारने के लिए, लेकिन कृष्ण ने 6 दिन में ही पूतना का वध कर दिया था।उसके बाद मां यशोदा ने कान्हा की छठी मनाई थी।
कान्हा की छठी के दिन क्या करें
इस दिन सुबह से शाम तक भजन कीर्तन करें। झूठ ना बोले और न कोई अपराध करें। ईष्या द्वेष से खुद को दूर रखें।
दूसरों को भोजन करायें और गौ सेवा करें।
जन सरोकार के लिए सुख-सुविधाओं के त्याग की भावना मन में रखें । इस दिन घर में बांसूरी जरूर लाएं
लड्डू गोपाल की छठी के दिन कुंटूंब जनों को प्रसाद वितरण करें।
मांस मदिरा के सेवन से दूर रहें और दुष्टजनों का त्याग करें।
माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा का सकंल्प ले।
घर से किसी को भी खाली हाथ न जाने दें।
छठी के दिन का नियम-भोग
छठी के दिन कढ़ी चावल बनने का नियम है। कहते हैं कि भोग का विशेष महत्व है। वैसे तो भगवान कृष्ण को माखन सबसे प्रिय हैं और उन्हें माखन भी चढ़ाया जाता है लेकिन छठी के दिन कढ़ी और चावल का महत्व है। इस दिन लड्डू गोपाल को कढ़ी और चावल का भोग लगाना चाहिए। अगर आप कृष्ण छठी मनाने जा रहे हैं तो लड्डू गोपाल को कढ़ी-चावल का भोग लगाना न भूलें।.छठे दिन बच्चे को उसका नाम दिया जाता है।ऐसे में जो लोग लड्डू गोपाल का छठी मना रहे हैं वे अपनी पसंद का कोई भी शुभ नाम रख सकते हैं।
श्री कृष्ण जी की छठी की कथा
धर्मग्रंथों के अनुसार भगवन श्री कृष्ण के एक परम् भक्त थे कुंभनदास। उनका एक बेटा था रघुनंदन। कुंभनदास के पार भगवान श्री कृष्ण का एक चित्र था जिसमें वह बासुंरी बजा रहे थे। कुंभनदास हमेशा भगवान श्री कृष्ण की पूजा-आराधना में लीन रहा करते थे। वे कभी भी अपने प्रभु को छोड़कर कहीं छोड़कर नहीं जाते थे। एक बार कुंभनदास को वृंदावन से भागवत कथा के लिए बुलावा आया। पहले तो कुंभनदास ने जाने से मना कर दिया परंतु लोगों के आग्रह करने पर वे भागवत में जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि पहले वे भगवान श्री कृष्ण की पूजा करेंगे और फिर भागवत कथा करके अपने घर वापस लौट आएंगे। इस तरह से उनका पूजा का नियम भी नहीं टूटेगा।
भागवत में जाने से पहले कुम्भनदास ने अपने पुत्र को समझाया कि उन्होंने ठाकुर जी के लिए प्रसाद तैयार किया है और वह ठाकुर जी को भोग लगा दे। कुंभनदास के बेटे ने भोग की थाली ठाकुर जी के सामने रख दी और उनसे प्रार्थना की कि आकर भोग लगा लें। रघुनंदन को लगा कि ठाकुर जी आएंगे और अपने हाथों से भोजन ग्रहण करेंगे। रघुनंदन ने कई बार भगवान श्री कृष्ण से आकर खाने के लिए कहा लेकिन भोजन को उसी प्रकार से देखकर वह दुखी हो गया और रोने लगा। उसने रोते -रोते भगवान श्री कृष्ण से आकर भोग लगाने की विनती की। उसकी पुकार सुनकर ठाकुर जी एक बालक के रूप में आए और भोजन करने के लिए बैठ गए।
जब कुम्भदास वृंदावन से भागवत करके लौटे तो उन्होंने अपने पुत्र से प्रसाद के बारे में पूछा। पिता के पूछने पर रघुनंदन ने बताया कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया है। कुंभनदास ने सोचा की अभी रघुनंदन नादान है। उसने सारा प्रसाद खा लिया होगा और डांट के डर से झूठ बोल रहा है। कुंभनदास रोज भागवत के लिए जाते और शाम तक सारा प्रसाद खत्म हो जाता था। कुंभनदास को लगा कि अब रघुनंदन उनसे रोज झूठ बोलने लगा है। लेकिन वह ऐसा क्यों कर रहा है यह जानने के लिए कुंभनदास ने एक योजना बनाई। उन्होंने भोग के लड्डू बनाकर एक थाली में रख दिए और दूर छिपकर देखने लगे। रोज की तरह उस दिन भी रघुनंदन ने ठाकुर जी को आवाज दी और भोग लगाने का आग्रह किया। हर दिन की तरह ही ठाकुर जी एक बालक के भेष में आए और लड्डू खाने लगे। कुंभनदास दूर से इस घटना को देख रहे थे। भगवान को भोग लगाते देख वह तुरंत वहां आए और ठाकुर जी के चरणों में गिर गए। उस समय ठाकुर जी के एक हाथ में लड्डू था और दूसरे हाथ का लड्डू जाने ही वाला था। लेकिन ठाकुर जी उस समय वहीं पर जमकर रह गए । तभी से लड्डू गोपाल के इस रूप पूजा की जाने लगी। छठी के दिन इस कथा का पाठ करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।