Lohri 2025: प्रकृति को धन्यवाद देने का पर्व है लोहड़ी

Lohri Kyon Manai Jati Hai: लोहड़ी के लिये लकड़ियों की ढेरी पर सूखे उपले रखकर संध्या को जलाकर लोग समूह के साथ तिल, गुड़, रेवड़ी, मूंगफली, गजक, मक्की के दानों को अग्नि की परिक्रमा करते हु्ए अग्नि में डालते हैं।;

By :  S S Nagpal
Update:2025-01-11 19:35 IST

Lohri 2025 History in Hindi (Image Credit-Social Media)

Lohri Kyon Manai Jati Hai: लोहड़ी सिख/पंजाबी समुदाय का प्रमुख त्यौहार है जो मुख्यतः पंजाब, दिल्ली, हरियाणा एवं पड़ोसी राज्यों में मनाया जाता है। लोहड़ी मकर सक्रान्ति के एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी का त्योहार फसलों की कटाई पर प्रकृति को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है।

लोहड़ी के लिये लकड़ियों की ढेरी पर सूखे उपले रखकर संध्या को जलाकर लोग समूह के साथ तिल, गुड़, रेवड़ी, मूंगफली, गजक, मक्की के दानों को अग्नि की परिक्रमा करते हु्ए अग्नि में डालते हैं। इसके साथ ही परिवार की सुख, समृद्धि की कामना की जाती है। फिर प्रसाद के रूप में इन्हें बांटते हैं और आग सेंकते हुए रेवड़ी, खील, गजक, मक्का खाने का आनन्द लेते हैं। ये सभी चीजें ठंड से बचाव करती हैं और शरीर को ऊर्जा देती हैं।

इस अवसर पर ढोल की ढाप पर गिद्दा एवं भागड़ा नृत्य तथा पारंपरिक गीत गाये जाते हैं। जिस घर में नई बहू आती है और घर में संतान का जन्म हुआ होता है उस परिवार में बहुत धूम-धाम से लोहड़ी मनाते हैं।

लोहड़ी की लोक-कथा

एक समय सुन्दरी और मुदंरी नाम की दो अनाथ कन्याएं थीं जिनको उनका चाचा शादी एक राजा को भेंट करना चाहता था। उस समय दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू था जो अमीरों को लूट कर गरीबों की सहायता करता था। उसने इन कन्याओं की मदद की जंगल में आग जलाकर सुन्दरी और मुदंरी नामक इन कन्याओं का विवाह करवाया। दुल्ला भट्टी ने शादी कराकर शगुन के तौर पर कन्याओं की झोली में शक्कर डालकर कन्यादान किया। इस तरह एक डाकू ने निर्धन कन्याओं के लिये पिता की भूमिका निभाई।

कुछ लोगों के अनुसार लोहड़ी शब्द की उत्पत्ति संत कबीर की पत्नी लोई के नाम से हुई हैं तो कुछ लोग इसे तिलोड़ी नाम से उत्पन्न हुआ मानते हैं जिसे बाद मे लोहड़ी कहा जाने लगा।

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