इस दिन से शुरु होगी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, पढ़िए इसकी पूरी कथा
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि यानी कि 04 जुलाई 2019 को भगवान जगन्नाथपुरी की रथ यात्रा का शुभारंभ होगा। इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी होते हैं। हर साल इस यात्रा में भाग लेने के लिए देश विदेश से लाखों भक्त भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए आते हैं।
नई दिल्ली : आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि यानी कि 04 जुलाई 2019 को भगवान जगन्नाथपुरी की रथ यात्रा का शुभारंभ होगा। इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी होते हैं। हर साल इस यात्रा में भाग लेने के लिए देश विदेश से लाखों भक्त भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए आते हैं।
इस दौरान भगवान जगन्नाथ के रथ को पूरे धूमधाम के साथ पूरे शहर में घुमाया जाता है। चलिए ऐसा करने के पीछे क्या वजह है और क्या है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की कहानी...
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इस तरह निकाली जाती है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा
हिंदू धर्म परम्परा में श्री जगन्नाथ रथ यात्रा का काफी महत्व है। यात्रा शुरू होने से पहले सोने की मूठ वाकी झाड़ू से श्री जगन्नाथ के रथ के सामने का रास्ता साफ किया जाता है। इसके बाद विधिवत पूजा पाठ, मन्त्रों के जाप और ढोल, ताशे, नगाड़े की जोरदार आवाज के साथ भक्त भगवान श्री जगन्नाथ के रथ को मोटे मोटे रस्सों के सहारे खींचकर पूरे नगर में भ्रमण करते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने में जो लोग एक दूसरे की सहायता करने हैं वो जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।
जाने ख़ास बातें जगन्नाथ यात्रा की
यात्रा की शुरुआत सबसे पहले बलभद्र जी के रथ से होती है। उनका रथ तालध्वज के लिए निकलता है। इसके बाद सुभद्रा के पद्म रथ की यात्रा शुरू होती है। सबसे अंत में भक्त भगवान जगन्नाथ जी के रथ 'नंदी घोष' को बड़े-बड़े रस्सों की सहायता से खींचना शुरू करते हैं। गुंडीचा मां के मंदिर तक जाकर यह रथ यात्रा पूरी मानी जाती है।
माना जाता है कि मां गुंडीचा भगवान जगन्नाथ की मासी हैं। यहीं पर देवताओं के इंजीनियर माने जाने वाले विश्वकर्मा जी ने भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमा का निर्माण किया था।
सूर्य डूबने तक रथ यात्रा हो जानी चाहिए पूरी
अगर सूर्य डूबने तक यह रथ यात्रा पूरी नहीं हो पाती है तो इसे रोक दिया जाता है और अगले दिन यात्रा की शुरुआत होती है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ 7 दिन तक इसी मंदिर में निवास करते हैं और तब तक वहां पूरे विधि-विधान के साथ पूजा पाठ चलता रहता है।
इस दौरान गुंडीचा मंदिर में लजीज पकवान बनाकर भगवान जगन्नाथ को उनका भोग लगाया जाता है। लजीज पकवान खाकर भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं तो उन्हें रोगियों वाला भोजन बनाकर अर्पित किया जाता है ताकि वो जल्दी स्वस्थ हो जाएं।
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इस यात्रा के तीसरे दिन मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से भेंट करने आती हैं लेकिन द्वारपाल मंदिर का दरवाजा बंद कर देते हैं। इससे रुष्ट हो कर लक्ष्मी जी रथ का पहिया तोड़कर पुरी के मुहल्ले हेरा गोहिरी साही में बने अपने मंदिर में वापस लौट जाती हैं।
जब जगन्नाथ जी को इस बारे में पता चलता है तो वो लक्ष्मी जी को मनाने के लिए कई तरह की बेशकीमती भेंट लेकर उनके मंदिर पहुंचते हैं। आखिरकार बहुत जतन करने के बाद जगन्नाथ जी मां लक्ष्मी को मनाने में कामयाब हो जाते हैं। उस दिन को विजया दशमी के रूप में मनाते हैं।
इसके बाद रथ यात्रा की वापसी को बोहतड़ी गोंचा के नाम से जश्न मनाते हैं। पूरे 9 दिन बाद भगवान जगन्नाथ अपने मंदिर के लिए दोबारा प्रस्थान करते हैं।