Shri Krishna Ki Kahani: संघर्ष ही संघर्ष हैं श्रीकृष्ण
Bhagwan Shri Krishna Ki Kahani: श्रीकृष्ण के जीवन को देखें, संघर्ष ही संघर्ष दिखायी देता है । जब तक नन्द के ब्रज में रहे कंस और उसके असुर- मित्रों ने चैन से नहीं रहने दिया ।
Bhagwan Shri Krishna Ki Kahani: श्रीकृष्ण के जीवन को देखें, संघर्ष ही संघर्ष दिखायी देता है । जब तक नन्द के ब्रज में रहे कंस और उसके असुर- मित्रों ने चैन से नहीं रहने दिया । पूतना, शकट, तृणावर्त, वत्सासुर, अघासुर, धेनुकासुर, प्रलंब, केशी फिर मथुरा गये तो कुवलियापीड से लेकर चाणूर-मुष्टिक जैसे बलवान मल्लों से युद्ध तदुपरान्त शूरसेन-वीरों के सहयोग से कंस का वध किया किन्तु कंस का श्वसुर मागध जरासन्ध तो बहुत ही शक्तिशाली था ।
रणछोड़ कहलाये
उससे निरन्तर 17 बार युद्ध हुए, जब 18 वीं बार युद्ध होने को था। तभी दूसरी ओर से काल-यवन ने बहुत बडी यवन- सेना के साथ मथुरा पर आक्रमण कर दिया । कृष्ण ने यहां पैंतरा बदला और मैदान छोड दिया । रणछोड कहलाये । आगे-आगे श्रीकृष्ण और पीछे-पीछे कालयवन । पहाड की गुफा में घुस गये ।वहां मुचकुन्द को ही श्रीकृष्ण समझ कर कालयवन भीड गया और मुचकुन्द के द्वारा मारा गया ।
लेकिन एक बात साफ हो गयी कि जब तक जरासंध जीवित रहेगा , तब तक वह मथुरा में नहीं रहने देगा ।यह सोच कर कृष्ण ने यादव- गण के साथ मथुरा छोड दी । कुछ गोप और यादव चलते -चलते भटक कर दक्षिण पंहुचे और वहां दक्षिण-मथुरा बसायी, जिसे मदुराई कहते हैं ।
दूसरी शाखा द्वारका पंहुची और वहां यह नगरी बसाई । भौमासुर से प्राग्ज्योतिष्पुर में युद्ध हुआ । बाणासुर से युद्ध हुआ ।इस प्रकार द्वारका में भी अनेक युद्ध हुए , किन्तु सबसे बडा कांटा तो जरासन्ध ही था । जरासन्ध ने शताधिक राजाओं को बन्दी बना रक्खा था, उनसे कृष्ण के कूटनीतिक संबंध थे, संदेश का आदान-प्रदान था । उसे नष्ट करने के लिये कृष्ण ने पांडवों, जो वसुदेव की बहन कुन्ती के पुत्र थे, से घनिष्टता बढाई ।
कृष्ण- जरासंध
युधिष्ठिर को राजसूय-यज्ञ का परामर्श दिया, कृष्ण जरासंध की शक्ति से परिचित थे। जानते थे कि युद्ध में जरासन्ध को जीतना असंभव है । अर्जुन भीम को साथ लेकर जरासंध के पास ब्राह्मण का वेश धारण करके गये द्वन्द्वयुद्ध मांगा । जरासंध भीम से मल्लयुद्ध करने को तैयार हो गया । भीम ने टांग पर अपना पैर जमा कर उसे चीर दिया । इस प्रकार श्रीकृष्ण ने उन बन्दी राजाओं को मुक्त किया । यहां आकर वे प्रसिद्ध हो गये ।
भारत भर के राजा उन्हें जान गये और युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ मे उनकी अग्रपूजा हुई ।
(लेखक- 'पंडित संकठा द्विवेदी' प्रख्यात धर्म विद् हैं ।)