सहारनपुर: जब भी हम किसी भी देवता को प्रसन्न करने के लिए किसी भी प्रकार का हवन या यज्ञ करते हैं तब हम उसमें भिन्न-भिन्न प्रकार की सामग्रियों को चढ़ाते हैं। इसमें कई तरह की मिठाइयां, पत्ते एवं फूल इत्यादि शामिल रहते हैं। किसी भी देवता की पूजा में फूलों का विशेष महत्व होता है इसलिए हम हमेशा सर्वाधिक सुगन्धित पुष्प को ही देवों को चढ़ाते हैं।
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ज्योतिषाचार्य सागर जी महाराज के अनुसार जाता है कि कुछ देवताओं की पूजा में किसी ना किसी प्रकार की सामग्री का अर्पण वर्जित माना जाता है। गणेश जी की पूजा में कभी तुलसी नहीं चढ़ाई जाती, उसी प्रकार भगवान शिव का पूजन करते वक्त भी कुछ बातों का ख्याल रखना चाहिए। जैसे कभी भी महादेव का पूजन करते समय उन्हें केतकी अर्थात केवड़े का खुशबूदार पुष्प नहीं चढ़ाना चाहिए। इसके पीछे एक बहुत ही रहस्यमयी कारण है।
एक बार सृष्टि के प्रारम्भ के समय भगवान ब्रह्मा और विष्णु जी के मध्य यह विवाद उत्पन्न हो गया कि उनमे से सर्वश्रेष्ठ कौन है ? ब्रह्मा जी ने कहा कि मैंने इस सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण किया है। अतः मैं ही सबसे अधिक महान हूँ। यह सुनने पर विष्णु जी ने तर्क दिया कि मैं सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन करता हूँ इसलिए मैं सबसे अधिक सर्वश्रेष्ठ हूं। तभी वहाँ पर एक अत्यंत लम्बा शिवलिंग उत्पन्न हो गया ।
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दोनों देवताओं में यह शर्त लग गयी कि जो सर्वप्रथम इस शिवलिंग के किनारे का पता लगाएगा उसे ही सर्वश्रेष्ठ माना जायेगा। दोनों विपरीत सिरों के पीछे चल दिए लेकिन बहुत देर चलने के बाद भी जब विष्णु जी को सिरा नहीं मिला तो वे निराश होकर लौट आये | उधर ब्रह्मा जी को भी कुछ हासिल नहीं हुआ परन्तु उन्होंने कह दिया कि उन्हें सिरा मिल गया है और उन्होंने प्रमाण के रूप में केतकी अर्थात केवड़े के पुष्प को अपना गवाह बताया।
उनके इस असत्य को सुनकर वहाँ स्वयं महादेव प्रकट हुए और ब्रह्मा जी के झूठ को पकड़कर उन्हें डांटा। इसके बाद दोनों देवों ने मिलकर महादेव की आराधना की। तब महादेव ने बताया कि मैं ही इस सृष्टि का सम्पूर्ण कर्ताधर्ता हूं और मेरी ही प्रेरणा से आप इस सृष्टि को संचालित करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने केवड़े के फूल को उसकी गलती का दंड देते हुए श्राप दे दिया कि आज से मेरी पूजा में कभी भी इसका उपयोग नहीं किया जायेगा और इसी कारणवश केवड़े के फूल को शिव जी के समक्ष अर्पित नहीं किया जाता है।