Lord Shri Ram Qualities: श्री राम के वो गुण जिन्होंने बनाया उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम, जानें भगवान श्री राम के चरित्र की विशेषताएं
Lord Shri Ram Qualities: हमारे समाज में खास बात यह है कि हम अपने देवताओं की पूजा तो करते हैं लेकिन उनसे कुछ सीखते नहीं हैं।प्रभु श्री राम का जीवन आदर्श जीवन है, वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं ।
Lord Shri Ram Qualities in Hindi: हमारे समाज में खास बात यह है कि हम अपने देवताओं की पूजा तो करते हैं लेकिन उनसे कुछ सीखते नहीं हैं।प्रभु श्री राम का जीवन आदर्श जीवन है, वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं । यह हम पर निर्भर करता है कि हम श्रीराम के जीवन दर्शन को समझकर उनसे कुछ सीखें या सिर्फ उनकी मूर्ति बनाकर मंदिर में रख दें।
जानें भगवान श्री राम के चरित्र की विशेषताएं
मित्रता
श्रीराम की सुग्रीव और विभीषण की मित्रता जग प्रसिद्ध हैं । लेकिन श्रीराम जी ने अपने परम भक्त हनुमान जी को तो भरत समान भाई और मित्र माना। श्रीराम अपने मित्र और प्रजा के प्रति अन्याय के लिये बहुत जागरूक थे। बाली ने सुग्रीव की पत्नी का अपहरण कर लिया था और सुग्रीव से राज्य छीनकर उनको निष्कासित कर दिया था, जिस कारण उन्होंने बालि का वध किया।
सिद्धातों पर जीना
प्रभु श्रीराम ने अपना पूरा जीवन एक साधारण व्यक्ति की ही तरह बिताया। उन्होंने अपने जीवन में बहुत कठिन कष्ट उठाये । लेकिन अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे। वे सरल परन्तु अपने सिद्धांत में अडिग थे I
वे विषम से विषम परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं खोते थे। निडर होकर उसका सामना करते थेI
आज्ञाकारी
प्रभु श्रीराम ने अपने पिता के एक वचन को निभाने के लिये 14 साल वनवास में बिताये। इससे पता चलता है कि वे अपने कर्तव्य पालन में कितना दृढ़ थे।
सम्मान भाव
प्रभु श्रीराम ऊँच नीच का व्यवहार नहीं करते थे। नारियों का बहुत सम्मान करते थे। शबरी में उन्होंने माता कौशल्या का रूप देखा I इसीलिए राम ने बड़े ही प्रेम से शबरी के जूठे बेर खाये।केवट राज को लक्ष्मण और भरत समान भाई माना।
तितिक्षा या सम भाव
श्री राम जी हर परिस्थिति में सम भाव में रहते थे। वे राजमहल में हों या वन में, पलंग पर सोयें या जमीन पर, गरमी हो सर्दी, इन सब परिस्थितियों का उन पर कोई प्रभाव नहीं था। वे अशांत अवस्था में भी शांत रहते थे।
षड्विकार रहित
श्री राम को न तो अपने ज्ञान का कभी घमंड था और न ही अपनी शक्ति पर अभिमान। वे किसी से ईर्ष्या नहीं करते थे। उन्हें न राज्य का लोभ था और न वन से डर। वे हमेशा सकारात्मक सोचते थे।राज्य छिन गया तो भी उसका कोई विषाद नहीं। कहा कि वन में ऋषियों मुनियों के दर्शन होंगे, आत्मज्ञान मिलेगा तो जीवन धन्य हो जायेगा। किसी भी वस्तु या परनारी में कोई आसक्ति नहीं, उन्होंने एक पत्नी व्रती का व्रत ले रखा था और उसका जीवन पर्यन्त पालन किया। वे बहुत विकट परिस्थितियों में कार्य सिद्ध करने के लिये बहुत सोच विचार के बाद क्रोध करते थे, पर आवेश में कभी क्रोध नहीं किया।
जब सीता हरण हुआ तब उनके पास कोई सेना नहीं थी। वनवास के कारण अयोध्या से वे कोई मदद नहीं लेना चाहते थे। वे जनस्थान से सुदूर किष्किन्धा जाकर सुग्रीव से मित्रता की। वानर सेना की खोज में मदद ली। उनकी मदद से समुद्र पर पुल बँधवाकर अपने युद्ध कौशल से परमशक्तिशाली रावण को युद्ध में मारकर सीता को मुक्त कराया। संकल्प, उत्साह, उमंग और आत्मविश्वास तथा युद्ध कौशल एवम् संगठन क्षमता का ऐसा उदाहरण इतिहास में कहीं देखने को नहीं मिलता।