Maa Chandraghanta ki Kahani: हर भय का नाश करता है मां दुर्गा का तीसरा रूप, जानते हैं मां चंद्रघंटा की कहानी

Maa Chandraghanta ki Kahani: 5 अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन है इस दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरुप की पूजा की जाती है, जानते हैं मां चंद्रघंटा की कहानी...

Update:2024-09-27 06:48 IST

मां चंद्रघंटा की कहानी  Maa Chandraghanta Navratri Third day:शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri)  मां दुर्गा की आराधना का समय होता है।  नवरात्रि के नौ दिनों में मां के विभिन्न नौ स्वरुपों का ध्यान कर पूजन किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जो भी नवरात्रि के नौ दिनों में पूरी श्रध्दा से माता का ध्यान कर विधि-विधान से पूजन करता है, माता उनके सभी कष्टों का निवारण कर देती हैं। शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा (Maa Chandraghanta) का पूजन किया जाता है।

मां का नाम चंद्रघंटा इसलिए पड़ा क्योंकि उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र बना हुआ है। मां का स्वरुप अलौकिक है।  उनका शरीर स्वर्ण के समान दमकता है। मां चंद्रघंटा की दस भुजाएं हैं, जिनमें अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं सिंह मां चंद्रघंटा की सवारी है। मां चंद्रघंटा मां का तीसरा रूप है। इस दिन भक्त देवी चंद्रघंटा की पूजा करते हैं,

मां चंद्रघंटा का स्वरूप(Maa Chandraghanta ka Swaroop)

मां चंद्रघंटा का रूप अत्यंत मान्य है। वे दस भुजाओं वाली देवी हैं, जिनका रूप सुंदर और मनमोहक है। उनका वाहन सिंह है, सिंह की सवारी से मां का शांत और महिमामयी रूप दिखाई देता है। चंद्रघंटा देवी के पास दस भुजाएं हैं, जिनमें उन्होंने विभिन्न आस्त्र-शस्त्र धारण किए हैं। वे एक हाथ में कमल और कमंडल धारण करती हैं, जो शांति और आशीर्वाद के प्रतीक हैं, और दूसरे हाथ में त्रिशूल, गद, और खड़ग जैसे अस्त्र धारण करती हैं, जो शत्रुओं के नाश के लिए हैं। इनकी मुद्रा और भूषण उनके रूप को और भी महिमामयी बनाते हैं।

मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व( Maa Chandraghanta Ka Mahatva)

माता चंद्रघंटा अपने मस्तक पर मुकुट धारण करती हैं, उसमें अर्धचंद्र और दिव्य घंटी लगी है। इसलिए इस स्वरूप में देवी मां चंद्रघंटा कहलाती हैं। मां के इस स्वरूप की पूजा के लिए नवरात्रि के तीसरे दिन सुबह जल्दी स्नान कर मां का ध्यान करें। । भक्त पूजा में लाल और पीले फूल चढ़ाए, जो देवी के प्रिय होते हैं। भक्त अक्षत, चंदन, और भोग के रूप में पेड़े चढ़ाते हैं और दीपक जलाते हैं। मंत्रों का जाप, आरती, शंख, और घंटी की ध्वनि से यह पूजा संगीतमय और आध्यात्मिक अनुभव बना देती है।

मां चंद्रघंटा मंत्र(Maa Chandraghanta Ka Mantra)

मां चंद्रघंटा की पूजा के समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए

पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता

प्रसादं तनुते मह्मम् चंद्रघण्टेति विश्रुता

या

ऊं देवी चंद्रघण्टायै नम

 मां चंद्रघंटा की आरती (Maa Chandraghanta Aarti)

नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा का ध्यान।

मस्तक पर है अर्ध चंद्र, मंद मंद मुस्कान।।

दस हाथों में अस्त्र शस्त्र रखे खडग संग बांद।

घंटे के शब्द से हरती दुष्ट के प्राण।।

सिंह वाहिनी दुर्गा का चमके स्वर्ण शरीर।

करती विपदा शांति हरे भक्त की पीर।।

मधुर वाणी को बोल कर सबको देती ज्ञान।

भव सागर में फंसा हूं मैं, करो मेरा कल्याण।।

नवरात्रों की मां, कृपा कर दो मां।

जय मां चंद्रघंटा, जय मां चंद्रघंटा।।

मां चंद्रघंटा को भोग(Maa Chandraghanta Ka Bhog)

 मां चंद्रघंटा को दूध और केसर बनी घी बेहद प्रिय होती है. इसके अलावा दूध से बनी मिठाइयों का भोग भी लगा सकते हैं. माता को फलों में केले का भोग लगाना शुभ होता है. इसे माता चंद्रघंटा का आशीर्वाद प्राप्त होता है. व्यक्ति के अटके काम भी बनते चले जाते हैं.

मां चंद्रघंटा की कथा(Maa Chandraghanta ki Kahani)

धर्मानुसार, देवताओँ की रक्दाषा के लिए दानवों के वर्चस्व को खत्म करने के लिए मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का रूप लिया था। पुराणों में वर्णित कथानुसार महिषासुर नाम के राक्षस ने देवराज इंद्र का सिंहासन पर अधिकार लिया था। वह देवताओं को अपने अधीन कर स्वर्गलोक पर राज करने लगा था।इससे देवता बेहद ही चितिंत हो गए थे। देवताओं ने इस परेशानी के लिए त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मदद मांगी। यह सुनकर त्रिदेव क्रोधित हो गए। इस क्रोध के चलते तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई उससे एक देवी का जन्म हुआ।जिसे त्रिदेव समेत समस्त देवताओं ने अपनी शक्तियों से पूर्ण किया था।

भगवान शंकर ने इन्हें अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। फिर इसी प्रकार से दूसरे सभी देवी देवताओं ने भी माता को अपना-अपना अस्त्र सौंप दिया। वहीं, इंद्र ने मां को अपना एक घंटा दिया था। इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर का वध करने पहुंची तो, वहां मां का ये रूप देख महिषासुर को आभास हुआ कि उसका काल नजदीक है। महिषासुर ने माता रानी पर हमला बोल दिया। जिसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर दिया।इसी तरह से मां चंद्रघंटा ने देवताओं की रक्षा की।नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा का मंत्र जाप अवश्य करें।

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