यहां होता है देवी के नौ रुपों का अलग-अलग दर्शन, नवरात्र में करें यहां पूजा

Update:2019-04-05 09:50 IST

जयपुर:हर साल दो नवरात्र होते हैं। हिंदी महीनों के अनुसार अश्विनी में पड़ने वाले नवरात्र को शारदीय नवरात्र और चैत्र में पड़ने वाले नवरात्र को वासंतिक नवरात्र कहते हैं। शारदीय नवरात्र में नौ देवियों और वासंतिक नवरात्र में नौ गौरियों का दर्शन होता है। काशी वाराणसी में सभी नौ देवियों का अलग-अलग मंदिर है। जिस दिन जिस गौरी के दर्शन का महात्म होता है उस दिन उसी मंदिर में दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु की भीड़ उमड़ती है। अलग-अलग देवी का महात्म और काशी में कहां-कहां स्थित हैं नौ गौरियों का मंदिर।

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मुखनिर्मालिका गौरी वासंतिक नवरात्र के पहले दिन मुखनिर्मालिका देवी के दर्शन का विधान है। देवी का विग्रह काशी में गायघाट के हनुमान मंदिर में स्थापित है। कहते हैं देवी के निर्मल मुख के दर्शन से व्यक्ति के जीवन में भी निर्मलता का भाव उत्पन्न होता है। शक्ति के उपासक इस दिन अलईपुरा स्थित शैलपुत्री देवी का दर्शन भी करते हैं। देवी का दर्शन इस बार छह अप्रैल को होगा।

ज्येष्ठा गौरी दर्शन क्रम में दूसरा स्थान ज्येष्ठा गौरी का है। ज्येष्ठा गौरी के दर्शन पूजन से व्यक्ति की समस्त सद्कामनाएं पूर्ण होती हैं। ज्येष्ठा गौरी के दर्शन-पूजन से मुख्यत: व्यक्ति के हृदय में धर्म के प्रति अनुराग बढ़ता है। देवी का मंदिर कर्णघंटा क्षेत्र के सप्तसागर मोहल्ले में है। देवी का दर्शन सात अप्रैल को होगा।

सौभाग्य गौरी वासंतिक नवरात्र की तृतीया तिथि पर सौभाग्य गौरी के दर्शन का विधान है। सौभाग्य गौरी का विग्रह विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी स्थित सत्यनारायण मंदिर परिसर में प्रतिष्ठित है। देवी के इस स्वरूप के दर्शन से व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है। कहते हैं 108 दिन लगातार देवी के दर्शन से मनोरथ विशेष अवश्य पूर्ण होता है। देवी का दर्शन आठ अप्रैल को होगा।

श्रृंगार गौरी वासंतिक नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर श्रृंगार गौरी के दर्शन पूजन का विधान है। श्रृंगार गौरी का मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के पृष्ठ भाग में है। मूलत: श्रृंगार गौरी वैभव और सौंदर्य की देवी हैं। ज्ञानवापी के रेड जोन होने के कारण यहां तक पहुंचने के लिए भक्तों को कई प्रतिबंधों का पालन करना पड़ता है। देवी का दर्शन नौ अप्रैल को होगा।

विशालाक्षी गौरी गौरी के विशालाक्षी स्वरूप का दर्शन पूजन वासंतिक नवरात्र में पंचमी तिथि पर किया जाता है। देवी का अति प्राचीन मंदिर मीरघाट मोहल्ले में धर्मकूप नामक स्थान के निकट है। ऐसी मान्यता है कि देवी विशालाक्षी के दर्शन से जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। देवी का कमल के पुष्प अति प्रिय हैं। देवी का दर्शन 10 अप्रैल को होगा।

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ललिता गौरी वासंतिक नवरात्र की षष्ठी तिथि पर ललिता गौरी के दर्शन पूजन का विधान है। ललिता देवी का मंदिर ललिता घाट के निकट है। कहते हैं देवी की आराधना से व्यक्ति को ललित कलाओं में विशेष उपलब्धि प्राप्त होती है। अडुहुल का फूल देवी को विशेष रूप से प्रिय है। देवी का दर्शन 11 अप्रैल को होगा।

भवानी गौरी वासंतिक नवरात्र के सातवें दिन भवानी गौरी का दर्शन पूजन किया जाता है। काशी में भवानी गौरी का मंदिर विश्वनाथ गली में अन्नपूर्णा मंदिर के निकट स्थित श्रीराम मंदिर में है। बहुत से लोग इस दिन कालिका गली स्थित कालरात्रि देवी के दर्शन-पूजन भी करते हैं। यह मंदिर भी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र के रेड जोन में आता है। देवी का दर्शन 12 अप्रैल को होगा।

मंगला गौरी वासंतिक नवरात्र की अष्टमी तिथि पर मंगला गौरी का दर्शन पूजन किया जाता है। देवी का मंदिर पंचगंगा घाट के निकट स्थिति है। जबकि देवी के दुर्गा स्वरूप की आराधना करने वाले भक्त इस दिन महागौरी अन्नपूर्णा के दर्शन करते हैं। मंगला गौरी का एक मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर में भी है। कहते हैं देवी की आराधना से व्यक्ति के समस्त प्रकार के अमंगलों का क्षय हो जाता है। देवी का दर्शन 13 अप्रैल को होगा।

महालक्ष्मी गौरी वासंतिक नवरात्र के अंतिम दिन नवमी तिथि पर महालक्ष्मी गौरी के दर्शन-पूजन का विधान है। देवी का मंदिर लक्ष्मीकुंड के पास है। कहते हैं किसी भी नवमी तिथि पर देवी के दर्शन का फल कई गुना बढ़ जाता है। देवी की कृपा होने पर व्यक्ति को धन की कमी नहीं होती। देवी का दर्शन 14 अप्रैल को होगा।

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