Maha Mantra: हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

Maha Mantra: जो श्री हरि का अनन्य दास है और रात, दिन, प्रत्येक श्वास में श्री हरि का नाम रटता, गोस्वामी तुलसीदास ऐसे भक्त के लिए कहते हैं कि उसके समान, इस जग में, कोई और नहीं है

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Update:2024-05-04 10:31 IST

Maha Mantra

अति अनन्य जो हरि के दासा।

रटै नाम निसिदिन प्रति स्वासा॥

तुलसी तेहि समान नहिं कोई।

हम नीकें देखा सब कोई॥

दास रता एक नाम सों।

उभय लोक सुख त्यागी॥

तुलसी" न्यारो ह्वै रहै।

दहै न दुख की आगि॥

वैराग्य संदीपनी

जो श्री हरि का अनन्य दास है और रात, दिन, प्रत्येक श्वास में श्री हरि का नाम रटता, गोस्वामी तुलसीदास ऐसे भक्त के लिए कहते हैं कि उसके समान, इस जग में, कोई और नहीं है । मैंने सबको अच्छी तरह से देख लिया है, परख लिया है।भगवान श्री हरि का दास पृथ्वी और स्वर्ग दोनों ल़ोकों का सुख त्यागकर एक मात्र भगवान श्री हरि के नाम से ही प्रेम करता है व आनंद प्राप्त करता है। तुलसीदासजी आगे कहते हैं कि; वह संसार से अलग होकर, संसार की आसक्तियों से दूर रहता है, इसलिये दुखों की अग्नि उसे जला नहीं सकती। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

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