इस मंदिर से जुड़ी लोगों की गहरी आस्था, हर बीमारी दूर करती हैं मां शीतला
मां शीतला देवी का ये ऐतिहासिक मंदिर आज भी असंख्य भक्तजनों की पीड़ा को भरता है और श मनोवांक्षित फल भी देता है।
मैनपुरी : इस जनपद में अनेक ऐतिहासिक पुरातन मंदिर (Temple) तीर्थ स्थल हैं। मयन, च्यवन, मार्कण्डेय, भृगु आदि ऋषियों मुनियों की जन्मभूमि तथा तपोभूमि मैनपुरी(Mainpuri) जनपद की पावन धरती आज भी अध्यात्मिक जीवन दर्शन की ज्योति देने वाली है। ये धरती श्रद्धा, विश्वास, शक्ति की पीठधाम है।
जिसमें 500 वर्षों से अधिक पुरातन ऐतिहासिक भव्य मंदिर शीतला देवी ईसन नदी के तट पर विराजमान है। मां शीतला देवी का ये ऐतिहासिक भव्य मंदिर आज भी असंख्य भक्तजनों की पीड़ा को भरता है और श्रद्धा विश्वास करने वाले भक्तजनों को मनोवांक्षित फल भी देता है।
इस पौराणिक मंदिर का इतिहास
मैनपुरी कुरावली मार्ग पर शहर से 03 किमी. दूर ईसन नदी के पावन तट पर सन् 1500 में राजा पृथ्वीराज चैहान के वंशज, राजा जगत मणि जूदेव ने अपनी भक्ति भावना से इस भव्य शीतला देवी मां के मंदिर की स्थापना थी और उनके हर वंशज राजा ने शीतला देवी पर श्रद्धा कर उनकी पूजा, अर्चना की है। मां शीतला देवी को राजा जगतमणि जूदेव द्वारा मानिकपुर जिला फतेहपुर की कड़ा देवी के रूप में मैनपुरी में लायी गयीं थीं और बाद में कड़ा देवी से शीतला देवी हुईं, इसका बडा रोचक इतिहास कहा जाता है।
मानिकपुर की कड़ा देवी वो शक्तिधाम की देवी हैं जो सती के जहां-जहां अंग गिरे वहीं-वहीं शक्तिधाम बने। मानिकपुर में सती का कड़ा गिरा वहां कड़ादेवी नाम से शक्ति ने जन्म लिया और कड़ा देवी कहलायीं। पुराणों में प्रसंग मिलता है कि राजा दक्ष जब बृम्हा द्वारा प्रजापति रूप में स्थापित हुये तब उन्हें अभिमान हो गया और उन्होने यज्ञ करते समय अभिमान में शंकर जी का अनादर कर दिया, जिसे मां सती सहन नहीं कर सकीं और अपने पिता दक्ष को दंड देने के लिए यज्ञ भूमि की योगाग्नि में अपने शरीर को भष्म कर डाला।
भगवान शंकर ने जब यह समाचार सुना तो उन्होने क्रोधित हो राजा दक्ष को दंड दिया और सती केे प्रेम वियोग में सती के भष्म शरीर को लेकर तीन लोकों में विचरण करने लगे। शंकर जी के क्रोध से चहुंओर हाहाकार मच गया। विष्णु ने शंकर जी को सती प्रेम से मुक्त करने के लिए सती के मृत अंगों को चक्र सुदर्शन से काट डाला और जो अंग जहां गिरा वहीं शक्तिधाम बन गया।
मानिकपुर में शंकर प्रिय सती का कड़ा गिरा था इसलिए इस स्थान की शक्ति कड़ा देवी के नाम से विख्यात हुंयी। चैहान वंश के राजा जगत मणि जूदेव धार्मिक प्रवर्ती के थे और कड़ा देवी के अनन्य भक्त व उपासक थे वे कड़ा देवी की उपासना व दर्शन करने के लिए नवरात्र में मानिकपुर बांदा जिला फतेहपुर जाते थे। कहा जाता है कि राजा जगतमणि जूदेव को मां का कड़ा देवी पर इतना विश्वास व श्रद्धा थी कि वो दर्शन के दिनों में अपने राज-पाठ के धर्म को भी भूल जाते थे।
एक बार जब राजा देवी के दर्शन को गये हुये थे तो राजा से सूनी मैनपुरी राज्य पर शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया। देवी ने रात में स्वप्न में राजा को मैनपुरी में पहुंचने के लिए कहा लेकिन राजा देवी मंदिर से मैनपुरी नहीं आये और मानिकपुर में रहकर ही देवी की पूजा अर्चना की देवी के प्रताप में राजा की सैनाओं ने शत्रुओं को खदेड़ दिया। राजा को लौटने के बाद जब यह सारी बातें पता चली तो उन्हें देवी पर विश्वास और बढ़ गया और राजा अगले वर्ष राज्य को सूना छोड़कर देवी दर्शन के लिए फिर पहुंच गये। राजा की इस भक्ति भावना से देवी ने प्रसन्न होकर राजा से अपनी इच्छानुसार मैनपुरी चलने की बात कही। राजा मानिकपुर से कड़ादेवी को गाजे-बाजे के साथ रथ पर विराजमान कर कीर्तन करते हुये मैनपुरी लाये और ईसन नदी के तट पर कुरावली मार्ग पर सन् 1500 में 14 फीट वर्गाकार में 09-09 फीट ऊंचे भव्य मंदिर का निर्माण कराके महाशक्ति कड़ादेवी के नाम से ख्याती प्राप्त की कहा जाता है कि कड़ा देवी की परीक्षा लेने के लिए आसुरी शक्ति शैतान ने मैनपुरी देवी भक्त जनता को परेशान करने के लिए मैनपुरी में भयंकर खसरा, चेचक रोग फैला दिया।
मां शीतला के पावन स्वरूप का वर्णन
देवी ने अपना चमत्कार दिखाने के लिए साधू के रूप में जनता को संदेश दिया कि खसरा, चेचक रोगी देवी पर ठण्डा शर्बत जल चड़ायें और नीम के झौंरे को अपनी अंगों पर लगायें खसरा, चेचक की जलन, तपन को शीतलता मिलेगी और रोग ठीक हो जायेगा। लोगों ने ऐसा किया तभी से तन-मन को शीतलता देने वाली कड़ादेवी शीतला देवी हो गयीं। आदि शक्ति मां भगवती के अनन्त नाम और अनन्त रूप हैं। समस्त ब्रह्मांड में रहते हुये मां भगवती सारे विश्व के प्राणियों का देवी हर रूप में कल्याण करतीं हैं। मां शीतला की अर्चना, वंदना, पूजन, आराधना हर दिन शुभ है। लेकिन चैत नवरात्रि और आश्विन, नवरात्रि के दिनों में विशेष महत्व है। मां शीतला के पावन स्वरूप का वर्णन करते हुये कहा गया है।
वन्देहं शीतला देवीं रासभस्थां दिगम्बराम।
मार्जनी कलाशोषेतां शूर्पालकृंत मस्तकाम।।
मां शीतला का स्वरूप कृष्णा वर्ग है। वे दिगम्बर हैं उनके मस्तक पर छत्र शोभायमान है। उनके हाथ में कलश में जिसमें मार्जन के लिए नीम का झोर पड़ा है। वे सिंहासन पर आसीन हैं। मां के इस विशाल स्वरूप का ध्यान कर पूजा अर्चना वन्दना करना चाहिए।
मैनपुरी के असंख्य भक्त जन मां शीतला देवी के दर्शन करने प्रतिदिन जाते हैं। उनके श्रद्धा, विश्वास से उनको मनोवांछित फल भी मिलते हैं। मां के भक्तों की भक्ति भावना का सम्मान करते हुये मां शीतला देवी को हृदय से नमन करते हुऐ मैनपुरी की जनता के कल्याण के लिए मां शीतला देवी से कामना करता हूं।